सवर्ण और असवर्ण का इतिहास बहुत पुराना नहीं है / इसका उदय मक्समूल्लर के ऋग्वेद के किये गए ऊल जलूल , व्याख्य और व्याख्यान से है / इसका सम्बन्ध एंथ्रोपोलॉजी नामक के उदय होने से है , जब एउरोपियन्स ने मनुष्यों को चमड़ी आँख और बालों तथा शारीरिक संरचना , को आधार मानते हुए , मानव जाति को अलग अलग नस्लों में बांटा गया / हर्बर्ट रेस्ले १९०१ में , जो उस समय सेन्सस कमिस्शनर था , उसने नेसल बेस इंडेक्स , को आधार बनाकर भारत में २,३७८ जातियों और ४३ नस्लों की पहचान की / जिनको उसने अल्फबेटिकल आर्डर में न रखकर , सोशल higharchy के क्रम में प्रकाशित किया / वही आज तक के भारतीय समाज के जातिगत विभाजन का वैधानिक आधार बना हुवा है /
उस समय अंग्रेजों और यूरोपियों ने , जिसके अग्रणी विचारक और प्रचारक मैक्स मुल्लर था ,वेदों की ऊट पटांग व्याख्या करके , ने ये अफवाह फैलाई आर्य बाहर से आये , और भारत के मूल निवासी द्रविनो को परास्त कर उनको दक्षिण में खदेड़ दिया / रिसले ने उसी फ़र्ज़ी थ्योरी को आगे बढ़ाया, अपने अन्थ्रोपोलोजिकल अनुभव को आधार बनाकर उसने एक नया षड्यंत्र रचा जिसमें उसका उद्देश्य , भारत के महान जनसमूह को जिनको वो नॉन आर्यन मानता था , उनको आर्यों से अलग करने का नया सिद्धांत पेश किया / जिस तरह अफ्रीका और अमेरिका में गोरे क्रिस्टिअन्स काले अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर रखे थे , और रंगभेद की नीति को कायम कर रखा था , उसी तर्ज पर एक नया कुचक्र रखा , जिसमे ये प्रतिपादित किया गया की बाहर से आये हए आर्यों का रंग गोरा (पीला/गेहुंआ ) रंग था , जिन्हों ने भारत के मूल निवासी जो द्रविण , दास या दस्यु के नाम से जाने जाते थे , और जिंला रंग काला था , उन पर आधिपत्य जमाया , उनकी औरतों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये , जिससे कई जातियों की संताने पैदा हुईं , और यहीं से वर्ण व्यवस्था ख़त्म होकर जाति व्यवस्था की शुरुवात हुयी / बाद के लेखकों ने द्रविणों और शूद्रों को एक मान लिया गया / यूरोपीय लेखकों वर्ण मतलब कलर यानी चमड़ी का रंग होता है , लेकिन संस्कृत में वर्ण का मतलब हो सकता है की रंग भी हो , लेकिन वर्ण का मतलब सिर्फ रंग न होकर वर्गीकरण या कुछ और भी हो सकता है, वरना व्रणधर्म आश्रम या वर्णमाला को किस तरह परिभाषित किया जा सकेगा /
यहीं से आधार बनता है सवर्ण यानी आर्यन यानी गोरे रंग वाले भारयीय , और काले रंग वाले द्रविण या नॉन आर्यन भारतीय ///
उस समय अंग्रेजों और यूरोपियों ने , जिसके अग्रणी विचारक और प्रचारक मैक्स मुल्लर था ,वेदों की ऊट पटांग व्याख्या करके , ने ये अफवाह फैलाई आर्य बाहर से आये , और भारत के मूल निवासी द्रविनो को परास्त कर उनको दक्षिण में खदेड़ दिया / रिसले ने उसी फ़र्ज़ी थ्योरी को आगे बढ़ाया, अपने अन्थ्रोपोलोजिकल अनुभव को आधार बनाकर उसने एक नया षड्यंत्र रचा जिसमें उसका उद्देश्य , भारत के महान जनसमूह को जिनको वो नॉन आर्यन मानता था , उनको आर्यों से अलग करने का नया सिद्धांत पेश किया / जिस तरह अफ्रीका और अमेरिका में गोरे क्रिस्टिअन्स काले अफ्रीकियों को गुलाम बनाकर रखे थे , और रंगभेद की नीति को कायम कर रखा था , उसी तर्ज पर एक नया कुचक्र रखा , जिसमे ये प्रतिपादित किया गया की बाहर से आये हए आर्यों का रंग गोरा (पीला/गेहुंआ ) रंग था , जिन्हों ने भारत के मूल निवासी जो द्रविण , दास या दस्यु के नाम से जाने जाते थे , और जिंला रंग काला था , उन पर आधिपत्य जमाया , उनकी औरतों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये , जिससे कई जातियों की संताने पैदा हुईं , और यहीं से वर्ण व्यवस्था ख़त्म होकर जाति व्यवस्था की शुरुवात हुयी / बाद के लेखकों ने द्रविणों और शूद्रों को एक मान लिया गया / यूरोपीय लेखकों वर्ण मतलब कलर यानी चमड़ी का रंग होता है , लेकिन संस्कृत में वर्ण का मतलब हो सकता है की रंग भी हो , लेकिन वर्ण का मतलब सिर्फ रंग न होकर वर्गीकरण या कुछ और भी हो सकता है, वरना व्रणधर्म आश्रम या वर्णमाला को किस तरह परिभाषित किया जा सकेगा /
यहीं से आधार बनता है सवर्ण यानी आर्यन यानी गोरे रंग वाले भारयीय , और काले रंग वाले द्रविण या नॉन आर्यन भारतीय ///
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