#कृष्ण_माइंड_रीडर :
वैसे तो माना यह जाता है कि हिंसक पशु होते हैं। इसीलिये कई पशुओं के साथ हिंसक शब्द स्वतः जोड़ दिया जाता है।लेकिन यह मान्यता पूरी तरह से सत्यता से परे है।
पशु प्रायः अपना पेट भरने या अपनी रक्षा हेतु हिंसा करता है। मनुष्य स्वभाव से हिंसक होता है।
हिंसा का जन्म माइंड में होता है। पशु शरीर प्रधान है इसलिए उसकी हिंसा सीमित होती है।
मनुष्य माइंड प्रधान है इसलिए उसके अंदर हिंसा असीमित मात्रा में और निरन्तर घटती रहती है।
यदि मनुष्य हिंसक न होता तो उसे अहिंसा की शिक्षा क्यो दी जाती? पशुओं को तो अहिंसा की शिक्षा नहीं दी जाती।
और यह देखा गया है कि ऋषियों मुनियों के आश्रम में ही नहीं हिंसक पशु उनके साथ रहते थे, वरन आज भी अनेक लोग तथातकठित हिंसक पशुओं को अपने साथ रखते हैं। क्योंकि उनके अंदर अहिंसा है - और पशु इसे पहचान लेता है। एक वीडियो होगी यु ट्यूब पर प्रसिद्ध डॉ आप्टे के बेटे की। उसको देखिये।
बात हो रही है #माइंड_रीडर योगिराज #कृष्ण की, जिन्होंने भगवतगीता के रूप में "मैन्युअल ऑफ माइंड" का उपदेश अर्जुन को दिया था।
उन्हें कैसे पता कि धृतराष्ट्र भीम का बध करने का प्रयास करेगा?
क्योंकि वे माइंड रीडर थे।
यदि कभी आपके अंदर क्रोध अचानक फुट पड़ा हो, तो उस पर यदि आप ध्यान दीजिएगॉ तो पाइयेगा कि यह क्रोध जो अचानक फुट पड़ा था। बहुत से मामूली कारण से फूट पड़ा था। विचार करने पर कालांतर में आपने पाया होगा कि आपके क्रोध की प्रतिक्रिया की तुलना में क्रोध को फूटने का अवसर उतपन्न करने वाली घटना बहुत छोटी थी। तुलनात्मक रूप से आपकी प्रतिक्रिया बहुत अधिक थी। बारूद की तुलना में चिंगारी बहुत सीमित थी।
लेकिन आपका क्रोध हर स्थान पर, हर व्यक्ति के समक्ष्य नहीं फूटेगा। क्रोध फूटेगा उसी के समक्ष्य , जिसके समक्ष्य आपका क्रोध बिना आपको तात्कालिक नुकसान पहुंचाए फूट सकता है। इतनी चेतना तो सदैव काम करती है। यह भी ध्यान से देखने वाली बात है। क्योंकि भय मनुष्य का ही सभी जीवों का मूल स्वभाव है।
क्रोध ऐसे ही निर्मित और एकत्रित होता है।
इसके निर्माण का आरंभ तब होता है जब आप किसी बात से असहमत होते हैं परंतु असहमति व्यक्त नही कर पाते किसी कारण। जानबूझकर या उचित अवसर के अभाव में। वह क्रोध आपके अंदर वाली मनस की खूंटी पर टंग जाता है। जितनी मात्रा में क्रोध निर्मित होता है उतनी ही मात्रा में आपके अंदर केमिकल और रसायन निर्मित होते हैं- जिनको मैं #इमोशनल_टोक्सिन कहता हूँ। वे कालान्तर में आपके अंदर डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों की पृष्ठभूमि बनाते हैं।
जो भी हमारे अंदर जाता है या निर्मित होता है उसका रेचन आवश्यक है। भोजन पानी अंदर जाता है - अनुपयोगी अंश मलमूत्र के रूप में रेचित होता है। सांस अंदर जाती है ऑक्सीजन के साथ - कार्बन डाई ऑक्साइड के साथ बाहर आती है- रेचित होती है।
क्रोध भी निर्मित हो तो उसका रूपांतरण या रेचन आवश्यक है। अन्यथा वह इमोशनल टोक्सिन निर्मित करती है।
बात भटक गयी।
असहमति के प्रथम बीज से क्रोध का निर्माण शुरू होता है, और वह आपके अंदर टंगी खूंटी में टंगता जाता है। एक अवसर आता है कि क्रोध का घड़ा भर जाता है और एक छोटी सी चिन्गारी आपके क्रोध के घड़े में भरे बारूद में आग लगा देती है - और आप क्रोध से फट पड़ते हैं।
यह है माइंड के काम करने का तरीका।
कृष्ण माइंड रीडर हैं।
योगी का एक अर्थ होता है माइंड को जानने वाला।
माइंड को पढ़ने में वही सक्षम होगा जो माइंड को जानता होगा।
धृतराष्ट्र है तो राजा - लेकिन वह राजा बनने के समय से ही असुरक्षित अनुभव करता रहता है - उसे राज के हाँथ से निकल जाने का भय निरन्तर बना रहता है। हर बार उस भय से उसके अंदर असहमति का जन्म होता है। क्रोध का जन्म होता है।
क्योंकि वह पांडु से बड़ा था, नियमतः उसी को राजा होना था। लेकिन प्रकृति ने उसकी आंखें छीन ली थी। उसने उसको प्रकृति और संसार के प्रति सहज क्रोधी बना दिया था। क्रोध की ऊर्जा को काम की ऊर्जा में बदलकर उसने 100 पुत्र पैदा किए।
जब उसके अपने पुत्र को राजा बनाने का अवसर आया तो पुनः संसार ने उससे यह अवसर छीन लिया।
अब आइए - महाभारत के 18 दिन के युद्ध की तरफ।
वह सदैव इस बात की जोड़ तोड़ में लगा रहता था कि किसी तरह पाण्डुपुत्र युद्ध करने के निर्णय से विरत हो जायँ, या युद्ध का परित्याग कर देवें। या कि कृष्ण ही सबसे घोटालेबाज थे, उन्ही के कारण उसके भतीजे युद्ध करने के लिए तैयार हुए थे। हर घटना पर उसकी आशापूर्ण प्रतिक्रियाओं को देखिये। मोस्ट पॉजिटिव माइंड सेट का व्यक्ति महाभारत में। कभी आशा छोड़ी ही नहीं उसने।
लेकिन हर घटना उसके मन के विरुद्ध घटती जाती है। हर क्षण वह युद्ध में घट रही घटनाओं से असहमत होता जाता है। यद्यपि वह भीम से भी अधिक बलशाली है।एक लाख हांथीयों का बल है उसके अंदर। लेकिन अपनी असहमति, और उससे उपजे क्रोध तथा हिंसा को बाहर निकानले के लिए वह युद्धक्षेत्र में नही जा सकता था क्योंकि अंधा था। रेचन नही कर सकता था क्रोध और हिंसा का।
अतएव क्रोध निरन्तर उसके अन्दर संचित होता रहता है।
पांच पांडवों में भीम ही ऐसा व्यक्ति था जो निरन्तर बिना शंसय के युद्ध करता आया था - बिना धर्म अधर्म आदि के चक्कर मे फंसे हुए।
भीम ही वह व्यक्ति था जिसने उसके सबसे अधिक पुत्रो का बध किया था।
भीम ही वह व्यक्ति था, जिसने उसके सबसे अधिक प्रिय पुत्रो दुशासन और दुर्योधन का जघन्य पूर्वक हत्या की थी।
इसलिए उसके क्रोध का घड़ा भर चुका था। फूटने का अवसर चाहिए था। बारूद एकत्रित हो चुका था। चिंगारी भर की देर थी।
भीम को देखते ही उसका क्रोध फट पड़ता - यह बात माइंड रीडर कृष्ण जानते थे। इसीलिए उन्होंने धृतराष्ट्र के आमंत्रण पर भीम को पीछे करके, उसके पुतले को गला लगाने हेतु आगे प्रेषित कर दिया।
उसके क्रोध का घड़ा फूटते ही वह एक बच्चे की भांति शांत हो जाता है, बिलख बिलख कर रोने लगता है।
हमारे ग्रन्थ लिखे हैं गुह्य भाषा मे - जिनको आजकल cryptology या cryptic भाषा कहते हैं। उनको डिकोड करने की आवश्यकता है - नयी पीढ़ी तक पंहुंचाने के लिए। क्योंकि उन्हें शास्त्रों की भाषा नही समझ मे आती है। क्रिप्टोलॉजी उनको समझ मे आती है।
दोष उनका नही है - उन्हें इसी भाषा मे शिक्षा दी जा रही है। या तो हम ग्रंथ को उनकी समझ के अनुरूप डिकोड करें या उनको शाश्त्रो की भाषा मे पढने की व्यवस्था निर्मित करें।
Singh Tri Bhuwan
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