Saturday 12 December 2015

#‎सभ्य‬ (civilized) की परिभाषा : एक प्रयास

मैंने ‪#‎सभ्य‬ (civilized) को परिभासित करने के लिए लोगों को आमन्त्रित किया था लोगों को भारतीय , पाश्चात्य और अरेबिक ग्रन्थों से / जो भी उत्तर आए वो उत्साहवर्धक थे / मैं भी प्रयास करता हूँ / अमरसिंह प्रणीत ‪#‎अमरकोश‬ मे लिखा है कि -
"खट सज्जनस्य"
अर्थात सज्जन लोगों को 6 नामों से संबोधित किया जाता है /
महाकुल कुलीन ‪#‎आर्य‬ #सभ्य सज्जन ‪#‎साधवह‬
इसमे साधू या साधव शब्द सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है ग्रन्थों मे /
‪#‎Civilized‬ का अर्थ cambrige शब्दकोश मे जो परिभासित किया गया है उसे पढ़ें - http://dictionary.cambridge.org/dictionary/english/civilized
अब संस्कृत ग्रन्थों के अनुसार सभ्य या साधव को समझें /
- " विद्या विवादय धनम मदाय शक्ति परेशम पर पीडनाय
खलुश्च ‪#‎साधोरविपरीतम‬ एतद ज्ञानय दानाय च रक्षणाय "
अर्थात दुस्ट लोगों के विद्या धन या शक्ति आ जाय तो उसका प्रयोग विवाद पैदा करने , स्वयं के अहंकार की पुष्टि केई लिए या फिर कमजोर लोगों को पीड़ित करने के लिए करते हैं / लेकिन ‪#‎साधु‬ या #सभ्य लोग इंका उपयोग अशिक्षितों को ज्ञान दान , गरेबों को धन दान और कमजोर की रक्षा के लिए करते है /
एक और उद्धरण -
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः ।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभृतयः ॥
नदियाँ अपना पानी खुद नहीं पीती, वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते, बादल (खुद ने उगाया हुआ) अनाज खुद नहीं खाते । सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए हि होता है ।
उसी का अवधी मे एक उद्धरण -
वृक्ष कबहु नहीं फल भखई नदी न संचय नीर
परमारथ के कारणे ‪#‎साधुन‬ धरा शरीर /
तुलसीदास ने लिखा -
परहित सरिस धरम नहीं भाई
परपीड़ा सम नहीं अधमाई //
गांधी के आर्थिक विचारों की व्याख्या करते हुये J C Kumarappa ने गांधी और चर्चिल की तुलना करते हुये लिखा कि Gandhi had standard of life and Churchill had standard of living / अर्थात गांधी जीवन के मूल्यों के लिए जिये और चर्चिल जीवन के भौतिक सुख के लिए /
सभ्य और सभ्यता का भारतीय संस्कारण , पाश्चात्य संसक्रण से एकदम विपरीत है / अरेबिक और पेरसियन मे इसके समकक्ष कोई उद्धरण मुझे तो याद नहीं , आपको यदि याद हो तो मेरे ज्ञान को संवर्धित करें /
आज विकसित देश ‪#‎विकाश‬ करके ब्रम्हाण्ड को ग्लोबल वार्मिंग का उपहार दे रहे हैं , और अविकसित देशों को उपदेश , तो ऐसे मे कम से कम भारत वासियों को ये दृष्टिकोण समझना चाहिए कि सभ्य और सभ्यता के हमारे मायने उनसे अलग हैं/
‪#‎विकास‬ और ‪#‎विनाश‬ के फर्क को पहचाने /
‪#‎भारत_बदल_रहा_है‬ /

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