Sunday 23 November 2014

दलितचिंतन और जातिविमर्श:Part-24 :डॉ आंबेडकर कितने गंभीर थे -" जाति उच्छेद के मुद्दे पर " ?

 जात- पांत , से जात - बिरादरी तब हुयी , जब इस्लाम का  भारत में प्रवेश हुवा / और लोग इस्लाम के प्रति मुहब्बत से लपक के मुसलमान बन गए ( अरे कोई मुहबत से अपनी जड़ को काटता है क्या ?) /  जात - बिरादरी और जात - पांत को विस्तारित किया जाय , तो केवट - राम संवाद से ही आप इसको समझ सकते हैं / निषाद कुटुंब , जो कि जलमार्ग के नियंत्रक यानि शाशक हुवा करते थे , रामचन्द्र जी जब उससे वन गमन के समय श्रृंगबेरपुर में कहते हैं कि भाई मुझे गंगाजी के पार उतार दो - तो केवट -" मांगी नाव न केवट आनी , कहै तुम्हार मर्म मैं जानी " / फिर जब गंगा पार उतर के राम चन्द्र जी संकोच करते हुए उतराई के आवाज में ,,मुद्रिका देने लगते हैं , तो वो कहता है --" हे राम हमारी तुम्हारी जात एक है , मैं इस सुर सरि का खेवैया हूँ , और आप भवसागर के / मैं आप से कैसे उतराई ले सकता हूँ ?? हाँ आप ये जरूर ध्यान रखियेगा कि जब मेरा भवसागर पार करने का मौका आये तो , मुझसे उतराई मत लीजियेगा / यानी जात का मतलब --कुटुंब और एक ख़ास पेशा / तो पेशा तो बदला जा सकता था, कुटुंब को छोड़े बिना भी /
फिर ईसाई आये , उन्होंने संस्कृत पढ़ा ,और जो तालव्य का त ..और मूर्धन्य के ट का भेद नहीं समझते और तुमको को टुमको बोलते थे , वे संस्कृत मे विद्वता हासिल किए , और उनके शिष्यों ने उनसे इंग्लिश में, संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया / और उन विद्वानों ने caste को हिंदी अनुवाद जाति में किया,तो गांधी गांधी होते हुए भी आज तक तेली हैं , आंबेडकर आंबेडकर होते हुए भी आज तक महार है , और अखिलेश मुख्यमंत्री होते हुए भी अहीर हैं / तो अब आप पेशा भले ही बदल ले , लेकिन जाति का दाग आप पिछवाड़े चस्पा ही रहेगा /
वैसे अमरकोश के अनुसार जाति का मतलब -" वन औसधि , तथा सामान्य जन्म" भर है /








3 comments:

  1. Tribhuwan Sir, I am following you since so many days, but because of your privacy settings i am not able to comment. please enable comments for me. I really liked the eye opening posts by you.
    Thank you.

    ReplyDelete
  2. KAUSHAL DEV I have changed the setting .Now you can comments . I am sorry for inconvinience

    ReplyDelete