Friday, 24 July 2015

शिक्षा भी चोरी किए अंग्रेज़ - Part 1


धन ले गए , धर्म ले गए , निर्धनता और रेलीजन दे गए /
बाँटे जाति धर्म मे हमको विद्या ले गए साक्षरता दे गए //  भाग – 1
अभी शशि थरूर ने ब्रिटेन को भारत मे 200 साल के लूट का, और देश को जातियों और धर्म मे बांटने का  दोषी घोसित किया और बोला कि कम से कम सोरी तो बोल दे भाई , न लौटा लूटा हुआ माल / इस लूट का भारत के समाज पर क्या प्रभाव पड़ा , अभी इसका विश्लेषण विद्वानों द्वारा  होना है /दलित चिंतक और वामपंथी , जो अब तक हर बात के लिए ब्रामहानिस्म और मनुस्मृति को दोषी ठहराते आए हैं , उनका रुख इस भासण  के समर्थन या विरोध मे अभी सामने नहीं आया है /
लेकिन आज एक और बात कि तरफ आपका आकर्षण करना चाहूँगा / और वो है शिक्षा और विद्या :
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------बहुत से लोगों का मानना है कि भारत अंग्रेजों के आने के पहले अशिक्षित था / चलिये उन्हीं की बात मान लेते हैं / यदि  निरक्षर  भारत 1750 तक विश्व की  25 % जीडीपी का उत्पादन करता था , और शिक्षित अंग्रेज़ मात्र 2% का , तो क्या हमको ऐसी साक्षरता को आगे जारी रखना चाहिए ?
अधिकांश दलितों का मानना है कि अंग्रेज़ उनके माई बाप थे / एक है दलित चिंतक @चन्द्र भान  प्रसाद , जो पता नहीं अपने बाप का जन्मदिन मनाते हैं कि नहीं लेकिन मैकाले का जन्म दिन बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं / और अङ्ग्रेज़ी माई को रोज दिया बत्ती और लोहबान सुलगाकर पूजा करते हैं श्रद्धा के साथ,  क्योंकि वो नॉलेज की देवी है /
1931 मे महात्मा गांधी जब भारत से ब्रिटेन गए गोलमेज़ सम्मेलन मे , तो एक पब्लिक मीटिंग मे उन्होने उद्घोष किया कि – “ भारत आज जितना शिक्षित है , आज से 50 या 100 साल पूर्व इससे ज्यादा शिक्षित था / अङ्ग्रेज़ी शासकों ने उस शिक्षा व्यवस्था को जडमूल समेत नष्ट कर दिया /”
इस बात पर ढाका विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चानसलर फिलिप होडतोग ने कहा कि –“ मिस्टर गांधी ये हम ही  थे जिनहोने भारत के आम जनता को एडुकेशन दिया , इस लिए आप या तो अपनी बात सिद्ध करें या वापस लें / “ गांधी जी ने आश्वासन दिया कि अगर वे गलत निकले तो ज्यादा प्रचार प्रसार के साथ अपनी ही बात का खंडन करेंगे /
ये विवाद लगभग 8 साल चला लेकिन गांधी जी अपनी राय पर दृढ़ रहे /
अब जो असली मुद्दे कि बात ये है कि जब भारत मे क्रूर बर्बर और अशिक्षित जाहिल तुर्क बख्तियार खिलजी नालंदा विषविद्यालय के पुस्तकालय को आग लगाया , तो उसको नष्टमे  होने  3 महीने का लगा /  मेरा प्रश्न है कि जिस समकाल मे हजारों साल से सुरक्शित ग्रंथालय के  ग्रन्थों को जलने मे 3 महीने लग गए , तब ब्रिटेन मे शिक्षा कि क्या स्थिति थी ?
उससे भी आगे जाकर मैं दावे के साथ कहता हूँ कि ब्रिटेन मे 19वीं शताब्दी के पूर्व शिक्षा आम जन को उपलब्ध नहीं थी , जब तक की अंग्रेजों ने भारत से  से “मद्रास सिस्टम ऑफ एडुकेशन” को चुराकर अपने यहाँ लागू किया और शिक्षा को आमजन तक पहुंचाया /
सहमति या आलोचना के इंतजार मे /
त्रिभुवन सिंह   


Wednesday, 15 July 2015

स्किल विकास भारत के शासत्रों के अनुसार विज्ञान का अद्ध्ययन : यानि शिल्प शास्त्र का अध्ययन

मोदी ‪#‎स्किल्ड_इंडिया‬ का नारा तो दे रहें हैं , लेकिन क्या उनको इस शब्द का अर्थ भी मालूम है ? और इस देश के ‪#‎बुद्दि_जीवियों‬ को इस शब्द और इसके ऐतिहासिक महत्व और महात्म का ज्ञान है क्या ?
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भारत को स्किल्ड जन संसाधन की क्यों जरूरत हैं ? भारत का आर्थिक मॉडल भिन्न क्यों होना चाहिए बाकी दुनिया से ? अपने ही इतिहास से सीख नहीं सकते क्या हम ?
देश को स्किल जन संसाधन और उद्योंगों की क्यों जरूरत हैं ?
‪#‎भारत_एक_कृषिप्रधान_देश_था‬/ हैं, ये हमको ‪#‎क्षद्म_बुद्धिडूबी‬ मार्कसवादी चिन्तकों ने पढाया / इस ‪#‎झूठ‬ के ढोल मे कितना बडा पोल है ??
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‪#‎ज्ञान‬ और ‪#‎विज्ञान‬ मे क्या अंतर है ?
‪#‎मोक्षेर्धी_ज्ञानम‬ : अर्थात जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष्य की प्राप्ति हेतु जब मेधा का प्रयोग किया जाता है , तो उसके लिए जिस मार्ग का चयन किया जाता है उसमे ज्ञान की प्राप्ति होती है / जिसके राह पर चलने वाले वेदव्यास जेमिनी रामनौज शंकराचार्य तुलसी कबीर सूर रेदास आदि महापुरुष थे /
‪#‎अन्य_शिल्प_शास्त्रयो_विज्ञानम‬ : अर्थात जीवन की बाकी लक्ष्य ‪#‎अर्थ‬ और ‪#‎काम‬ को धर्मानुसार प्राप्ति हेतु जिस मार्ग मे मेधा का उपयोग होता है उसको विज्ञान कहते हैं / जिसको शासत्रों में ‪#‎माया‬ भी कहते है / तो स्किल का विकास विधा को ही विज्ञान कहते हैं , जिससे अर्थ और समस्त भौतिक कामनाओं की पूर्ति होती है /
आज जब गली गली मे अर्थहीन डिग्रियाँ बंट रही हैं जिनसे जीवन यापन के कोई संसाधन नहीं जुटता और देश के नवयुवक 4000 SSC की नौकरियों हेतु लाखों नौजवान अपनी जवानी स्वाहा कर रहे हों तो ‪#‎शिल्प_शास्त्र‬ यानि विज्ञान या ‪#‎स्किल_डेव्लपमेंट‬ के अलावा भारत के पास कोई अन्य मार्ग नहीं है /
हमें पढाया गया कि भारत एक अध्यात्मिक और कृषि प्रधान देश था लेकिन ये नहीं बताया कि भारत विश्व कि 2000 से ज्यादा वर्षों तक विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति थी / angus Maddison और paul Bairoch अमिय कुमार बागची और Will Durant जैसे आर्थिक और सामाजिक इतिहास कारों ने भारत की जो तस्वीर पेश की , वो चौकाने वाली है /
Will Durant ने 1930 मे एक पुस्तक लिखी Case For India। विल दुरान्त दुनिया के आज तक सबसे ज्यादा पढे जाने वाले writer हैं और निर्विवाद हैं / इनको अभी तक किसी ism में फिट नहीं किया गया है / उन्ही की पुस्तक के कुछ अंश उद्धृत करा रहा हूँ , ये समझने समझाने के लिए कि आखिर भारत को क्यों ‪#‎स्किल_डेव्लपमेंट_और_उद्योगों‬को बढ़ावा देना चाहिये अपने स्वर्णिम आर्थिक युग वापसी के लिये ?? और उसका खुद का मॉडेल होना चाहिये न कि अमेरिका या यूरोप की नकल करनी चाहिये /
जिस ‪#‎स्किल‬ या कौटिल्य के अनुसार ‪#‎कारकुशीलव_वार्ता‬ शूद्रस्य स्वधर्मह की बात किया गया है गौरवशाली स्वर्णिम भारत के बारे मे ; उसी स्किल और उसके फलस्वरूप , उसके गौरव शाली भौतिक उत्पादों की बात करते हुये विल दुरान्त 1930 मे लिखते हैं ---
" जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं , उन्हें ये विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के समुद्री डाकुओं (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस " धन सम्पत्ति" के बारे में Sunderland लिखता है :---
" ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था। किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे ,- मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation) , जो कहीं भी exist करती होगी , जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, - उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है । भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।इसके टेक्सटाइल के उत्पाद --- लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद , कॉटन , ऊन लिनेन और सिल्क --- सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स , या फिर इसकी pottery , पोर्सलेन्स , हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics ; या फिर मेटल के महीन काम - आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था ।इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था। इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे । बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे। ये सिर्फ महानतम समुद्री जहाज बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था । ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।"
ये वही धन संपति थी जिसको कब्जाने का ईस्ट इंडिया कंपनी का इरादा था / पहले ही 1686 में कंपनी के डाइरेक्टर्स ने अपने इरादे को जाहिर कर दिया था --" आने वाले समय में भारत में विशाल और सुदृढ़ अंग्रेजी राज्य का आधिपत्य जमाना " / कंपनी ने हिन्दू शाशकों से आग्रह करके मद्रास कलकत्ता और बम्बई में व्यवसाय के केन्द्रा स्थापित किये , लेकिन उनकी अनुमति के बिना ही , उन केन्द्रों मे ( जिनको वो फॅक्टरी कहते थे ) उन केन्द्रों को गोला बारूद और सैनकों सेसुदृढ़ किया /
पेज- 8-9

Wednesday, 8 July 2015

पहली बार शैडयूल्ड कास्ट का नाम तब सुना जब मेडिकल कॉलेज मे दाखिला हुआ / उस समय इतनी समझ नहीं थी कि ये क्या होता है , लेकिन संसाधन के लिहाज से मुझमे और उनमे कोई विशेष फर्क नहीं था / हाँ उनको कुछ वजीफा मिलता था SC होने के नाते मुझे नेशनल स्कॉलर्शिप मिलती थी मेरी हाइ स्कूल मे मेरिट के नाते / तब मेरे समझ  के अनुसार या ग्रामीण परिवेश के नाते इतना ही समझ आता था कि SC माने शूद्र / 
अभी मेरे एक मित्र जो कि SC हैं, लेकिन शहर मे पार्षद हैं , उनसे कई बार जाति क्या  है , वर्ण क्या है , इस पर चर्चा हुई है / मेरी अवधारणा से प्रभावित होकर उन्होने अपने बेटे के इंजीन्यरिंग के प्रवेश परीक्षा मे जाति प्रमाणपत्र नहीं लगाया / बेटे की रैंक जो आई , उसके अनुसार अगर उन्होने जाति प्रमाणपत्र लगाया होता तो उसको अच्छे कॉलेज मे दाखिला अवश्य मिल जाता , लेकिन उनही के संवर्ग के किसी निचले पायदान पर खड़े किसी अन्य भाई का हक़ मारा जाता / उन्होने हार नहीं मानी है , बोले कि एक साल और तैयारी  कर लेगा मेरा बेटा , लेकिन अब मुझे सरकारी भीख नहीं लेना / उनके भाव और आत्मसम्मान को मेरा अभिनन्द्न /
 जाति क्या है ? क्या इसका भी कोई कानून है ? भारतीय संस्कृत ग्रन्थों मे तो उल्लेख नहीं मिलता / फिर कैसे ये सरकारी प्रमाणपत्र बांटे जा रहे हैं ? जाति के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़का कर लोग सत्ता के गलियारे मे दाखिल हो रहे है, ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हैं लोग / अभी उ प्र मे सुना है कि ओबीसी कोटे मे कुल 89 सीट मे 54 यादव ही उस पद के काबिल पाये गए ?
आइये देखें जरा कि किस ग्रंथ के ये जाति के नियम कानून बने ?  

" Unfailing law ऑफ caste ' : H H Risley 1901

रेस या नश्ल एक ऐसा शब्द है जिसका समानर्थी शब्द संस्कृत या हिन्दी में उपलब्ध नहीं हैं (हो तो बताएं ), और जब शब्द ही नहीं है तो वो संस्कृति भी भारतीय सभ्यता का अंग नहीं है / जैसे २० वर्श पूर्व के शब्दकोशों में स्कैम शब्द नहीं मिलता , क्योंकी सरकारी बाबू और नेता के चोरी चकारी का स्तरहीन चोरी को घोटला जैसे शब्दो से काम चला लिया जाता था / लेकिन जब १ लाख ७५ हजार जैसे स्तरीय डकैतियां होने लगी ती स्कैम शब्द का इजाद हुवा/ इसी तराह race Science का जन्म भी १८ वीं शताब्दी में सफ़ेद चमडी के युरोपियन की पूर विश्व में कोलोनी बनने और उस शासन को justify करने से शुरू हुवा / जिसका जन्म डार्विन के survival ऑफ फिटेस्ट से होता है और उसका justification Rudyard Kipling's "White Man's Burden" से खत्म होता है / race साइंस के तहत एन्थ्रोपॉलॉजी अंथ्रोपोमेट्री क्रानिओमेट्री जैसे विषय आते हैं , जिनका प्रयोग सफ़ेद चमदी वाले इसाई विद्वानों ने रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी के लिये किया हैं / विश्व की विभिन्न देशों मे ब्राउन और काले रंग के लोगों के ऊपर अपने अत्याचारों और लूटपाट का justification करने के लिये , इस साइंस ने उनको नैतिक बल दिया / बहुत ज़ोर शोर से इस इस साइंस का प्रयोग दूसरे विश्वयुद्ध तक किया गया / इधर मैकसमुल्लर जैसे विद्वानों ने जब ये अफवाह फैलाई की आर्य बाहर से आये थे और संस्कृत भाषा को इंडो इरानिनन इंडो युरोपियन और इंडो जर्मन सिद्ध कर दिया गया और स्वस्तिक जर्मनी के सिपाहियों की भजाओं पर शुशोभित हो गया । लेकिन मैक्समुल्लेर के झूंठ खामियाजा यहूदिओं को अपने खून से चुकाना पड़ा । और जब दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन और युरोपियन इसाइयों ने शुद्ध आर्य खून के नाम पर ६० लाख यहूदियों और ४० लाख जिप्सियों को हलाक कर दिया तो उनेस्को ने race साइंस के आधार पर रेसियल सुपेरियोरिटी और इनफेरियोरिटी कलर और अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री जैसे साइंस को खारिज कर दिया / दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी और यूरोप की पुस्तकों से आर्य शब्द और उस थ्योरी को सायास मिटाया गया /अब भारत की कहानी देखिये १९०१ मे H H Risley ने अंथ्रोपोमेट्री और क्रानिओमेट्री के अधार पर मात्र 5000 लोगों पर रिसर्च करके एक " Unfailing law ऑफ caste ' बनाया और उसके आधार पर एक लिस्ट तैयार की / क्या है ये law ? इस law के अनुसार भारत में किसी व्यक्ति या उसके वर्गसमूह की सामाजिक हैसियत उसकी नाक की चौडाई के inversely proportinate होगी / अर्थात् जिसकी नाक पतली वो समाजिक हैसियत में ऊपर और जिसकी चौडी उसकी समाजिक हैसियत नीचे / 1901 की जन गणना में यही unfailing law ऑफ caste के आधार पर जो लिस्ट बनी वो अल्फाबेटिकल क्रम में नहीं है / वो नाक की चौडाई के आधार पर तय किया गए समाजिक हैसियत यानी सोसियल Hierarchy के आधार पर क्रमबद्ध हैं / उसने 1901मे 2378 caste यानी जातियों और 42 races की लिस्ट तैयार की / इस लिस्ट में जो caste ऊपर दर्ज है वो हुई