#असतो_मा_सत्य_गमय।
#तमो_मा_ज्योतिर्गमय ।।
कल एक मित्र ने कहा - कि एक बड़ा अस्पताल खोल रहा हूँ:
नो इन्वेस्टमेंट, नो ई एम आई, नो टेंशन।
मैंने उसे बताया - कि पहले दो नो तो ठीक हैं।
नो टेंशन वाली बात भूल जा।
हम जिस तरह का जीवन जी रहे हैं - टेंशन तनाव उलझन दुख उसका अनिवार्य परिणाम हैं। इससे बचना संभव नहीं है। आनंद और सुख मृग मरीचिका हैं।
हमारा प्रत्येक कृत्य - हमें ले जाएगा - दुःख तनाव और सम्मोहन में। सम्मोहन अर्थात बेहोशी। क्योंकि कृत्य का अर्थ है एक्शन, उसका अर्थ है रजोगुण का प्रभावी होना हमारे जीवन में। रजोगुण की पर्यावाची है दुःख।
मॉडर्न साइंस कहती है कि संपूर्ण अस्तित्व तीन एलिमेंट्स से बना है - इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन से। पॉजिटिव नेगेटिव एंड न्यूट्रल एनर्जी।
वैदिक साइंस ने इसी को बहुत पहले बताया था - सत रज तम। पॉजिटिव नेगेटिव एंड बैलेंसिंग एनर्जी। इसी को अन्य नामों से भी बुलाया गया - सुख दुख मोह, शांत घोर मूढ़।
प्रत्येक कृत्य रजोगुण के अंदर आता है। शारीरिक और मानसिक दोनों। तमोगुण है - मोह मूढ़ - अंधकार, आलस्य, प्रमाद, enertia या रोकने वाला। हमारे समस्त कृत्य इन्हीं दो गुणों के अधीन रहते हैं - परिणाम है - अशांति बेचैनी, सम्मोहन, बेहोशी, दुःख। क्योंकि सतोगुण का हमें कोई अता पता नहीं है।
प्रकृति और पुरुष : यह दो तत्व हैं हमारे जीवन के अस्तित्व के। पुरुष का अर्थ है वह ऊर्जा जिसके आने से हम जन्म लेते हैं और जिसके जाने से हमारी मृत्यु हो जाती है। यह कोई महिला पुरुष वाला पुरुष नहीं है। प्रकृति हमारी सहायता करने हेतु है। हम जो भी करते हैं प्रकृति उसमें हमारी सहायक होती है। हम आम बोएंगे प्रकृति आम उगा देगी। हम बबूल के बीज रोपेंगे, प्रकृति बबूल उगा देगी। हम बोते हैं बबूल और अपेक्षा करते हैं कि आम उगेगा। यही वह लोचा है जिसे हम समझ नहीं पाते।
हमारे प्रत्येक कृत्य हमारी तृष्णा से उपजते हैं। और तृष्णा है बबूल। तृष्णा अर्थात प्यास। जो कभी बुझती नहीं। बुझ भी जाय थोड़ी देर के लिये तो फिर आ धमकेगी कुछ देर पश्चात।
बात हो रही है उन तीन मूल तत्वों की जिनसे जीवन निर्मित हुआ है - सत रज और तम।
रज है तृष्णा प्यास, एक्शन एक्सीलेरेटर। तम है बेहोशी, सम्मोहन, अंधकार अज्ञानता मूढ़ता मोह, प्रमाद। हम जीवन भर किसी न किसी इच्छा से सम्मोहित रहते हैं। मृत्युपर्यन्त तक। और रजोगुण उसी की ओर हमें धकेलता रहता है।
जीवन के उच्च आयामों को प्राप्त करने के लिए सतोगुण को बढ़ाना पड़ता है। सतोगुण को ही - सुख शांति ज्ञान प्रकाश आदि अन्य नामों से अलंकृत किया जाता है।
इसको समझना हो तो एक कार के माध्यम से समझा जा सकता है - कार को चलाने वाला यंत्र (एक्सीलेरेटर) रजोगुण है। कार को रोकने वाला यंत्र है ब्रेक। इन दोनों का होना अनिवार्य है एक कार या किसी भी वाहन को चलने योग्य बनाने के लिये। आप इस उद्धरण को साईकल से लेकर हवाई जहाज तक तक में आरोपित कर सकते हैं। बिना एक्सीलेरेटर या पैडिल के न साईकल चलेगी न कार। यदि उसे रोकने के लिए ब्रेक न हो तो वह यंत्र किसी काम का नहीं है। आसमान में फेंकी गयी हर वस्तु वापस पृथ्वी पर लौट आती है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण ब्रेक का काम करता है। वरना वह वस्तु अंतरिक्ष में चली जाय।
कार साईकल या हवाई जहाज में एक्सीलेरेटर और ब्रेक को नियंत्रित करने के लिये ड्राइवर का होना आवश्यक है।
यही है सतोगुण, बैलेंसिंग फ़ोर्स। यदि कार में ड्राइवर न हो तो एक्सीडेंट अनिवार्य रूप से घटेगा।
यही जीवन का सत्य है।
धनतेरस - तेरह तत्व हमारे अस्तित्व के : पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियां (हार्डवेयर, शरीर) और मन बुद्धि और अहंकार ( सॉफ्टवेयर या माइंड)। यही तेरह तत्व हमारे जीवन को चलाते हैं। संसार के समस्त धनों को प्राप्त करने के लिए यही वह यंत्र हैं, जो आवश्यक हैं। सुख दुःख तनाव उलझन बेचैनी - समस्त धन इन्हीं यंत्रो से प्राप्य हैं।
चौदहवाँ तत्व है - चित्त। जिसका हमें कोई अता पता नहीं है। इसका अर्थ होता है - सत्य, प्रकाश, ज्योति, चेतनता, चैतन्य, होश, जागरण Counciousness, awareness. जिसका उद्धरण विवेकानंद देते थे । कठोपनिषद का वह मन्त्र:
उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत, छुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम् पथ: तत् कवयो वदन्ति।
यदि चैतन्य तत्व का हमें बोध हो जाय तो जीवन के अमावस ( अंधकार) में दीवाली आ जाय। वरना नरक चतुर्दशी मिलेगा अनिवार्य रूप से। नरक कोई भौगोलिक सत्ता नहीं है। जैसा कि अन्य धर्मों के लोगों का विस्वास है। नरक है स्टेट ऑफ माइंड - दुःख बेचैनी तनाव।
तुलसीदास कहते हैं:
असन बसन पशु वस्तु विविध विधि सब मनि महँ रह जैसे।
सरग नरक चर अचर लोक सब बसहिं मध्य मन तैसे।।
मनि का अर्थ है - आज के युग मे एक ए टी एम कार्ड। यदि आपके बैंक में धन है और आपके पास ए टी एम है, तो आपको बर्तन भाड़ा कपड़ा लत्ता का कोई तनाव नहीं लेना है। जहां जाएंगे वही सब मिल जाएगा। उसी तरह सरग नरक सब हमारे स्टेट ऑफ माइंड का नाम है। हम कैसे अपना जीवन निर्मित करते हैं उसी पर निर्भर करता है कि हम नरक चतुर्दशी को प्राप्त करेंगे, या फिर अमावस की दीवाली।
बाहर जलाया जाने वाला दिया प्रतीक मात्र है उस दिए का जो अंदर जलता है किसी किसी के अंदर, जिसके बारे में बुद्ध ने कहा - अप्प दीपो भव। अपना दिया तुम स्वयं जलाओ। कोई किसी के जीवन में उजियारा नहीं ला सकता है। कोई किसी के जीवन में दुख और अंधकार भले ही ले आये। यद्यपि यह भी असत्य है। हमीं अपने जीवन के अंधेरे और उजाले के लिए उत्तरदायी हैं।
सबको धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दीपावली की शुभकामनाएं।
©त्रिभुवन सिंह
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