Wednesday, 7 August 2019

#भारतीय_संविधान_में_गहन_झूंठ:

गवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया 1919 को ब्रिटिश संसद ने पास किया था, जिसमें मुस्लिम, सिख, एंग्लो इंडियन, और क्रिस्चियन का अलग अलग कम्युनल प्रतिनिधित्व का विधान किया गया था।
अलग अलग क्यों ?
क्या यह भारत के लोगों की आवश्यकता थी?
नहीं यह ब्रिटिश दस्युवों की आवश्यकता थी - जो भारत को निरंतर 160 वर्षो से लूटते चले आ रहे थे। 1857 के बाद पुणः भारत ने उनका मुखर विरोध शुरू कर दिया था। विरोधियों की शक्ति को खत्म करना हो तो प्रलोभन सबसे बड़ा हन्थियार है यह हम सब जानते हैं। आज भी यह हन्थियार उपयोग में लाया जाता है।
एक और बात ध्यान देने वाली है कि क्या कारण है कि मुग़ल और तुर्क भारत मे ईसाइयो के पूर्व 800 वर्ष से शासक थे, लेकिन उनके विरुद्ध इतना मुखर और देशव्यापी विरोध क्यों नही हुवा?
इसके पूर्व जब भी विरोध हुआ उसका कारण राष्ट्रीय अस्मिता और धर्म की रक्षा कारण होता आया था। मेरा उद्देश्य उन विरोधों को कम करके आंकना नही है।
मेरा प्रश्न है कि इतना व्यापक विरोध क्यों नही हुवा था जबकि 1860 में इंडियन आर्म्स एक्ट बनाकर वे भारतीयों को निशस्त्र कर चुके थे। मुसलमान कभी भी हिंदुओं को निशस्त्र नही कर पाए थे। उनके पास इतनी बुद्धि भी संभवतः नही थी। वे तो अय्याशी और जिहाद से अधिक कुछ जानते भी नही थे। इसका कारण था कि मुघलो के आने के बाद भारतीय कृषि वाणिज्य शिल्प आधारित जीडीपी कम अवश्य हुई थी, लेकिन विनष्ट नही हुई थी। इसलिए उनके विरुद्ध कभी राष्ट्रव्यापी विरोध नही हुवा।
वही ब्रिटिश दस्युवों का निरन्तर और देशव्यापी विरोध हुआ।
इसका कारण था कि ब्रिटिश दस्युवों ने भारत को बुरी तरह लूटने के साथ ही साथ भारत के #कृषि_वाणिज्य_शिल्प का विनाश किया, जिसके कारण करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए और भूंखमरी के कगार पर पहुंच गए। तात्कालिक ब्रिटिश दस्तावेजों के माध्यम से विल दुरंत, जे सुन्दरलैंड, गणेश सखराम देउस्कर आदि के अनुसार 1850 से 1900 के बीच लगभग 3 करोड़ से अधिक भारतीय भुखमरी के कारण संक्रामक रोगों से प्रभावित होकर मौत के मुंह मे समा गए।
1901 में HH Risley ने हिंदुओं की वर्ण और जाति व्यवस्था को खत्म करके कास्ट सिस्टम बनाया, जिसमे तीन वर्णों ( क्षत्रिय ब्राम्हण और वैश्य -- आर्यन सवर्ण) को तीन ऊंची कास्ट घोसित किया और बाकी जितने लोग बेरोजगारी और भूंखमरी के शिकार हो रहे थे, उनको निम्न कास्ट घोसित कर 2378 कास्ट्स की लिस्ट बनायी।
1911 में वनवासी और पहाड़ी हिंदुओं को उन्होंने हिन्दुओ से अलग घोसित किया - एनिमिस्ट
इसके बहुत पूर्व नग्रेजो का सशस्त्र विरोध करने वाले हिन्दू समुदायों को उन्होंने क्रिमिनल ट्राइब घोसित किया हुआ था।
1917 में इन्ही निम्न लिस्टित कास्ट्स को डिप्रेस्ड कास्ट घोसित किया।
1921 में डिप्रेस्ड कास्ट्स को जनगणना के माध्यम से वैधानिक बनाया गया।
1828 में जब गवर्नमेंट एक्ट ऑफ इंडिया के क्षद्म वेश में हिंदुओं को विभाजित करने हेतु साइमन भारत आया तो भारत के भीमराव अंबेडकर जी उससे मिलते हैं और उसके अनुसार हिन्दुओ को विभाजित करने के कार्य मे सहयोग देते हुए घोसित करते है कि डिप्रेस्ड कास्ट्स ही untouchable हैं। लेकिन उन्होंने इसको हिन्दू धर्म का अभिन्न नीति प्रमाणित करते हुए जो तर्क रखे वे उनके निजी तर्क थे, या नग्रेज़ों द्वारा सिखाये पढ़ाये तर्क थे, यह कहना मुश्किल हैं लेकिन वह तर्क किसी संस्कृत ग्रंथ में संदर्भित नहीं हैं।
अपने तर्क को प्रमाणित करने हेतु लोथियन समिति को जो उन्होंने रेगुलशन 1806 vi का प्रमाण दिया वह भी असत्य था, अधूरा था, सत्य को छुपाकर अर्ध सत्य आधारित था।
उसी को प्रमाण मानते हुए 1935 के गवर्नमेंट एक्ट के तहत 429 कास्ट्स को शेड्यूल्ड कास्ट घोसित किया गया।
वही शेड्यूल 1948 में संविधान में सम्मिलित किया गया।
प्रश्न यह उठता है कि तथ्यों को छुपाना या गलत तथ्य प्रस्तुत करना तब अपराध था या नहीं, और आज भी वह अपराध है या नही?
यदि कोई एक्ट गलत बयानी के आधार बनाया गया हो तो उसके लिए संविधान में क्या प्रावधान है?
वह गलतबयानी आधारित तथ्य यदि संविधान का अंग है तो उसको चुनौती दी जा सकती है क्या?
मेरी लिस्ट के काबिल अधिवक्ता क्या कहते हैं इस विषय पर?
©त्रिभुवन सिंह

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