Friday, 30 January 2015

Precolonial Era में भारत में मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट आधारित वाइब्रेंट इकॉनमी का मैन्युफैक्चरर कौन था ? और उसके वंशज कहाँ गए ??

दलित चिंतन की सोच मनुस्मृति मे फँसकर स्वाहा हो जाती है / लेकिन इन तथ्यों का जबाब वो कब देंगे ? जलाओ मनुस्मृति लेकिन इन ऐतिहासिक तथ्यों पर भी एक नजर डालो / दलित नवयुवकों के मन मे कुंठा घृणा भरने वालों क्या तुम उनका भला कर रहे हो ?
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अमिय कुमार बागची एक बहुत तथ्यात्मक आर्थिक इतिहासकार हैं।उनका रिसर्च अभूत पूर्व है।उन्होंने लिखा है कि Precolonial Era में भारत में Smithian Economy थी मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट आधारित वाइब्रेंट इकॉनमी ।Smithian से उनका तात्पर्य मार्क्स के जन्म पूर्व की यूरोप की आर्थिक व्यवस्था Adam Smith का आर्थिक पूँजीवादी सिद्धांत।
( एडम स्मिथ ने राष्ट्र और अर्थ व्यवस्था , दोनों को अलग अलग बताया/ राष्ट् का काम मात्र 3 है:
1- बाहरी शक्तियों से राष्ट्र की रक्षा करना /
2- देश मे समाज मे शांति की स्थापना अर्थात law and Order  कायम करना /
3- बेसिक इनफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना /
यानि राज्य या राष्ट्र का अर्थ व्यवस्था  मे कोई दखल नहीं होना चाहिए/ ) 

फर्क सिर्फ इतना है कि भारत में पूँजीवादी एक तो थे नहीं और अगर थे तो सत्ता से बहुत दूर थे।
यूरोप में इसका ठीक उलट था। पूंजीवादी ही सत्ताधारी थे। आज भी विश्व की  सर्वोच्च  राजनैतिक  शक्ति  ईस्ट इंडिया कंपनी का मालिक रोथ्चिल्ड है /
भारत का मैन्युफैक्चरर विलासी मुग़ल शाशकों से शोषित अवस्य था परंतु बेरोगार और बेघर नहीं हुवा था।colonial शासन के 60 वर्ष के भीतर ही भारत का ये मैन्युफैक्चरर वर्ग की पूँजी और रोजगार नष्ट कर दी गयी।  भारत एक एक्सपोर्टर के बजाय इम्पोर्टर देश हो गया।
 देश के दलित और वामपंथी विद्वान ये बताने का कष्ट करेगा कि क्या कि ये मैन्युफैक्चरर कौन थे और इनकी वंशजों का कालान्तर में क्या हुवा ?????
एक समय जब इंग्लंड जब सूती वस्त्र आयात करता था , तो इनलैंड के ऊन  के वस्त्रनिर्माताओं ने एशिया के सूती वस्त्रों के आयात के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन किया था, क्योंकि इंग्लैंड सूती वस्त्र का निर्माण नहीं करता था, लेकिन ऊन के वस्त्रों की मैनुफेक्चुरिंग किया करता था /

1660 से 1700 का इंग्लॅण्ड के सम्पूर्ण आयात का 30 % एशिया और अमेरिका से आता था।
1700 में इंग्लैंड भारत और अन्य देशों से सूती वस्त्र का आयात करता था जिसको एउरोप के बाकी देशो मे पुनर्निर्यात करता था  /   re-एक्सपोर्ट होने वाला 40 % textile
भारत से इम्पोर्ट होता था।
1700 में इंग्लॅण्ड ने भारत से होने वाले इम्पोर्ट पे ban लगा दिया गया सिवा re एक्सपोर्ट होने वाले कपड़ों के। ब्रिटिश की संसद ने इसके लिए -" कालिकों  एक्ट " बनाया /
यानि घरेलू इस्तेमाल के कपड़ों पर ban लग गया। हाँ व्यापार हेतु कपड़ो का आयात जारी रहा।

  मेरा प्रश्न इसी सन्दर्भ में हैं /
इस एक्सपोर्ट क्वालिटी प्रोडक्ट का मन्युफॅक्टरर कौन था ??
और जब भारतीय इकॉनमी नस्ट हुई तो इस विशाल मैन्युफैक्चरर जन आबादी का हस्र क्या हुवा ?

इसका जबाब चिंतक मनुस्मृति में न खोज पाएंगे।
JNU में मनुस्मृति की होलिका भर ही लगा सकते हैं ।

 बागची जी ने neocolonial लेखन को , जो ब्रिटिश रूल को भारत का बेहतरी मानते हैं ,उनको एक संज्ञा दी -Phantasmagorical.  यानी सन्निपात के ज्वर में जैसे आदमी बोलता है।
  ईसाईयों ने भारत का आर्थिक ढांचा नस्ट किया और जो लोग उस आर्थिक ढांचे के प्रोड्यूसर और मार्केटियर थे उनकी रोजी नस्ट की ।वे बेघर और बेरोजगार हुये । और इसी आबादी को जो मैन्युफैक्चरिंग में सर्वाधिक योगदान देती थी जब दरिद्रता और भुखमरी की चपेट में आई तो संस्कृत शासत्रों  की उल जलूल व्याख्या करके " द्रविड़ शुद्र अतिशूद्र अवर्ण असवर्ण" आदि शब्दों की लुगदी फेंटकर ईसाइयत में धर्म परिवर्तन का एक आधार तैयार किया।
और वो आज भी जारी है।
उनकी मदद भारत सर्कार के खर्चे पे एक विश्वविद्यालय है JNU के विद्वान करते हैं  ,वहां ये समाज के बटवारे के लिए सर्कार से वेतन और अनुदान लेते हैं ।
 बागची जी लिखते हैं कि "बिहार और  बंगाल के सकल घरेलू उत्पाद का 7.07 परसेंट देश के बाहर एक्सपोर्ट हो जाता था जिसके एवज में कुछ लौट के आता ही नहीं था।"
ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग के लिए पूँजी ही खत्म हो गयी तो लोगों के पास बेरोजगार होने के अलावा कोई चारा ही नही बचा।
 1820 के बाद भारतीय टेक्सटाइल का एक्सपोर्ट और घरेलु मांग में भयानक कमी आई , इस कारण कताई और बुनाई के क्षेत्रो में भी सर्विसेज की आवश्कता घट गयी औऱ घरेलू उत्पादन भी घट गया।
दूसरी तरफ लैंड टैक्स की जबरदस्त वसूली के कारण खेती और सम्बंधित उद्योगों के इन्वेस्टमेंट में अत्यधिक गिरावट आई।
ये था उस भयानक बेरोजगारी का कारण जिसको मार्क्स भी लिखता है और पॉल केनेडी भी ।

पॉल के हिसाब से 700 % de industrialization हुआ / 

ऐसे मे   मेरा प्रश्न फिर वहीँ आकर विश्राम करने लगता है कि कहाँ गए वो और उनकी संताने , जो इन एक्सपोर्ट क्वालिटी प्रोडक्टस के निर्माता थे ?? 

गणेश सखाराम देउसकर के अनुसार , 1875 से 1900 के बीच तो दो करोड़ लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्याग  देते हैं / बाकी लोग शहर मे मिल खदान मे रोजगार खोजते हैं जहां काम की भयानक मारा मारी है / और will Durant के अनुसार बाकी बेरोजगारों की फौज मे जो लोग शौभाग्यशाली थे , उनको गोरों का मैला उठाने का काम मिल जाता है , क्योंकि यदि गुलाम इतने सटे हों तो सौचालय बनवाने की फजीहत कौन मोल ले ?
सरकारी दस्तावेजो से ये पता चलता है कि दक्षिण भारत के किसानो की ब्रिटिश शासन काल में भयानक दुर्दशा थी।
बेल्लारी के कॉल्लेक्टर pelly के 1851 की रिपोर्ट के अनुसार वहां के मात्र 17 प्रतिशत रैयत (किसान) अच्छी दशा में थे ।बाकि के 49 प्रतिशत लोगों को फसल गिरवी रखनी पड़ती थी और 34 प्रतिशत लोगों को खड़ी फसल बेचनी पड़ती थी, किश्त चुकाने के लिए।
  बुचनन हैमिलटन के अनुसार इस de industrialisation का सबसे बुरा प्रभाव सभी वर्गों के महिलाओ की आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता और ऑटोनोमी पर पड़ा।
क्योंकि स्पिनिंग सभी महिलाओं के इनकम का जरिया था खास तौर पर समाज के उस वर्ग का जिनकी महिलाये सामाजिक कारणों से घर के बाहर नहीं निकलती थीं। बूचनान के अनुसार  इन महिलाओं की दोपहर के बाद हंसी खेल के साथ साथ  स्पीनिंग  से  प्रति  महिला  3-7 रुपये सालाना  कमाई  होती  थी , जो परिवार की कमाई  को संवर्धित करती थी /
हालाँकि weavers ने परिस्थितियों से समझौता करते हुए मोटे कपड़ों का निर्माण जारी रखा परंतु गिरती हुई अर्थव्यवस्था में उनकी इनकम बहुत कम हो गयी और वो व्यापारियों और कर्जदाताओं के कर्जदार हो गए ।
इन परिस्थियों में यदि कर्जा लेने वाला weaver मुसलमान निकला और कर्जदाता हिन्दू और उनमे कुछ विवाद हुवा तो अंगरेज अधिकारी उसपे धार्मिक रूप देते हुए उसको धर्मांध जुलाहा करार देते थे।
 इस बात पर सर्व सहमत है कि जो राशि ब्रिटेन ने जो सरप्लस पूँजी 1913 -14 में विश्व भर में किया वो 4000 मिलियन स्टर्लिंग थी जिसका 75 से 95 % पूँजी भारत की लगी थी। इसी पूँजी के दम पर अमेरिका कनाडा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसी जगहों पर इन्होंने माइग्रेशन किया ।इसमें वो पूँजी भी है जो इन्होंने वहां के मूलनिवासियों की लूटी थी।

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