Wednesday, 15 July 2015

स्किल विकास भारत के शासत्रों के अनुसार विज्ञान का अद्ध्ययन : यानि शिल्प शास्त्र का अध्ययन

मोदी ‪#‎स्किल्ड_इंडिया‬ का नारा तो दे रहें हैं , लेकिन क्या उनको इस शब्द का अर्थ भी मालूम है ? और इस देश के ‪#‎बुद्दि_जीवियों‬ को इस शब्द और इसके ऐतिहासिक महत्व और महात्म का ज्ञान है क्या ?
----------------------------------------------------------------------------------------
भारत को स्किल्ड जन संसाधन की क्यों जरूरत हैं ? भारत का आर्थिक मॉडल भिन्न क्यों होना चाहिए बाकी दुनिया से ? अपने ही इतिहास से सीख नहीं सकते क्या हम ?
देश को स्किल जन संसाधन और उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ?
‪#‎भारत_एक_कृषिप्रधान_देश_था‬/ हैं, ये हमको ‪#‎क्षद्म_बुद्धिडूबी‬ मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया / इस ‪#‎झूठ‬ के ढोल मे कितना बडा पोल है ??
-----------------------------------------------------------------------------------------
‪#‎ज्ञान‬ और ‪#‎विज्ञान‬ मे क्या अंतर है ?
‪#‎मोक्षेर्धी_ज्ञानम‬ : अर्थात जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष्य की प्राप्ति हेतु जब मेधा का प्रयोग किया जाता है , तो उसके लिए जिस मार्ग का चयन किया जाता है उसमे ज्ञान की प्राप्ति होती है / जिसके राह पर चलने वाले वेदव्यास जेमिनी रामनौज शंकराचार्य तुलसी कबीर सूर रेदास आदि महापुरुष थे /
‪#‎अन्य_शिल्प_शास्त्रयो_विज्ञानम‬ : अर्थात जीवन की बाकी लक्ष्य ‪#‎अर्थ‬ और ‪#‎काम‬ को धर्मानुसार प्राप्ति हेतु जिस मार्ग मे मेधा का उपयोग होता है उसको विज्ञान कहते हैं / जिसको शासत्रों में ‪#‎माया‬ भी कहते है / तो स्किल का विकास विधा को ही विज्ञान कहते हैं , जिससे अर्थ और समस्त भौतिक कामनाओं की पूर्ति होती है /
आज जब गली गली मे अर्थहीन डिग्रियाँ बंट रही हैं जिनसे जीवन यापन के कोई संसाधन नहीं जुटता और देश के नवयुवक 4000 SSC की नौकरियों हेतु लाखों नौजवान अपनी जवानी स्वाहा कर रहे हों तो ‪#‎शिल्प_शास्त्र‬ यानि विज्ञान या ‪#‎स्किल_डेव्लपमेंट‬ के अलावा भारत के पास कोई अन्य मार्ग नहीं है /
हमें पढाया गया कि भारत एक अध्यात्मिक और कृषि प्रधान देश था लेकिन ये नहीं बताया कि भारत विश्व कि 2000 से ज्यादा वर्षों तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी / angus Maddison और paul Bairoch अमिय कुमार बागची और Will Durant जैसे आर्थिक और सामाजिक इतिहास कारों ने भारत की जो तस्वीर पेश की , वो चौकाने वाली है /
Will Durant ने 1930 मे एक पुस्तक लिखी Case For India। विल दुरान्त दुनिया के आज तक सबसे ज्यादा पढे जाने वाले writer हैं और निर्विवाद हैं / इनको अभी तक किसी ism में फिट नहीं किया गया है / उन्ही की पुस्तक के कुछ अंश उद्धृत करा रहा हूँ , ये समझने समझाने के लिए कि आखिर भारत को क्यों ‪#‎स्किल_डेव्लपमेंट_और_उद्योगों‬को बढ़ावा देना चाहिये अपने स्वर्णिम आर्थिक युग वापसी के लिये ?? और उसका खुद का मॉडेल होना चाहिये न कि अमेरिका या यूरोप की नकल करनी चाहिये /
जिस ‪#‎स्किल‬ या कौटिल्य के अनुसार ‪#‎कारकुशीलव_वार्ता‬ शूद्रस्य स्वधर्मह की बात किया गया है गौरवशाली स्वर्णिम भारत के बारे मे ; उसी स्किल और उसके फलस्वरूप , उसके गौरव शाली भौतिक उत्पादों की बात करते हुये विल दुरान्त 1930 मे लिखते हैं ---
" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के समुद्री डाकुओं (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम समुद्री जहाज बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
ये वही धन संपति थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था / पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था --" आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना " / कंपनी ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कलकत्ता और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वो फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों सेसुदृढ़ किया /
पेज- 8-9

No comments:

Post a Comment