यदि यह समझ मे आ जाय कि हमारे विचार हमारे नहीं हैं, वे बाहर से संग्रहीत सूचनाएं मात्र हैं, तो उनके प्रति आसक्ति कम हो जाती है।
इन सूचनाओं को अपना समझना और उनके प्रति घोर आसक्ति ही हमारे मस्तिष्क में समस्त उपद्रव की जड़ है।
यह मैं फेसबुक पर भी देखता हूँ। निजी जीवन मे भी। और अपने बैच के व्हाट्सएप ग्रुप में भी।
हमारे समस्त ह्यूमन सिस्टम में यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण चीज है तो वह है यह शरीर और उसके माध्यम से जिया जाने वाला जीवन।
जीवन को अनुभव करने के लिए समस्त सूचनाओं से आसक्ति खत्म करने की आवश्यकता होती है।
ध्यान रहे। सूचना लेने से परहेज बरतने की बात नही कर रहा, उसके प्रति आसक्ति, अपनापन खत्म करने की बात कर रहा हूँ। क्योंकि सूचनाएं बाहर से लेना बंद भी कर दोगे सप्रयास तो भी लोग सूचनाएं हमारे ऊपर प्रेषित करते रहेंगे।
क्योंकि हमारे मन के काम करने की एक ही तकनीक है - समस्त वस्तुवों, व्यक्तियों, भावनाओं और विचारों के प्रति, जिनसे हमारा साक्षात्कार होता है, उनके प्रति राग या द्वेष।
लाइक या dislike.
लाइक या dislike.
यह बात तुरंत हमारे मन मे आती है - इसी को प्रतिक्रिया कहते हैं। आवश्यकता है प्रति संवाद की। प्रतिक्रिया तो मन का कार्य है। प्रति संवाद विवेक का काम है।
यही बात भगवान कृष्ण भगवतगीता में कह रहे हैं:
इंद्रियस्य इंद्रियस्य अर्थेषु राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं आगच्छेत तौ हि अस्य परिपंथनौ।।
इंद्रियस्य इंद्रियस्य अर्थेषु राग द्वेष व्यवस्थितौ।
तयो न वशं आगच्छेत तौ हि अस्य परिपंथनौ।।
हमारे मन मे सदैव राग और द्वेष का ही भाव रहता है अर्थात हम सदैव प्रेज्यूडिस रहते हैं। यही जीवन को अनुभव करने में सबसे बड़ी बाधा है।
यही तप है, यही शम है, यही दम है।
यही पूजा और तपस्या है।
यही पूजा और तपस्या है।
इतना आसान नहीं है इसे समझना और इसका अनुपालन करना।
लेकिन क ख ग घ पढना लिखना और समझना भी आसान नही था। भूल गए कि क को समझने के लिये कबूतर भी पढना पड़ता था?
लेकिन क ख ग घ पढना लिखना और समझना भी आसान नही था। भूल गए कि क को समझने के लिये कबूतर भी पढना पड़ता था?
©त्रिभुवन सिंह
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