Wednesday 7 August 2019

#NO_RIP_प्लीज :

कृपया #RIP न लिखें। यह उन संस्कृतियों के लिए प्रयुक्त होता है जो डे ऑफ जजमेंट (आख़िरत) के दिन उन soul और रूहों का हिसाब होगा जो हजारों वर्षों से कब्रों में दफन हैं।
तब तक वे क्रोधित न हों, उत्पात न मचाएं, और शांति से सोती रहें, इसके लिए वे कहते हैं रेस्ट इन पीस।
हमारे यहां तो मौत जीव और जीवन की अनंत यात्रा और जात्यान्तर का एक पड़ाव भर है।
शरीर को जितने समय की प्राण ऊर्जा मिली थी, तब तक वह चली। अब उसे विराम देना है। नया चोला धारण कर नई ऊर्जा के साथ पुणः इसी भवसागर में वापस आना होगा। एक निश्चित अवधि के लिए।
इसको एक प्रतीक से समझने का प्रयास कीजिये।
भगवान श्री राम जब रावण का बध करके सोने की लंका को जीतते हैं तो विभीषण कहता है कि प्रभु आप लंका का शासन कीजिये और प्रजा का पालन कीजिये।
श्री राम पब्लिकली उद्घोष करते हैं:
"जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी"।
जननी और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती हैं।
फिर जब वे आकाश वाहन से लंका से अयोध्या को लौट रहे थे तो अयोध्या का परिचय देते हुए वह कहते हैं:
सुन कपीश अंगद लंकेशा।
पावन पूरी रुचिर यह देशा।
जद्यपि सब बैकुंठ बखाना।
वेद पुराण विदित जग जाना।
अवधपुरी सम प्रिय नहि कोई।
यह प्रसंग जानहि कोइ कोई।।
कह रहे हैं कि यह प्रसंग जानहि कोई कोई।
इसके पूर्व पब्लिकली उद्घोष किये थे - जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। लेकिन यहाँ कह रहे हैं कि -" जानहि कोइ कोई।
पूरी का अर्थ होता है देह, शरीर।
अवध का अर्थ है कि निश्चित अवधि के लिए।
यह बात कोई कोई जानता है।
क्योंकि यह गुह्य ज्ञान है।
कोडेड लैंग्वेज है।
अधिकारी पात्र ही समझ सकते हैं।
इसीलिए -" जानहि कोइ कोई"।
कुछ मूर्ख इन ग्रंथों को सोशियोलॉजी समझते हैं। उनके लिए तुलसीदास की मानस और भगवतगीता नहीं है।
उनको यदि समाजशास्त्र पढना ही है किसी ग्रंथ से तो कौटिल्य का अर्थ शास्त्र पढ़ें।
इसलिए RIP न लिखें।
बाकी जो भी आपको उचित लगता है वह लिखिए।

No comments:

Post a Comment