Saturday 14 May 2016

सनातनी इकनोमिक मॉडल :PMO India के नाम एक खत :

सनातनी इकनोमिक मॉडल
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PMO India के नाम एक खत :
मोदी जी आपको पता है कि चाहे कैपिटलिज़्म हो या फिर सोसियलिस्म - दोनों का मूलमंत्र एक ही है - मास प्रॉडक्शन, और हमको यही एक मात्र मोडेल समझ मे भी आता है / आपके एक कार्यकर्ता ‪#‎Sanjay_pasawan‬ जी ने सनातन मोडेल ऑफ इकॉनमी के बारे मे रुचि प्रकट की थी /
वही आप अपने देश के आर्थिक इतिहास उठाकर देखिये , सनातन मोडेल ऑफ इकॉनमी का अर्थ है - Production By Masses / और यही भारत के गरीबी और बेरोजगारी उन्मूलन का एकमात्र विकल्प भी है / नीचे 1901 मे छपी पुस्तक इकनॉमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया - रोमेश दुत्त कि पुस्तक से कुछ स्नाप शॉट लिए हैं , जिनमे आपको एक मोटे तौर पर उस इकॉनमी का वर्णन है / क्या हम ये व्रत नहीं ले सकते कि हम विश्व को पुनः हस्त निर्मित वस्त्रों से ढँक देंगे ?

1807 का यह डाटा बताता है कि 1807 तक सूट कातने का काम हर घर की हर कास्ट की , स्त्री करती थी / और कब ? दोपहर बाद आराम के छड़ों मे / और उससे प्रति स्त्री को सालाना 3 -7 रुपये की कमाई उस समय होती थी , जो उसके पारिवारिक आय के श्रोत को बढाती थी , और साथ मे उसको घर और समाज मे सम्मान भी दिलवाती थी / प्रत्येक जिले मे उसके क्षेत्रफल के अनुसार 4500 - 6000 तक छोटे छोटे लूम होते थे , जिनको मात्र एक स्त्री और एक पुरुष मिलकर चलाते थे और 30- 60 रुपये प्रतिवर्ष की कमाई करते थे /
जहां तक मुझे पता है आज एक जिले मे इतने ही ग्राम समाज है ,जितने लूमों कि संख्या मैंने लिखा है /

क्या यह असंभव कार्य है कि सनातन के इस मोडेल को पुनर्जीवित किया जा सके / मेरा मानना है कि इस मोडेल का आधुनिकीकरण कर हर घर मे पुनः स्पिननिंग शुरू किया जा सकता है / थोड़ा कष्टसाध्य और मुश्किल अवश्य लगता है , परंतु संभव है /
क्या ‪#‎मनरेगा‬ , जिसके तहत कच्चा काम किया जा रहा है , और जिसमे आज भयानक लूट मची है , ऐसा बहुतों का मानना है , से इस योजना को जोड़कर घर घर गाव गाव स्पिननिंग नहीं शुरू किया जा सकता ?
शायद कपास की कमी की बात आए , तो हमे भूलना नहीं चाहिए कि अगर अंग्रेज़ इस देश से कच्चा कॉटन और सिल्क इम्पोर्ट कर , मैंचेस्टर से फ़ैक्टरी निर्मित कपड़ो से भारत को भर सकता था , तो हम भी ये काम कर सकते है /
क्या हर गाव समाज मे एक ‪#‎सोलर_लूम‬ से इन सूतो को वस्त्र निर्माण मे नहीं लगाया जा सकता / MNREGA का शायद इससे अच्छा इश्तेमाल नहीं हो सकता /

एक बात और - आप जानते हैं कि भारत की कुल जीडीपी का 18% कृषि से , 18% सरकार से , मात्र 14% कॉर्पोरेट से आता है , बाकी 50% अभी भी स्वरोजगार से आता है / तो इस स्वरोजगार मे बृद्धि कीजिये / निर्माण भी होगा , रोजगार भी बढ़ेगा , नारी का शशक्तीकर्ण भी होगा , और गाव से पलायन भी बंद होगा / गाव के लोग भी शहरों की मलिन बस्तियों मे रहना बंद कर वापस गाव कि ओर लौटेंगे /
बंदे मातरम /
Tribhuwan Singh's photo.
 Tribhuwan Singh's photo.
 
 
  
Tribhuwan Singh's photo.Tribhuwan Singh's photo.

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