Monday 7 October 2019

#ब्रम्हानिस्म_और_कास्ट : एक अभारतीय और औपनिवेशिक दस्युवों द्वारा रचित अवधारणा।

#ब्रम्हानिस्म_और_कास्ट : एक अभारतीय और औपनिवेशिक दस्युवों द्वारा रचित अवधारणा।
#ब्रम्हानिस्म शब्द का प्रयोग ईसाई मिशनरियों ने शुरू किया था। रोबर्ट de निबोली अपने आपको रोमन सन्यासी बताकर हिन्दू समाज मे धर्म परिवर्तन की सेंध लगाना चाहता था।
एक मिशनरी ईसाई मोनिर एंड मोनिर, जिसने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत की एकमात्र उपलब्ध अकादमिक पोस्ट बोडेन चेयर ऑफ संस्कृत के लिए, महान संस्कृतज्ञ मैक्समुलर को पराजित करके वह सीट हथियाया था। वह लिखता है "जब ब्रम्हानिस्म के शक्तिशाली किले को कमजोर कर दिया जाय तो ईसाइयत के सैनिक एक बार मे धावा बोलकर उसको समाप्त कर दें"।
लेकिन भारत मे जाति नामक संस्था के जीवित रहते यह सम्भव नही था। क्योंकि जाति एक विस्तारित वंश वृक्ष या समुदाय हुवा करता था, जिसको प्रशासित और नियंत्रित करने का उत्तरदायित्व उसी समुदाय के द्वारा चुने हुए बुजुर्ग करते थे। वह ईसाइयत के प्रवेश के लिए अभेद्य किला था। क्योंकि धर्म परिवर्तित व्यक्ति को तुरन्त जाति बाहर किया जाता था।
इसीलिए मैक्समुलर नामक फ़ण्डामेंटालिस्ट ईसाई ने अपना अनुभव लिखा:
" जाति ...... धर्म परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा है। लेकिन हो सकता है कि यह कभी पूरे समुदाय के धर्म परिवर्तन हेतु शक्तिशाली इंजन की तरह काम करे"।
मैक्समुलर ने 1859 में #आर्यन_अफवाह नामक फिक्शन की रचना किया जिसको फेक साइंस में विज्ञान की तरह प्रसारित प्रचारित किया गया।
इसलिए जाति को हिंदूइस्म का विलेन बोलकर प्रसारित करने की योजना बनायी गयी। इससे ब्राम्हण और जाति दोनो को ठिकाने लगाया जा सकता था।
1872 में "कास्ट एंड ट्राइब्स ऑफ इंडिया" के लेखक एम ए शेरिंग नामक धर्मान्ध और फ़ण्डामेंटालिस्ट पादरी लिखता है:
" कास्ट हिंदुओं के पूरे धार्मिकता का वर्णन करती है। कास्ट ने ही हिंदुओं को गुलाम बनाया है और यह 'इन सहज विश्वासी गुलाम हिन्दू मनोमस्तिष्क ने ही सत्ता और अच्छे उपहारों के प्यासे दुस्ट ब्राम्हणो ( Wily Brahmins) को स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है। ये दुस्ट ब्राम्हण ही विशेष दोषी हैं। ब्राम्हण न सिर्फ दुस्ट है वरन 'अहंकारी' घमंडी, स्वार्थी,अत्याचारी, आपस मे सांठ- गांठ करने वाला, और महत्वाकांक्षी है। शेरिंग इस बात पर दृढ़ था वैदिक काल के बाद जाति की उत्पत्ति निश्चित तौर पर ब्राम्हणो का षड्यंत्र था। " कास्ट की उत्पत्ति के लिए ब्राम्हण उत्तरदायी हैं। यह उसी का अविष्कार है"।
इस तरह के सतही और निराधार गालियां का साँचा ( टेमपलेट) तैयार किया गया जो आज तक काम कर रहा है।
आगे चलकर मैक्समुलर के आर्यन अफवाह के सांचे को हिन्दू समाज पर फिट किया गया तो HH Risley जैसे अनेक रेसिस्ट फ़ण्डामेंटालिस्ट ईसाई शासकों ने इसी तरह के अन्य फेक न्यूज़ की रचना किया।
एक साथ उन्होंने दो शिकार किया - हिन्दू समाज की मेधाशक्ति को गाली देकर उसे निम्न प्रमाणित किया। और समाज के आंतरिक ग्लू "जाति" को निम्न और ब्राम्हणो के द्वारा रचित निम्न सामाजिक संरचना बताकर उस जाति नामक उस अभेद्य दुर्ग को तोड़ने में सफल रहे जिसके जीवित रहते ईसाइयत का हिन्दू समाज मे प्रवेश सम्भव नही था।
आगे चलकर अम्बेडकर जैसे "एलियंस और स्टूपिड प्रोटागोनिस्ट्स" पैदा होंगे जो फ़ण्डामेंटलिस्ट ईसाइयों के बिछाए गए नरेटिव के जाल में फंसकर #AnnihilationOfCast जैसी अवधारणा का जन्म देंगे जिन्हें न वर्ण व्यवस्था की समझ थी न जाति की।
संविधान में कास्ट को घुसेड़वाना उसी ईसाई फ़ण्डामेंटलिस्ट षड्यन्त्र का हिस्सा था, जिसको हमारे पूर्वजों ने बिना सोचे समझे लपक लिया।
( ब्रेकिंग इंडिया - राजीव मल्होत्रा, और तथ्यों के आलोक में अम्बेडकर - डॉ त्रिभुवन सिंह से साभार उद्धरित है अधिकतर कंटेंट)
#नोट : कास्ट न वर्ण है, और न ही जाति।
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अब एक लेख पढिये जिसे किसी स्कॉलर ने लिखा है :

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