चित्रगुप्त एक पौराणिक चरित्र है, जो यमराज के यहां लोगों का डेटा मेन्टेन करते हैं। ऐसा लोग बोलते हैं। पुराण प्रतीकों की भाषा मे बात करते हैं।
लेकिन दुर्भाग्य यह है कि भारतीय इंटेलेकटुअल The Vinci Code के प्रतीकों पर तो सहज विस्वास कर लेते हैं, लेकिन पुराण के प्रतीकों को माइथोलॉजी बोलते हैं।
#कोलोनियल_हैंगओवर का असर है यह।
भारतीय सनातन सिद्धांत के अनुसार दैव ( गॉड ) जैसी कोई शक्ति नही है जो आपके प्रारब्ध को निर्धारित करती हो, जो आपको स्वर्ग या नरक में भेजती हो।
यह अब्राहमिक मजहब और रिलीजन का भारतीय मनस के ऊपर आरोपण है, यदि कोई भारतीय ऐसा समझता है तो।
दूसरी बात - यथा पिंडे तथा ब्रम्हांडे।
जो इस पिंड अर्थात शरीर में है, वही ब्रम्हांड में है। मनुष्य ब्रम्हांड का एक सैंपल है।
जो इस पिंड अर्थात शरीर में है, वही ब्रम्हांड में है। मनुष्य ब्रम्हांड का एक सैंपल है।
तो यमराज और चित्रगुप्त भी आपके इसी पिंड में रहते हैं। जिस दिन आप जन्म लेते हैं उसी दिन से दोनो सक्रिय हो जाते हैं। जन्म के साथ ही मृत्यु शुरू हो जाती है।
सृष्टि लय और प्रलय - ब्रम्हा विष्णु महेश यह तीन शक्तियां निरन्तर आपके अंदर काम करती रहती हैं।
विज्ञान भी सहमत हो गया है कि शरीर की नई नई कोशिकाएं, पुराने मृत कोशिकाओं को विस्थापित करती रहती हैं।
आप जो भी कर्म करते हैं -
" शरीर वाक मनोभि: यत कर्म आरभते नर:"- भगवतगीता
आप जितने भी कर्म शरीर वाणी और मन से करते हैं, उसी के अनुरुप इस जीवन मे आपको परिणाम मिलते हैं।
इसमे किसी भगवान को क्या लादना और लेना?
विज्ञान भी सहमत हो गया है कि शरीर की नई नई कोशिकाएं, पुराने मृत कोशिकाओं को विस्थापित करती रहती हैं।
आप जो भी कर्म करते हैं -
" शरीर वाक मनोभि: यत कर्म आरभते नर:"- भगवतगीता
आप जितने भी कर्म शरीर वाणी और मन से करते हैं, उसी के अनुरुप इस जीवन मे आपको परिणाम मिलते हैं।
इसमे किसी भगवान को क्या लादना और लेना?
आप डॉक्टर बनने के लिए कर्म करोगे तो डॉक्टर बन जाओगे। वकील बनने के लिए कर्म करोगे तो वकील बन जाओगे। साधु या आर्य बनने की दिशा में कर्म करोगे तो साधु या आर्य बन जाओगे। असुर या अनार्य बनने के लिए कर्म करोगे तो असुर या अनार्य बन जाओगे।
लेकिन यह कर्म गुप्त चित्रों ( कोडेड या encripted messages ) के रूप में आपके मन मे संकलित रहते हैं - इसी को चित्र गुप्त कहा गया है पौराणिक कथाओं में।
आपके कर्म किसी तीसरे व्यक्ति को न याद हो लेकिन वह आपकी स्मृति में सदैव सुरक्षित रहती है। आपके मन की सारी बातें सिर्फ आपको पता होती हैं। आपकी पत्नी बेटा बेटी तक को नही पता होती आपके मन की बात।
और किसी भगवान को आपके मन से कुछ लेना लादना है नहीं। उसको तो आप तभी समझ पाएंगे जब आपके मन से समस्त कोडेड मैसेज विलुप्त हो जाएं।
आपके कर्म किसी तीसरे व्यक्ति को न याद हो लेकिन वह आपकी स्मृति में सदैव सुरक्षित रहती है। आपके मन की सारी बातें सिर्फ आपको पता होती हैं। आपकी पत्नी बेटा बेटी तक को नही पता होती आपके मन की बात।
और किसी भगवान को आपके मन से कुछ लेना लादना है नहीं। उसको तो आप तभी समझ पाएंगे जब आपके मन से समस्त कोडेड मैसेज विलुप्त हो जाएं।
आपके मन मे संकलित वासनाओं की संकलित डेटा के साथ जब आपकी मृत्यु होती है, अर्थात जब यमराज के काले भैंसे पर आप सवार होते हैं तो उसी घटना को मृत्य सम्पन्न होना कहते हैं। जैसे आप किसी समारोह के खत्म होने पर कहते हैं कि समारोह सम्पन्न हुवा।
आपके मन से संगृहीत encripted messages के अनुरूप आपको नया जीवन मिलता है जिसको प्रारब्ध या कर्म संस्कार भी कहते हैं। अब आप नए जीवन चक्र में प्रवेश करते हैं।
चित्रगुप्त का बस यही अर्थ है।
और यमराज का भी।
चित्रगुप्त का बस यही अर्थ है।
और यमराज का भी।
आपने कीड़ो की लाइफ साईकल पढ़ी है न।
उसमे अविस्वास करते हो ?
नही।
तो फिर इस जीवन मृत्य के साईकल में विस्वास क्यों नही करते?
उसमे अविस्वास करते हो ?
नही।
तो फिर इस जीवन मृत्य के साईकल में विस्वास क्यों नही करते?
पिछली पोस्ट पर उठी कुछ जिज्ञासाओं का उत्तर है यह पोस्ट।
तुलसीदास लिखते हैं :
नहिं कोऊ सुख दुख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सुनु भ्राता।।
नहिं कोऊ सुख दुख कर दाता।
निज कृत कर्म भोग सुनु भ्राता।।
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