Tuesday, 29 September 2015

जब ‪#‎ब्रामहन‬ शिक्षा देते थे , तो स्कूलों मे शूद्र छात्रों की संख्या गुरुकुलों मे ब्रांहनों की तुलना मे, 1835 तक 4 गुना थी /

जब ‪#‎ब्रामहन‬ शिक्षा देते थे , तो स्कूलों मे शूद्र छात्रों की संख्या गुरुकुलों मे ब्रांहनों की तुलना मे, 1935 तक 4 गुना थी / शुल्क लिया जाता था माँ बाप की आर्थिक और सामाजिक हैसियत के अनुसार / दो आने से रुपए तक प्रति व्यक्ति /
फिर मैकाले आया 1935 मे / 1858 मे लागू हुयी उसकी शिक्षा व्यत वस्था / जिसके बारे मे विल दुरान्त लिखते हैं कि इतनी महंगी शिक्षा ग्रहण करते हुये जब कोई भारतीय हाइयर एडुकेशन मे दाखिला लेता था , तो उसको वो सब पढ्ना होता था , जो उसको अभारतीय होता था / उसके बावजूद न जाने कितने वीर योद्धा अभारतीय नहीं बने , दादा भाई नौरोजी , गणेश सखाराम देउसकर लाल बाल पाल गान्धी , भगत सिंह , चंरशेखर आजाद , विस्मिल और न जाने कितने /
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1823 में ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा एकत्रित किये गए डेटा का एक सैंपल ।
गुरुकुल शिक्षा पद्धति में जब तक शिक्षा ब्राह्यणों के हाँथ में थी तब तक शिक्षा में भेद नही किया जाता था ।
शुद्र छात्रों की संख्या ब्राम्हण छात्रों से चार गुनी थी ।
सरकारी सहायता से मुक्त ।
छात्रो का शिक्षक को अनुदान 2 आना से लेकर 1 रूपये तक महीना था , छात्र के माँ बाप के आर्थिक हैसियत के हिसाब से ; और 15 दिन में एक सेर सिद्धा चावल दिया था ।
फिर 1935 में आया मैकाले ।
मैकाले दीक्षित ‪#‎आंबेडकर‬ ने कहा कि वेदों में लिखा है कि चूँकि शुद्र परमब्रम्ह के पैरो से पैदा हुवा है इसलिए उसको शिक्षा से वंचित किया गया है।
अम्बेडकर का कच्चा चिटठा खोलता एक अभिलेख।
‪#‎अंबेडकर_बध‬ होकर रहेगा /

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