Friday 7 November 2014

"शूद्र कौन थे"- डॉ आंबेडकर , तथ्य या मिथ...? part-23 -डॉ आंबेडकर,ने1946 मे के लिए वेदों की ओर क्यों रूख किया ?

ब्रिटिशकाल के तीन जननयक ऐसे है , जिनहोने अंग्रेजों और इसाई पादरियों को सचमुच मे फिलन्थ्रोपिस्ट मान लिया - फुले , पेरियार और अंबेडकर / जिनहोने शायद ही अपने जीवन काल मे अंग्रेजों की खिलाफत की हो , बल्कि शायद चरण वंदना ही किया उनकी /
मैकाले की शिक्षा पद्धति लागू होने के पूर्व सोने की चिड़िया कहलाने वाले एक्सपोर्टिंग भारत राष्ट्र मे भारतीय शिक्षा पद्धति ब्रांहड़ों के हाथ मे थी , जो बिना वेतनमान लिए सिद्धन्नम से गुजारा करने वाले आचार्य भारत के सभी वर्णों के लोगो को प्रायः निशुल्क शिक्षा देते थे , जिसको धरमपाल जी ने लंदन के इंडिया ऑफिस लिब्रेरी से ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसरों द्वारा एकत्र किए आंकड़ो को अपनी पुस्तक "The Beautiful Tree " मे प्रकाशित किया है / उन आंकड़ो के अनुसार समृद्ध भारत मे उन गुरुकुलों मे शूद्र छात्रों की संख्या  ब्रामहन  छात्रों की तुलना मे 4  गुना  थी / लेकिन दरिद्र   भारत  के  उपरोक्त  मात्र  3 नायकों  की पूरी जिंदगी भारत ,  हिन्दू और  ब्राम्हण  विरोध  मे  बीत  गई / संस्कृत   भाषा  की  अनभिज्ञता  उनके  इन विचारों  के  मूल कारणों मे  से एक  प्रमुख कारण है /
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किसी भाषा की अनभिज्ञता के कारण आप कहाँ से कहाँ पहुँच सकते हैं , उसके सबसे बड़े उदाहरण डॉ अंबेडकर हैं / डॉ अंबेडकर ने संस्कृत ग्रन्थों के आधार पर अपनी थेसिस तैयार की थी / उनको संस्कृत नहीं आती थी तो उनको अर्धशिक्षित ईसाई संस्कृतज्ञों की शरण लेनी पड़ी /  लेकिन जिन झोला छाप संस्कृतज्ञों को पढ़कर वे जिन निष्कर्षों पर पहुंचे , उनकी प्रामाणिकता और विशासनीयता की जांच किया जाय/
डॉ अंबेडकर ने 1946  मे शूद्रों की दुर्दशा का  कारण पुरुष शूक्त को माना , जिसके अनुसार  शूद्रों का जन्म पुरुष के पैरों  से  होने  के कारण  उनको  मेनियल  कार्य  करने के लिए बाध्य  होना पड़ा / लेकिन यदि शूद्र परम्ब्रंह के पैरो से पैदा हुआ है , तो परंब्रम्ह के उसी पैर से तो #धरती भी पैदा हुयी जिसको हिरण्यगर्भा कहा जाता है जो धन धान्य -  सोना चाँदी रत्न और भांति भांति प्रकार की जीवन उपयोगी धातुओं को भी तो जन्म होता है /
हमारे यहाँ तो जीवन बनता ही है #क्षिति (पृथ्वी की मिट्टी ) , जल पावक गगन और समीर से /
"क्षिति जल पावक गगन समीरा "
पाँच रचित यह अधम शरीरा / "
सुबह उठकर उसी धरती से हम प्रार्थना करते हैं कि -
" समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमंडलम तथा
विष्णु प्रिया नमस्तुभयम क्षमस्व पाद स्पर्शम "
अर्थात "इस धरती स्वरूपा समुद्र मे बसने वाली हे विष्णु प्रिय लक्षमी जी , आपको पैरों से स्पर्श कर रहा हूँ , इसलिए मुझे क्षमा करें"-  इस प्रार्थना को हम भारतीय सुबह उठते ही , धरती को प्रणाम कर फिर उस पर अपने कदम रखते हैं /
तो इसका अर्थ तो ये भी होता है न कि शूद्र सनातन का मूलाधार है , नीव है / बिना पैरो के समाज विकलांग नहीं हो जाएगा ?
लेकिन डॉ अंबेडकर अलग निष्कर्ष पर पहुंचे ? कैसे ??
आइये पड़ताल करें /
   आंबेडकर जी पहले व्यक्ति हैं जो इस बात को 1946 में नकार देते हैं ,कि #आर्य यानि संस्कृत बोलने वाले लोग , बाहर से नहीं आये थे, #भारत के मूलनिवासी थे । फिर कौटिल्य और महाभारत को उद्दृत करते हुए कहते हें कि #शूद्र_भी_आर्य है यानि संस्कृत भाषी है । एक सामान्य सी बात है कि कभी जब संस्कृत आम् बोलचाल की भाषा रही होगी तो सभी संस्कृत में ही संवाद करते रहे होंगे । चाहे वे बाभन हो चाहे बनिया चाहे शूद्र ।
इसमें कोई विवाद की गुंजाईश बचती है क्या ।
किसी भी ग्रन्थ में लिखा है कि #शूद्र को #संस्कृत बोलने की मनाही है ??
#आर्य का मतलब -महाकुलिन कुलीन आर्य सभ्य सज्जन साधवः । या मात्र एक संबोधन ।
मक्स्मुल्लेर ने भी यही कहा कि आर्य माने संस्कृत बोलने वाले ??
बताइए कहीं गुंजाईश बचती है बहस की ??
लेकिन शायद जब तक सफ़ेद चमड़ी वाले की मुहर न लगे ,मानसिक दासों को विश्वास नहीं होता ।
अभी तक अंग्रजी बोलना ही विद्वता का प्रतीक रहा है भारत में। क्या बोलते हैं , वो मायने नहीं रखता ।
लेकिन जब सीधे सोचने की क्षमता खो चुके हैं , तो आंबेडकर तो क्या कोई भी भारतीय बोले , हम को फरक नहीं पड़ता , हम तो महिषासुर की ही पूजा करेंगे ।
लेकिन पिछले 10 सालों से सफ़ेद चमड़ी वालों ने भी डॉ अम्बेडकार के कथन को प्रमादिक करार दे दिया है  ।
ऐसे में दो ही चीज हो सकती है , या तो इन्होने पढ़ना बंद कर दिया है । या फिर इनके राजनीतक स्वार्थ हैं ।
अरे कोई पूंछे इन मंद्बुद्धियो से कि महिसासुर ने किस भाषा में संवाद किया था ??अवधी में कि भोजपुरी में
??

तो किस विद्वान ने कहा कि आर्य बाहर से आये ??
मक्स्मुल्लेर ने ?? या जॉन मुइर ने या पादरी शेरिंग ने ??
कब आये ?? प्रागैतिहासिक काल में ??
यानी मिथकों (महाभारत और रामायण काल) के पहले ??
अच्छी गुंडई फैलाये हैं , मिथक भी कह रहे हो , और उसी को आधार बना कर ड्रामा भी रचा जा रहा है ।
भाई एक दिशा में चलो न ??
ये अंग्रेज तो आपका उद्धार ही करने आये थे , आप के पुरखो को तारने के लिए ही उन्होंने  आर्य द्रविड़ सवर्ण अवर्ण असवर्ण शूद्र अति शूद्र दलित शब्द गढ़े ।
अगर ये वैदिक काल से है तो ये शब्द भी वेदों में मिलने चाहिए ?? 

दिखाइए   किस वेद में लिखा है ??
शब्दों का अपना एक इतिहास होता है ।
25 - 30 साल पहले की कोई डिक्शनरी उठा लीजिये, और खोजिये scam शब्द ??और अगर मिल जाय तो बताइएगा ।
जब नेहरु के जमाने से लेकर इंदिरा के जमाने तक जितने सरकारी चोर थे उनका स्तर वस्तुतः गिरा हुवा था, तो घोटाला शब्द से काम चल जाता था । लेकिन जब मनमोहन के जमाने में उच्च कोटि के सरकारी डकैत आ गए , तो scam यानि महाघोटाला जैसा शब्द गढा गया ।

अब एक प्रश्न उठता है कि आंबेडकर साहब ने रिगवेद को ही क्यों आधार बनाया , अपने बात को सिद्ध करने के लिए ??
और नारदस्मृति और आरण्यक ब्रामहन जैसी   पुस्तको के आधार पर ही क्यों अपने निष्कर्षो पर पहुंचे ??
इसके दो उत्तर है ;
(1)एक आधुनिक लेखक क्या कहता है जरा देखें  -

" एक ख़ास किस्म की एक कौम पैदा हुयी उसकी  संस्कृत के पुराने ग्रंथो के अध्यन में ही रूचि थी, जो  Orientalist Phillologist Indologist जैसे कौम के नाम से जानी जाती है ।उन्होंने भारत के तात्कालिक स्थिति का वर्णन न करके सिर्फ एक अनदेखे समयकाल के ग्रंथो को आधार बना कर तात्कालिक भारत पर टैग / चपका दिया। एक मिथ फैलाया गया की भारतीयों के पास इतिहास लिखने की कूबत नहीं होती ।इसलिए इतिहास को अपने हिसाब से लिख दिया । ये मिथ भी फैलाया कि वे बिजेता थे । इसलिए उनका शासन जस्टीफ़ाइड था । वही तात्कालिक राजनैतिक और सामाजिक परिस्थियों पर सन्नाटा पसरा पड़ा है ।"
---Castes of Minds " By Nicholas B. dirk
ऐसी स्थिति में डॉ आंबेडकर ने जब 1925 के आसपास जब भारतीय राजनीति में कदम रखा तो उनके पास 175 साल पूर्व के भारतीय समाज को समझने का कोई साधन या इनफार्मेशन उपलब्ध नहीं था ।
इसलिए घूमफिर कर उनको विदेशी संस्क्रितज्ञो की शरण में जाना पड़ा।
ये संस्क्रितज्ञ इतने ज्यादा संख्या में थे की आप कल्पना नहीं कर सकते । मात्र जर्मनी ने अकेले दम पर 132 इन्डोलोजिस्ट पैदा किया ।


  (2) दूसरा कारण है कि डॉ आंबेडकर हिंदूइस्म के बारे में ज्यादा नहीं जानते थे , और उनके आत्मकथा लेखक धीर के अनुसार बाबा साहब की प्रिय धर्मग्रंथ बाइबल थी , जो शायद उनका प्रेरणा ग्रंथ था / और चूंकि सूचना के श्रोत सारे के सारे , ईसाईयो के द्वारा भारत के ऊपर तथाकधित संस्कृत विद्वानों के द्वारा लिखी हुई पुस्तकें थी / इसाइयों ने जब पूरी दुनिया पर कब्ज़ा किया , तो बाइबिल में लिखे जेनेसिस के आधार पर उस कब्जे को लीगल sanctity दी /उससे २-३ फैक्ट्स काफी हैं बताने के लिए -
बाइबिल के अनुसार पूरी मानवीयता सब आदम को वंशजें है , और सब एक ही भाषा बोलते हैं / टावर ऑफ़ बेबल के में ये भी लिखा है ,वही से वे पूरी दुनिया में फैले / आदम कि संताने एक ही भाषा बोलती है /
अब जब विल्लियम जोंस ने अठारवीं शताब्दी के अंत में कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी कि स्थापना की / तो डिक्लेअर किया कि संस्कृत एक बहुत ही सुन्दर भाषा है ,जो लैटिन और ग्रीक से भी ज्यादा परिस्कृत है / अभी तक ये पादरी  बाइबिल के इस verse का कोई एक्सप्लेन नहीं दे पाते थे कि दुनिया कि सारी  मानव प्रजाति एक ही भाषा कैसे बोलते  थे और वो भाषा थी कौन ? अब जब आगे जाके मैक्समूलर आर्य (संस्कृत बोलने वाले ) बाहर से आये थे , और फिर आर्यों और उनकी संस्कृत भाषा को इंडो ईरानी से ,इंडो यूरोपियन और होते होते इंडो जर्मन भाषा का कलेवर देंगे , तो बाइबिल के उस verse को सिद्ध कर पाएंगे कि दुनिया के सारे मनुष्य एक ही भाषा बोलने वाले थे / यद्यपि इसकी कीमत मानवीयता को इसाइयों के द्वारा सर्वश्रेष्ठ आर्य हिटलर के नेतृत्व मे ,  दूसरे विश्व युद्ध मे 60 लाख यहूदियों और 40 लाख जिप्सियों के खून से चुकाना पड़ेगा / और "संस्कृत समस्त भाषाओँ की जननी " होने का गौरव प्राप्त करेगी / 


 हालांकि ये verse जब रची गयी थी तो उस समय जीसस और इसके अनुयायी हिब्रू भाषा बोलने वाले थे / इस लिए तब तक तो ये verse को एक्सप्लेन करने में कोई दिक्कत नहीं थी , क्योंकि जीसस स्वयं भी हिब्रू ही बोलते थे , लेकिन जब यहूद के बाद एक नए रिलिजन ने जन्म हुवा ,तो इनके धार्मिक गुरुओं को इस verse को प्रामाणिक सिद्ध करने में दिक्कत होती थी /
(२) दूसरा जब जेनेसिस के अनुसार नूह के श्राप से उनके तीसरे पुत्र Ham की संतानों की संतानो को अनंत काल तक जेफेथ और शेम के वंशजो की perpetual स्लेवरी में रहना पड़ेगा / और बाद में उसमे संसोधन होता है कि , चूंकि Hamites श्रापित है नूह के द्वारा ,इसीलिये उनका रंग
उस पाप के कारन काला हो गया था / महान रोमन सभ्यता में स्लेवरी एक बहुत आम व्यस्था थी और ईसाइयत में उसको Religious  मान्यता प्राप्त थी , इसीलिये 1770 में आजाद हुए अमेरिका में ..काले नीग्रो को 1960 तक गोरे ईसाईयों के बराबर अधिकार प्राप्त नहीं हुवा थे /
       डॉ आंबेडकर को हिन्दू / सनातन परम्परा का ज्ञान तो था नहीं , लेकिन उनके छात्र जीवन का एक लम्बा समय ,ईसाइयों की सोहबत में गुजरा था, इसलिए उनको ईसाइयत के इसके फलसफे से वाकिफ होना कोई बड़ी बात नहीं है /
डॉ आंबेडकर ईसाइयत के इसी फलसफा के अनुसार - शायद शूद्रों की 1946 में दुर्दशा का कारन जानने के लिए वेदों की ओर रुख किया होगा /


डॉ आंबेडकर शूद्र की उत्पत्ति का कारण खोजने के लिए फिर संस्कृत विद जॉन मुइर के पुस्तक "the ऑरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " के पुस्तकांश का रिफरेन्स देते हैं / जो 19 साल की उम्र में भारत आया था , और 29 साल की उम्र में "मत्परीक्षा " नाम की पुस्तक लिखता है , जिसमें ईसाइयत को हिंदूइस्म से श्रेष्ठ घोषित करता है, जो त और ट के उच्चारण का फर्क नहीं समझता , जिसने दस साल की उम्र में निष्ठापूर्वक सरकारी नौकरी करते हुए ,समस्त संस्कृत ग्रंथो ,वेद उपनिषद् ,आरण्यक ब्राम्हण ,रामायण  और न जाने ग्रंथों , को उदरस्थ कर लिया था / और इस लायक हो चूका था कि "the ऑरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " जैसी अप्रितम रचना लिख मारी थी /उसकी पुस्तक के पुस्तकांश में Satyayana ब्रह्मण के हवाले से , वशिष्ठ और विश्वामित्र (सुदास राजा ) कई वंशजो के दुश्मनी का आधार बनाया है / क्योंकि बाइबल के Genesis मे ही ब्रांहंद की उत्पत्ति ,  नूह  और उससे श्रपित ham की बात लिखी है , इसलिए डॉ अंबेडकर ने भी वेद के पुरुषोक्त को आधार बनाया जो कि ब्रांहंड के उत्पत्ति के बारे मे बात करती है /
        इस तथ्य कि भी पड़ताल होना आवश्यक है / कि डॉ आंबेडकर जैसा विद्वान ,  उस समय काल में जितने राजनीतिज्ञ थे उनमे सबसे अधिक शिक्षित थे , कैसे एक bigot ईसाई के जाल में फंस गए , संस्कृत भाषा की अज्ञानता के कारण /
अगर आप वर्तमान को , एक ऐसे प्रागैतिहासिक पुस्तकों में वर्णित कुछ श्लोकों के आधार पर वर्णित करना चाहेंगे, और उस को किसी और रिलिजन के फ्रेमवर्क में फिट करेंगे , जिसमे वो फिट ही नहीं बैठ सकता , तो आप हमेशा दिग्भ्रमित होंगे /
हिन्दू धर्म के ऐतिहासिक परंपरा में ,perpetual enmity का , हारने वालों को स्लेव बनाने का , उनका क़त्ल करने का कोई जिक्र तक नहीं है / राम ने रावण को हराया तो , राज्य विभीषण के हवाले कर, वापस अयोध्या आ गए / कृष्ण ने जब जरासंध की हत्या करवाई भीम के हांथों ,तो उसके पुत्र को राज पाट सौप दिया/ युधिस्ठिर ने जब चक्रवर्ती राजा बनने के लिए , जब राजसूय यज्ञ कराया , तो सारे अधीन राजाओं से कर लेकर ,उनको अभयदान दिया /
लेकिन ये तो हैं मिथक , लेकिन पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को 16 बार हराया ,लेकिन हर बार उसने माफी मांग ली , और उन्होंने उसको माफ़ कर दिया /
                      अगर ईसाई Bigot जॉन मुइर , जैसे संस्कृतज्ञ इंडोलॉजिस्ट , की पुस्तक  "The ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट " , को क्वोट करते हुए , डॉ आंबेडकर ने जब वशिष्ठ और विश्वामित्र , तथा सुदास के वंशजों के बीच perpetual enmity का आधार बनाकर , शूद्रों की उत्पत्ति की परिकल्पना की , तो उन्हें ,मालूम नहीं था कि अगर ऐसे कोई दुश्मनी थी  भी तो , सतयुग के 4000 साल बाद त्रेता आते -आते दोनों में , सुलह हो गयी थी / क्योंकि जब राजा दशरथ से विश्वामित्र जी राम लक्ष्मण को अपने यज्ञ की रक्षा करने के लिए माँगते हैं , तो दशरथ जी नहीं देना चाहते थे इसलिए उन्होने विश्वामित्र से कहा - चौथे पण में मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुयी हैं इसलिए कैसे इनको आपके साथ भेज दूँ ?? तो गुरु वशिष्ठ ने दसरथ को समझाया -कि राजन आप अपने दोनों पुत्रों को, ऋषि विश्वामित्र के साथ जाने दें , ये राम को राम बना देंगे /
तीसरी बात फिर डॉ अंबेडकर के अनुसार द्वापर में महाभारत में पजावन राजा का जिक्र किया गया है जो राजा सुदास का वंशज है /
तो दो प्रशन उठते हैं कि न तो संस्कृतज्ञ जॉन मुइर को सनातन धर्म के कालचक्र , यानी सतयुग - त्रेता -द्वापर - कलयुग ,,के Timeline  का पता था , और न डॉ आंबेडकर को / इसीलिये कब हुयी ये दुश्मनी ?? कब हुयी ये लड़ाई ??
इसीलिये  इसका अर्थ है कि या तो यह    Bigot ईसाइयों की शाजिश थी या डॉ अंबेडकर की अज्ञानता थी जिसके जाल में फँसकर डॉ आंबेडकर जी उस आधारहीन नतीजे पर पहुंचे ??
लेकिन मेरा मत है किये एक Bigot ईसाई अधिकारी की ये भारत के समाज को बांटने की शाजिश थी , जिसमे वो कामयाब रहा /
कैसे ?? आगे लिखूंगा /


 कुछ लोग आहत हैं कि उनकी नफ़रत की राजनीति का आधार खिसकता दिख रहा है /
कुछ चिंतित हैं कि धर्म परिवर्तन का बेस गायब हो रहा है / अगर शूद्र सम्बोधन उतना ही सम्मानीय था जितना कि बाकी वर्ण ,,तो समाज का एक बहुत बड़ा तबका ..एक गर्व से सम्मानित महसूस कर रहा है / उसके मस्तिस्क में भरे गए विष की ग्रंथि ,,अचानक से फुट जा रही है ,,और वो राहत की साँस ले रहा है, जिस घुटन का अहसास पता न जाने कितने सालो से , वो महसूस कर रहा था , उससे निजात मिलता दिख रहा है /




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