Monday 28 September 2020

हनुमान का क्या अर्थ है?

#पवनपुत्र_हनुमान का रहस्य: 

सीय राम मय सब जग जानी।
करहुं प्रणाम जोर जुग पानी।।
- रामचरितमानस

ईश्वर अंश जीव अविनाशी।
चेतन अमल सहज सुखराशी।।
- रामचरितमानस

ममैवांशो जीवलोके जीवभूत सनातनः।
मनः षष्टाणिइन्द्रयानि प्रकृति स्थाने कर्षति।।
- भगवतगीता
जीव तो मेरा ही अंश है। आज से नहीं जबसे सृष्टि की रचना हुयी है। लेकिन मन सहित छः इंद्रियों के द्वारा संसार मे संघर्ष कर रहा है। कष्ट भोग रहा है। 
कृश्नः तो परमानंद सच्चिदानंद हैं। तो उनका अंश कष्ट क्यों भोग रहा है। संघर्ष क्यों कर रहा है? 
क्योंकि छः इंद्रियों सहित स्वयं को कर्ता मान बैठा है। और सबसे शक्तिशाली इन्द्रिय है मन अर्थात माइंड। उसी के कारण इतना कष्ट भोग रहा है। 

समस्त जीव  पुरुष और प्रकृति , चेतना और जड़ से बने हैं। 
राम चेतना हैं।
सीता उनकी शक्ति - प्रकृति।

हनुमान कौन हैं फिर। 
हनुमान हैं पवन पुत्र। 
वायु पुत्र। 
प्राण वायु हैं हनुमान। 

जीवन की गहराइयों को समझने के लिए प्राणवायु का सहारा लेना पड़ता है। वैसे भी यदि सतह पर जीना हो, तो भी प्राणवायु तो आवश्यक ही है। सतह अर्थात शरीर। केंद्र की परिधि। 
जब तक प्राणवायु आ जा रही है। तभी तक वह प्राणी है।अन्यथा निष्प्राण मिटटी। चेतना के जाते ही सब मिट्टी ही मिट्टी। तुरन्त इसको जलाओ फूको, गाड़ो। 

वायुपुत्र मनुष्य से सम्बन्ध है - प्राणवायु का।
प्राणवायु का सम्बन्ध है प्राणायाम से। 
प्राणायाम का सम्बन्ध है योग से भगवत प्राप्ति से। 
इसीलिए हनुमान वैराग्य के प्रतीक हैं।

ध्यान रहे:
यथा पिंडे।
तथा ब्रम्हांडे।।

हनुमान का #बन्दर स्वरूप माइंड की दशा का परिचायक है। माइंड अर्थात मन। मन में जब तक संसार बसा हुआ है तब तक यह बहुत चंचल रहता है। अस्थिर। कभी इधर कभी उधर। विचार के बादल सोते जागते मन मे मंडराते रहते हैं।बेचैन बन्दर की तरह मनुष्य की तरह इस पेड़ से उस पेड़ पर कूदता रहता है।

योग विज्ञान में मन की इस दशा को क्षिप्त और विक्षिप्त कहते हैं। मेडिकल साइंस इसे विभिन्न ब्रेन वेव्स के नाम से जानता है- अल्फा बीटा गामा डेल्टा थीटा। योग विज्ञान कहता है मन की पांच अवस्थाएं हैं - मूढ़ क्षिप्त, विक्षिप्त एकाग्र निरुद्ध। 
निरुद्ध की अवस्था योगी की अवस्था कहलाती है। योगी का माइंड निरुद्ध होता है। निर्विचार, शून्य, मौन। 
तुलसीदास कहते हैं -
सबहिं नचावत राम गोसाईं।
नाचत नर मर्कट की नाईं।।
मर्कट यानी बन्दर। 
भगवतवीता में कृष्ण कहते हैं:
"ईश्वर सर्वभूतेषु हृतदेशे अर्जुन तिष्ठति।
भ्रमायन सर्वभूतानि यंत्र आरूढानि मायया"। 

ईश्वर सभी जीवों के हृदय में निवास करता है अर्जुन। परंतु अपनी माया से सबको रोबोट की तरह घुमाता रहता है। 

योग का ज्ञान प्राप्त करने के बाद अर्जुन अपनी समस्या बताता है कि मेरा माइंड तो बहुत अस्थिर रहता है प्रभु। इसका इलाज बताइये:
"चंचलम हि मनः कृश्नः प्रमाथि बलवत दृढम।
तस्य अहं निग्रह मन्ये वायुर्पि सुदुष्क्रतं।।"

मेरा मन बहुत चंचल है कृश्नः। मथता रहता है। बलशाली है और बहुत जिद्दी है। 

तो कृष्ण उसे क्रिया योग की विधि बताते है:
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रह चलं। 
अभ्यासेन तू कौंतेय वैराग्येण च ग्रहते।"
इसमे कोई संदेह नहीं है महाबाहु अर्जुन कि मन बहुत चंचल है और इसका निग्रह अर्थात नियंत्रण बहुत कठिन है। लेकिन अभ्यास और वैराग्य से ऐसा संभव है।

अभ्यास। परंतु किसका अभ्यास? 

यही समस्या राम के सामने आयी थी। उन्होंने गुरु वशिष्ठ से पूंछा कि हे गुरुवर मन क्या है? What's mind guru ji ? 
गुरु वशिष्ठ ने उत्तर दिया:
"हे राम मनः संसार वन मर्कट:। 
चंचलत्वम मनो धर्म: यथा वहिनो उष्णता।।"

हे राम मन संसार संसार रूपी जंगल मे मन एक भटकते बन्दर की भांति है। चंचलता उसका स्वभाव है। ठीक उसी तरह जैसे अग्नि का स्वाभव है उसकी उष्णता। उसकी ऊष्मा। उसकी गर्मी। 

योगिक साइंस और वेदांत के अनुसार देह की पांच परतें हैं:
1- अन्न मय कोष - फ़ूड बॉडी या फिजिकल बॉडी।
2- प्राणमय कोष - एनर्जी बॉडी - every cell have mightochondria, which generates ATP by oxydation. (ऑक्सीजन को हम प्राणवायु कहते हैं। और हनुमान हैं वायु पुत्र। प्राणवायु के प्रतीक) 
3- मनोमय कोष - माइंड बॉडी - Thoughts and Emotions
4- विज्ञानमय कोष - Experiencia Body या बुद्द्धि विवेक 
5- आनंदमय कोष - Bliss body. Science has found a particle in human body - #Anandamide which means आनंद एमाइड। 

हनुमान एनर्जी बॉडी और माइंड बॉडी के प्रतीक हैं। एनर्जी बॉडी - वायु पुत्र
माइंड बॉडी - बन्दर। - महावीर विक्रम बजरंगी।
संसार में सफलता प्राप्त करना हो तो भी एनर्जी बॉडी और माइंड बॉडी की ही आवश्यकता पड़ती है।
और अध्यात्म की प्राप्ति करनी हो तो भी माइंड अर्थात मन या चित्त को प्राणवायु पर सवार करके प्राणायाम करना पड़ता है। 

अष्टांग योग में आठों चरण के मध्य में है - प्राणायाम।
-"यम नियम आसन प्राणायाम धारणा ध्यान समाधि"।।

इसीलिये हनुमान की इतनी महिमा कही गयी है। 
मनुष्यो की दो श्रेणी है - एक हैं श्रद्धा और भक्ति वाले। भक्ति के पथ के पथिकों के लिये हनुमान जी की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। लेकिन वे गवांर और पोगापंथी समझे जाते हैं। दूसरी श्रेणी के लोगों के द्वारा।   

दूसरे हैं पढ़े लिखे, शिक्षित,  बुद्द्धि वाले। ये प्रायः अपने को नास्तिक कहते हैं। लेकिन वे इस शब्द का अर्थ नहीं जानते। उनके लिए ही इस तरह की व्याख्याओं की आवश्यकता पड़ती है। 

अंत मे हनुमान के परम इष्ट भगवान राम नामक परम चैतन्य के लिए तुलसी दास लिखते हैं-
"विषय करन सुर जीव समेता।
सकल एक ते एक सचेता।
सबकर परम प्रकाशक जोई।
राम अनादि अवधिपति सोई।।
जगत प्रकाश्य प्रकाशक रामू।
मायाधीश ज्ञान गुण धामू।।

आपका मन संसार की तरफ उन्मुख है तो बन्दर।
परम चैतन्य प्रभु राम की तरफ उन्मुख है तो हनुमान। 
लेकिन हनुमान आपके अस्तित्व का हिस्सा हैं। 

यह गुह्य ज्ञान है। गुह्य का अर्थ गुप्त नहीं है। गुह्य का अर्थ है अप्रकट। है परंतु दिखता नहीं है। क्योंकि दृष्टि निर्मल नहीं है। दृष्टि परेज्यूडिसड है। राग द्वेष से पीड़ित है। मेमोरी से भरी हुयी है। 

®त्रिभुवन सिंह 

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