Friday, 2 January 2015

भारतवर्ष में मॉडर्न Caste सिस्टम का कोई ऐतिहासिक इतिहास और लेखन 1857 के पहले नहीं मिलता , हाँ वर्ण व्यवस्था अवश्य थी /

भारतवर्ष में Caste सिस्टम का कोई ऐतिहासिक इतिहास और लेखन 1857 के पहले नहीं मिलता , हाँ वर्ण व्यवस्था अवश्य थी /
अंग्रेजों के शाशन काल में Caste सिस्टम एक आयातित सोच और फलसफा है / आज जो लोग भी आधुनिक लेखक है उनको Caste सिस्टम और वर्ण व्यवस्था में कोई अंतर हैं शायद उससे अवगत नहीं है /
भारतवर्ष कि प्राचीनतम और आज तक चलने वाली मूल भाषा संस्कृत है/ संस्कृत ग्रंथों में जाति शब्द का कोई उल्लेख नहीं है , लेकिन अमरकोश के अनुसार जाति शब्द का अर्थ कुछ वन औसधि और सामान्य जन्म भर है  / लेकिन क्या सामान्य जन्म से आधुनिक जाति व्यवस्था की व्याख्या संभव है ? अगड़ी पिछड़ी , ऊंची नीची जाति किस भारतीय ग्रंथ से उद्धृत है ? मनुस्मृति से ? जरा प्रमाण दिखाएँ / अगर आज आप कहीं किसी शिक्षा संस्थान मे दाखिला लेते है , या किसी नौकरी के लिए आवेदन देते हैं , तो आप से पूंछा जाता है - आपकी जाति क्या है ? आप लिखते है सामान्य जाति - ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य / लेकिन भारतीय ग्रन्थों और परंपरा के अनुसार ये तो वर्ण हुवा करते थे / तो आज जाति कैसे हैं ? कोई व्यतिक्रम , कोई शाजिश , कोई छेडखानी नहीं दिखती आपको ?
                             तो जाति तो नहीं ,    हाँ जात का वर्णन अवश्य है , और १६ संस्कारों में जातकर्म भी एक कर्म कांड का हिस्सा है / जात शब्द का अर्थ उत्पाती पैदाइश कुल परिवार, क्षेत्रीय सम्बद्धता , और गोत्र आदि होता है , साथ ही साथ ये व्यवसाय या पेशे का भी द्योतक होता है , जिनकी शादी व्याह आपस मे हुआ करते थी , और आज भी प्रायः हो रही है / इसको अगर सही शब्दों मे व्याख्यायित किया जाय , तो पता चलेगा कि -"जात एक मैनुफेक्चुरिंग इकाई थी समाज की , जिसमे हर वर्ण के लोग शामिल हो सकते थे / उदाहरण स्वरूप: नूनिया यानि नमक निर्माता और विक्रेता / भारत मे अंग्रेजों ने सबसे पहले इस व्यवसाय पर कब्जा किया और इस व्यवसाय से जुड़े लोगो को बेरोजगार किया ; अब इस व्यवसाय मे कौन कौन लोग जुड़े थे ? 
देखें जरा :
(1)वत्स गोत्रीय चौहान क्षत्रिय
(2) औधिया (अवध के निवासी )
(3) मुसहर (पालकी ढोने वाले )
(4)बिन्द
(5) भुईहार
(6) लोध
( M A Sherring पेज 347)
आज मुसहर की क्या दशा है ; सर्व विदित है / और गांधी का नमक आंदोलन भी सर्व विदित है /
 जात एक परिवर्तन शील व्यवस्था थी /

कौटिल्य के अनुसार एक ही माँ  के चार पुत्रों में ब्राम्हण क्षत्रिय वैस्य या शूद्र किसी भी वर्ण में व्यक्ति शामिल हो सकता था , और जीवन यापन के लिए अपने स्वभाव के अनुकूल (स्वधर्मों)  व्यवसाय चुन सकता था /

लेकिन जब 1901 कि जनगणना में रिसले ने सोशल hierarchy को नशल शास्त्र यानि अन्थ्रोपोलोजी से जोड़कर के  2000 से ज्यादा ज्यातियों (Castes) और 40 से ज्यादा नश्लों को चिन्हित और सूचीबद्ध किया तो आप व्यवास चाहे जो चुन लें लेकिन जाति / caste आपका पीछा नहीं छोड़ेगा / ज्ञातव्य हो कि 1807 में फ्रांसिस बुचनन ने caste या ट्रेड के नाम पर मात्र 182 castes कि लिस्ट बनाई थी /

'वंडर देट  वाज  इंडिया ' के लेखक A L Basham के अनुसार -" Caste शब्द का उल्लेख होते ही हिन्दू समाज कि व्यवस्था अपने आप ही मस्तिस्क में तिरोहित होने लगती है /बीसवीं शताब्दी के समाजशास्त्रयों ने स्पस्ट रूप से लिखा है कि Caste सिस्टम यूरोपीय समाज का आवश्यक और कानूनी रूप से महत्वपूर्ण अंग था / लेकिन कालांतर ने लेखकों ने इस तथ्य को चालकीपूर्वक छिपा दिया इस तरह Caste सिस्टम मात्र भारतीय हिन्दू समाज का चरित्र बन गया / अब दो बातें :
(1) A L Basham के अनुसार सोलहवीं सदी में जब पुर्तगाली भारत में आये तो उन्होंने देखा कि भारतवासी कई समूहों में बनते हुए हैं जिनको उन्होंने Castas के नाम से सम्बोधित किया जिसका एकमात्र मतलब था ट्राइब कुल परिवार / लेकिन ये शब्द ऐसा हिट हुवा कि जैसे हिन्दू समाज के साथ चिपक गया / caste शब्द का प्रयोग वे वर्ण और कास्ट दोनों ही के लिए सामान भाव से करते थे / प्राचीन भारत में वर्ण का स्पस्ट उल्लेख मिलता है लेकिन caste का नहीं / यदि caste कि परिभाषा एक ऐसे मानव समूह का वर्णन करना है जो रहन सहन खान पान शादी व्याह तथा व्यवसाय कि दृस्टि से समान है तो इसका वर्णन प्राचीन भारतवर्ष में नहीं मिलता है / :

(२)  अब एक प्रश्न है कि यदि caste System भारत कि एक्सक्लूसिव व्यवस्था है तो पुर्तगाली और बाद में अन्य यूरोपियों को इस शब्द और सिस्टम  का ज्ञान कैसे हुवा था /हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को ईसाइयत से नीचे साबित करके शाषित वर्ग का मनोबल गिराने का यूरोपीय और ईसाई लेखकों का ये अन्यायपूर्ण और बर्बर दृष्टिकोण था /
तथ्यात्मक तौर पर caste System यूरोपीय और रोमन सभ्यता का एक आवश्यक अंग था ,लेकिन उसको भारतीय समाज पर आरोपित करने का जो खड़यन्त्र रचा गया , आज वीभत्स रूप में आपके सामने खड़ा है / कुछ यूरोपीय लेखको को ही उद्धृत करना चाहूँगा इस लेख के प्रमाण में :
1907 में John Oman Campbell - ने caste System के नाम पर हिन्दुओं को नीचे दिखने कि आलोचना की / ये गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में सोशल साइंस के प्रोफेसर थे / उन्होंने अपनी पुस्तक -" Brahman Theism and Muslims of India " में लिखा -" जिस caste System को यूरोपियन आश्चर्य और गर्व के साथ आलोचना करते घूम रहे हैं कि यह अत्यंत बकवास और अस्वस्थ सामजिक परंपरा है ,जिसका विश्व में कोई अन्य उदाहरण नहीं मिलता , वे भूल जाते हैं कि वे जिस पक्षपात पूर्ण caste System की आलोचना वो कर रहे हैं ,वह भारत के बाहर भी पायी जाती है , और वो अति सभ्य समझे जाने वाले पश्चिमी देशों में institutionalized है / हमें अपने मस्तिस्क को साफ़ रखना पड़ेगा कि ये एक undeniable तथ्य है कि यूरोप में भी कुछ hereditary caste distinctions हैं , जो पूर्व में कानूनी रूप से मेन्टेन की जाती थी , और वे वहां आज भी विद्यमान हैं / हिन्दू caste System की विशेषता इसका वंशानुगत होना है / इस सन्दर्भ में हमें अपनी याददाश्त को जगाना काफी रोचक होगा कि एक जमाना ऐसा भी था कि यूरोप में वंश दर वंश लोगों को अपने पैतृक पेशे को अपनाने को बाध्य कर दिया जाता था और उनको अपना पेश बदलने का अवसर ही नहीं दिया जाता था /
इंग्लॅण्ड के पुराने कानून के अनुसार लोगों को कोयले कि खदानों में या Dry salting के पेशे में पीढ़ी दर पीढ़ी काम करना पड़ता था / इस कानून को George iii ने अठारवीं शताब्दी में ख़त्म किया यानि जो अंग्रेज हमारे साथ काम कर रहे है उनके पितरों कि आँखों के सामने की बात है / उससे भी ज्यादा वंशानुगत पेश करने कि बाध्यता रूस में थी जहाँ पिछली शताब्दी तक गुलाम खेती किया करते थे / यूरोप में वंशानुगत गुलामी का बहित लम्बा एयर घृणित इतिहास रहा है / इसका और गहरा अध्ययन करने पर पता चलता है कि एरोप में "Rigid और Tyrannical caste System " था जिसको चर्च और कानून दोनों से सुरक्षा प्राप्त थी /
(३) Edward Alsworth Ross ने यूरोप में प्रचलित रिजिड कासते सिस्टम को काफी विस्तार से वर्णित किया है जो कि उन्नीसवी शताब्दी के शुरुवात तक जारी थी /वे बताते हैं कि यूरोप में caste System रोमन साम्राज्य का एक हिस्सा था ,लेकिन यूरोप में उसका विस्तार रोमन सभ्यता के कारण नहीं बल्कि सामजिक ताकतों के आपसी टकराव के कारण हुवा था /
 (४) प्रूसिया में व्यक्ति की ही नहीं जमीन पर भी जाति का अधिकार था / ऊँची जाति के लोगों कि जमीन नीची जाति के लोग नहीं खरीद सकते थे / लेकिन इस व्यवस्था को 1807 में Emancipation of Edict के द्वारा ख़त्म किया गया /(५)
ओमान ने इंग्राम को क्वोट करते हुए लिखा कि -" रोमन साम्राज्य में वंशानुगत पेशा अपनाने की बाध्यता पूर्व भारत में प्रचलित व्यवस्था से भिन्न नहीं थी / शासक वर्ग के लोग शासन के अनिवार्य अंग थे , और उनको दूसरे समूह (Collegia ) की लड़कियों से शादी की इजाजत नहीं थी / उसी तरह मुनिसिपल्टी और सैनिकों को भी वंशानुगत पेश अपनाने की बाध्यता थी /(६)
Reference :
(1) AL Basham -Wonder that was India P.148
(2)AL Basham -Wonder that was India P.149
(3) John Campbell Oman : "Caste in India " in his book : Bramhan Theist and Muslims in India 1907 P.63-64
(4) Ross 1922 P.322
(5)Ross 1922 P.182
(6) Ingram P.75

Direct Evidence to prove correctness of my underwritten post from "Imperial Gazetteer of India 1885 " ,From Volume - 1 of the same "The Indian Empire : Descriptive" .Chapter-6 Ethnology and Caste . Page 311
The word 'Caste' which has has obtained such a wide currency in the literature of sociology, comes from the Portuguese adventurers who followed Vasco De Gama to the west coast of India .The word itself is derived from the Latin Castus and implies purity of breed .In his article on the caste in Hobson-Jobson , Sir Henery Yule quotes a decree of the sacred council of Goa, dated 1567, which recites how ' the Gentoos divide themselves into distinct races or castes (castas) og greater or lesser dignity , holding the Christian as of lower degree , and keep these so superstitiously that one of a higher caste can eat or drink with those of of a lower caste'.
(P.S. Superstition was defined by European Christian , as a culture or tradition , which does not fit in Biblical and European Social framework , where ever they interacted with the people of other culture )

अनुवाद :
'Caste' शब्द जो समाजशास्त्र के साहित्य में इतनी व्यापकता पा चुका है , वो पुर्तगाली साहसिक यात्रियों की देन है जो वास्को डे गामा के साथ भारत के पश्चिमी तट पर आये थे / ये लैटिन शब्द Castus से लिया गया है , जिसका तात्पर्य होता है ब्रीड (नश्ल) की शुद्धता / Hobson-Jobson में अपने caste के ऊपर लिखे लेख में Sir Henery Yule ने गोवा के पवित्र परिषद के सन १५६७ के एक निर्णय को उद्धृत करते हुए लिखा है ,'हिन्दू (Gentoos ) लोग अंधविस्वास पूर्वक अपने आपको ज्यादा और काम महत्व के हिसाब से अलग अलग नश्लों या caste में बांटते हैं , जिसमे वे क्रिस्चियन को सबसे निचला स्थान देते हैं , और इसको ऊंचीं और नीची caste के साथ अन्धविस्वासपूर्वक खाने और पीने से भी जोड़ते हैं /
(PS : यूरोप के ईसाई जब अपने देश से निकलकर दूसरे देशों के लोगों से मिले , तो उन देशों की प्रचलित रीत रिवाजों को , जो उनकी बाइबिल और यूरोपियन समाज के रीति रिवाजों के फ्रेमवर्क में फिट नहीं होती थी , अंधविस्वास के नाम से सम्बोधित किया )

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