Monday, 30 November 2020

भड़ास : Mental Catharsis

#भड़ास एक शब्द है।
उसका क्या अर्थ होता है, यह आप जानते हैं। इसे निकालना ही पड़ता है। वरना यह टॉक्सिक हो जाता है।

भड़ास निकालना - अर्थात जो विष या कुंठा अंदर निर्मित हो रही है, उसे निकालना।
रेचन कहते हैं इसे संस्कृत में।

यथा ऑक्सीजन हम अंदर लेते हैँ - वह बदल जाता है कार्बन डाई ऑक्साइड में। विष में। उसे निकालना रेचन कहलाता है। न निकाल पाएं तो क्या होगा?
मेटाबोलिक आंधी निर्मित होती है - प्राण घातक हो सकती है यह। 

इसी को नग्रेजी में कैथार्सिस कहते हैं।

इसी तरह जितने विचार या सूचनाएं हम अपने मष्तिष्क में प्राप्त करते हैं, एकत्रित करते हैं। वे सब हमारे मन में  उपस्थित राग द्वेष से मिलकर एक केमिकल टोक्सिन निर्मित करती हैं। यह केमिकल टोक्सिन हमारे अंदर हिंसा या क्रोध निर्मित करती है। वह हमारे शरीर में बारूद की भांति संचित होता रहता है। इसे एक चिंगारी की आवश्यकता होती है - भड़ास के रूप निकलती है या क्रोध का बम धमाका फूटता है। 

कुछ लोग कंजूस होते हैं। प्रवृत्ति ही उनकी कंजूसी की होती है। वे देने में विश्वास नहीं करते। वे सिर्फ लेने में विस्वास रखते हैं।  वे सब कुछ संचित करते रहते हैं - क्रोध, हिंसा, मल सब कुछ। वे कब्जियत का जीवन जीते हैं। चेहरे पर एक मुस्कान ओढ़कर सब कुछ छुपाये रहते हैं।  विष अंदर अंदर ही घूमता रहता है। उन्हें आजकल डिप्लोमेटिक या प्रैक्टिकल लोग कहते हैं। निरन्तर अभ्यास करते रहते हैं वे इसका। लेकिन वह विष प्रकट होता है घातक षडयंत्रो के रूप में। यह सर्व समाज को भस्म कर सकता है। उनको तो करेगा ही। 

इससे लाइफ स्टाइल डिजीज निर्मित होती है। डायबिटीज ब्लड प्रेशर आदि के रूप में। आजकल कितनी कम उम्र में यह बीमारियां प्रकट हो रही हैं। चिकित्सक, जो इन बीमारियों का इलाज करते हैं, वे स्वयं भी इसके शिकार हैं। लेकिन चिकित्सक इसको खान पान और कसरत के अभाव को इसके लिए उत्तरदायी ठहरा देते हैं। 
वे भूल जाते हैं कि इमोशन के कारण सिस्टम में विष निर्मित होता है। मेडिकल  साइंस की एक नई शाखा न्यूरो immunology इस दिशा में कार्य कर रही है।  

इसलिए आवश्यक है कि विचार और भावों से निर्मित इन केमिकल टॉक्सिन्स को बाहर निकाला जाए। इनका रेचन करना अति आवशयक है - कैथार्सिस। 
बाहर निकालने के माध्यम हैँ हमारे पास - शरीर और वाणी। 
शरीर से कसरत करने में इनका रेचन होता है। जो लोग निरंतर कुल्हाड़ी और फावड़ा जैसे यंत्रो का उपयोग करता है, उसका क्रोध विलीन हो जाता है।  लेकिन आधुनिक लोगों के लिए यह सम्भव नहीं है। वे लोग कसरत या खेल खेलना पसंद करते हैं। मेडिकल साइंस कहता है कि इससे ब्रेन में एंडोर्फिन ( मॉर्फिन की तरह का एक केमिकल) निकलता है जो #फील_गुड करवाता है। 

दूसरा माध्यम है वाणी। 
वाणी द्वारा रेचन - क्रोध कुंठा हिंसा को बाहर निकालना। कुछ लोग क्रोध को व्यक्त कर देते हैं तुरंत। लेकिन कंजूस लोग इसको निकालने में भी झिझकते हैं। ये डिप्लोमेटिक लोग इसके लिये मंच तलाशते हैँ। 
क्योंकि आफिस या घर में यह रेचन सम्भव नहीं है आजकल। न बॉस पर निकाल सकते हैं न एम्प्लोयी पर।  न बीबी पर निकाल  सकते हैं। न बच्चों पर। भारी और उल्टा पड़ जायेगा। 

इसलिए इसका सर्वाधिक सुरक्षित और उचित प्लेटफॉर्म है किसी मंच या  संस्था का व्हाट्स एप्प ग्रुप या फेसबुक है। 
जमकर कैथार्सिस कीजिये। 
जम कर रेचन कीजिये।
उसे आम भाषा में किचाहिन करना कहते हैं।

दोनों पक्ष कर सकते हैं।

संस्था के भलाई के नाम पर।
सदस्यों के हितों की रक्षा करने के नाम पर। 
ॐ शांति। 
©त्रिभुवन सिंह

Tuesday, 17 November 2020

वेदान्त क्वांटम फिजिक्स एंड Fractal ज्योमेट्री

#वेदान्त_का_लेटेस्ट_विज्ञान : क्वांटम फिजिक्स और fractal ज्योमेट्री।

पश्चिम और अरबी दस्यु भारत आये थे - भूंखमरी से निजात पाने के लिए। लूट और दस्युता उसको अपने स्वयं के सेक्युलर रोमन और अरबी पूर्वजों से मिली थी, जिसको ईसाइयत और इस्लाम के धर्म ग्रंथो ने मान्यता दे रखी हैं। यद्यपि उन्होंने फनाटिसम के कारण अपने पूर्वज संस्कृति को नष्ट कर दिया, परंतु उनके ज्ञान पर अपना दावा बरकरार रखा।
 
प्लेटो, सुकरात अरस्तू से लेकर Euclid तथा हिप्पोक्रेट्स तक। यद्यपि उसमे संग्रहित बहुतायत ज्ञान भारत से ही गया है। 

भारत का आर्थिक सर्वनाश करने के बाद वे उसे मानसिक गुलामों का देश बनाकर चले गए। 

पढ़े लिखे भारतीय - अर्थात मानसिक गुलाम। पश्चिम के चश्मे से भारत को देखने वाले। पश्चिम का चश्मा - दस्युवो लुटेरों और मैक्समुलर जैसे अफवाहबाजों का चश्मा। 

भारत से बटोरे शास्त्रों के ज्ञान को उन्होंने अपनी भाषा मे लिखना शुरू किया - सम्भवतः कुछ रिसर्च भी किया। उन्होंने प्रकृति को समझने का प्रयास विज्ञान के माध्यम से किया। 

भौतिक विज्ञान के माध्यम से जब उन्होंने प्रकृति को समझना चाहा तो क्लासिकल फिजिक्स के नियम काम न आ सके। उसके लिए उन्होंने एक नया फिजिक्स विज्ञान विकसित किया - क्वांटम फिजिक्स। प्रकृति को  समझने के लिए उन्होंने वेदान्त का सहारा लिया या वेदान्त के निर्णय तक पहुंचे, यह फिजिसिस्ट बताएं, लेकिन वे पहुंचे वहीं, जहां वेदान्त पहुंचाता है। 

क्वांटम फिजिक्स के जनक मैक्स प्लांक कहते हैं - Counciousness is fundamental. चेतना सबके मूल में है। कृष्ण अपने ब्रम्ह स्वरूप की व्याख्या करते समय बोलते हैं - चेतना अश्मि सर्वभूतनाम। सभी जीवों में मैं चेतना के रूप में विद्यमान हूँ। 

Hans peter durr भी उसी निर्णय पर पहुंचा - Material is not made out of matter. लगभग समस्त नोबेल पुरस्कार प्राप्त फिजिसिस्ट ने वेदान्त को ही अपनी भाषा मे लिखा है।

लेकिन उनकी खूबसूरती यह रही कि वे उन वैदिक सिद्धांतो को तकनीकी स्वरूप प्रदान करने में सफल रहे - क्वांटम फिजिक्स के इन्ही वेदान्तिक सिद्धांतो को प्रयोग में लाकर कंप्यूटर, मोबाइल आदि आदि बन रहे हैं।

गणितज्ञों ने जब सृष्टि को समझजे का प्रयत्न किया.  आज तक जो क्लासिकल Euclidian ज्योमेट्री पढ़ाई जा रही है वह उसको समझाने में असफल रही। 
Euclidian ज्योमेट्री अर्थात - ट्रायंगल, क्यूब, परल्लेलोग्राम  आदि आदि। 

प्रकृति को समझने के लिए Benoit Mandelbrot ने 1970 में fractal ज्योमेट्री की खोज की - जो आज कंप्यूटर की सबसे प्रिय भाषा और विषय है - किसी भी वस्तु की प्राकृतिक डिजाइनिंग के लिए।

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि - कॉसमॉस, यूनिवर्स, या स्वयं को समझने और जानने के लिए 1000 वर्ष पूर्व बने मंदिरों में fractal ज्योमेट्री के ज्ञान का उपयोग किया गया था। 

उससे भी बड़ी महत्वपूर्ण बात यह है कि - साइंटिस्ट तो थ्योरी देता है। fractal ज्योमेट्री का सिद्धांत ब्राम्हणों ने तैयार किया, जिनको हम ऋषि मुनि बोलते थे, लेकिन उनको वे आज नोबल लौरेट फिजिसिस्ट, बायोलॉजिस्ट, मथमेटिशन आदि बोलते हैं।

लेकिन उसको execute करने वाले, अर्थात धरातल पर उतारने वाले लोगों को शूद्र कहते हैं - राजशिल्पी कहते थे हम। आज उनको सॉफ्टवेयर इंजीनियर कहते हैं या कुछ और भी। 

लेकिन जब अम्बेडकर ने अपने माई बाप - साइमन और लोथियन को लिखकर दिया कि वे अछूत ही हैं क्योंकि मैं ऐसा समझता हूँ,  तबसे वे सर्टिफाइड अछूत हो गए।

उनको हमारा संविधान - #अनुसूचित_जाति बोलता है।


Thursday, 12 November 2020

दीपावली का अर्थ क्या है?

#असतो_मा_सत्य_गमय।
#तमो_मा_ज्योतिर्गमय ।।

कल एक मित्र ने कहा - कि एक बड़ा अस्पताल खोल रहा हूँ:
नो इन्वेस्टमेंट, नो ई एम आई, नो टेंशन।

मैंने उसे बताया - कि पहले दो नो तो ठीक हैं।
नो टेंशन वाली बात भूल जा। 

हम जिस तरह का जीवन जी रहे हैं - टेंशन तनाव उलझन दुख उसका अनिवार्य परिणाम हैं। इससे बचना संभव नहीं है। आनंद और सुख मृग मरीचिका हैं। 

हमारा प्रत्येक कृत्य - हमें ले जाएगा - दुःख तनाव और सम्मोहन में। सम्मोहन अर्थात बेहोशी। क्योंकि कृत्य का अर्थ है एक्शन, उसका अर्थ है रजोगुण का प्रभावी होना हमारे जीवन में। रजोगुण की पर्यावाची है दुःख। 

मॉडर्न साइंस कहती है कि संपूर्ण अस्तित्व तीन एलिमेंट्स से बना है - इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन से। पॉजिटिव नेगेटिव एंड न्यूट्रल एनर्जी। 

वैदिक साइंस ने इसी को बहुत पहले बताया था - सत रज तम। पॉजिटिव नेगेटिव एंड बैलेंसिंग एनर्जी। इसी को अन्य नामों से भी बुलाया गया - सुख दुख मोह, शांत घोर मूढ़। 
प्रत्येक कृत्य रजोगुण के अंदर आता है। शारीरिक और मानसिक दोनों। तमोगुण है - मोह मूढ़ - अंधकार, आलस्य, प्रमाद, enertia या रोकने वाला। हमारे समस्त कृत्य इन्हीं दो गुणों के अधीन रहते हैं - परिणाम है - अशांति बेचैनी, सम्मोहन, बेहोशी, दुःख। क्योंकि सतोगुण का हमें कोई अता पता नहीं है। 

प्रकृति और पुरुष : यह दो तत्व हैं हमारे जीवन के अस्तित्व के। पुरुष का अर्थ है वह ऊर्जा जिसके आने से हम जन्म लेते हैं और जिसके जाने से हमारी मृत्यु हो जाती है। यह कोई महिला पुरुष वाला पुरुष नहीं है। प्रकृति हमारी सहायता करने हेतु है। हम जो भी करते हैं प्रकृति उसमें हमारी सहायक होती है। हम आम बोएंगे प्रकृति आम उगा देगी। हम बबूल के बीज रोपेंगे, प्रकृति बबूल उगा देगी। हम बोते हैं बबूल और अपेक्षा करते हैं कि आम उगेगा। यही वह लोचा है जिसे हम समझ नहीं पाते। 
हमारे प्रत्येक कृत्य हमारी तृष्णा से उपजते हैं। और तृष्णा है बबूल। तृष्णा अर्थात प्यास। जो कभी बुझती नहीं। बुझ भी जाय थोड़ी देर के लिये तो फिर आ धमकेगी कुछ देर पश्चात। 

बात हो रही है उन तीन मूल तत्वों की जिनसे जीवन निर्मित  हुआ है - सत रज और तम। 
रज है तृष्णा प्यास, एक्शन एक्सीलेरेटर। तम है बेहोशी, सम्मोहन, अंधकार अज्ञानता मूढ़ता मोह, प्रमाद। हम जीवन भर किसी न किसी इच्छा से सम्मोहित रहते हैं। मृत्युपर्यन्त तक। और रजोगुण उसी की ओर हमें धकेलता रहता है। 

जीवन के उच्च आयामों को प्राप्त करने के लिए सतोगुण को बढ़ाना पड़ता है। सतोगुण को ही  - सुख शांति ज्ञान प्रकाश आदि अन्य नामों से अलंकृत किया जाता है। 

इसको समझना हो तो एक कार के माध्यम से समझा जा सकता है - कार को चलाने वाला यंत्र (एक्सीलेरेटर) रजोगुण है। कार को रोकने वाला यंत्र है ब्रेक। इन दोनों का होना अनिवार्य है एक कार या किसी भी वाहन को चलने योग्य बनाने के लिये।  आप इस उद्धरण को साईकल से लेकर हवाई जहाज तक तक में आरोपित कर सकते हैं। बिना एक्सीलेरेटर या पैडिल के न साईकल चलेगी न कार। यदि उसे रोकने के लिए ब्रेक न हो तो वह यंत्र किसी काम का नहीं है। आसमान में फेंकी गयी हर वस्तु  वापस पृथ्वी पर लौट आती है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण ब्रेक का काम करता है। वरना वह वस्तु अंतरिक्ष में चली जाय। 
कार साईकल या हवाई जहाज में एक्सीलेरेटर और ब्रेक को नियंत्रित करने के लिये ड्राइवर का होना आवश्यक है।  
यही है सतोगुण, बैलेंसिंग फ़ोर्स। यदि कार में ड्राइवर न हो तो एक्सीडेंट अनिवार्य रूप से घटेगा। 

यही जीवन का सत्य है। 
धनतेरस - तेरह तत्व हमारे अस्तित्व के : पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियां (हार्डवेयर, शरीर) और मन बुद्धि और अहंकार (  सॉफ्टवेयर या माइंड)।  यही तेरह तत्व हमारे जीवन को चलाते हैं। संसार के समस्त धनों को प्राप्त करने के लिए यही वह यंत्र हैं, जो आवश्यक हैं। सुख दुःख तनाव उलझन बेचैनी - समस्त धन इन्हीं यंत्रो से प्राप्य हैं। 
चौदहवाँ तत्व है - चित्त। जिसका हमें कोई अता पता नहीं है। इसका अर्थ होता है - सत्य, प्रकाश, ज्योति,   चेतनता, चैतन्य, होश, जागरण Counciousness, awareness. जिसका उद्धरण विवेकानंद देते थे । कठोपनिषद का वह मन्त्र:
उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत, छुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गम् पथ: तत् कवयो वदन्ति।

 यदि चैतन्य तत्व का हमें बोध हो  जाय तो जीवन के  अमावस ( अंधकार) में दीवाली आ जाय। वरना नरक चतुर्दशी मिलेगा अनिवार्य रूप से। नरक कोई भौगोलिक सत्ता नहीं है। जैसा कि अन्य धर्मों के लोगों का विस्वास है। नरक है स्टेट ऑफ माइंड - दुःख बेचैनी तनाव। 
तुलसीदास कहते हैं:
असन बसन पशु वस्तु विविध विधि सब मनि महँ रह जैसे।
सरग नरक चर अचर लोक सब बसहिं मध्य मन तैसे।।

मनि का अर्थ है - आज के युग मे एक ए टी एम कार्ड। यदि आपके बैंक में धन है और आपके पास ए टी एम है,  तो आपको बर्तन भाड़ा कपड़ा लत्ता का कोई तनाव नहीं लेना है। जहां जाएंगे वही सब मिल जाएगा। उसी तरह सरग नरक सब हमारे स्टेट ऑफ माइंड का नाम है। हम कैसे अपना जीवन निर्मित करते हैं उसी पर निर्भर करता है कि हम नरक चतुर्दशी को प्राप्त करेंगे, या फिर अमावस की दीवाली। 

बाहर जलाया जाने वाला दिया प्रतीक मात्र है उस दिए का जो अंदर जलता है किसी किसी के अंदर, जिसके बारे में बुद्ध ने कहा - अप्प दीपो भव। अपना दिया तुम स्वयं जलाओ। कोई किसी के जीवन में उजियारा नहीं ला सकता है। कोई किसी के जीवन में दुख और अंधकार भले ही ले आये। यद्यपि यह भी असत्य है। हमीं अपने जीवन के अंधेरे और उजाले के लिए उत्तरदायी हैं। 

सबको धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दीपावली की शुभकामनाएं।

©त्रिभुवन सिंह

You can get out of negativity. How?

#Be_Positive: #But_why_and_How ?

वितर्क बाधने प्रतिपक्ष भावनं।
- महर्षि पतंजलि 
वितर्क अर्थात मन में जो भी चलता रहता है-गड्डम गड्ड। जो भी विचार आपके मन को व्यथित करते रहते हैं वह वितर्क की श्रेणी में आते हैं। 

तर्क का अर्थ है- लॉजिकल थिंकिंग। चैतन्य चिंतन है तर्क। आपको पता है कि आप क्या सोच रहे हैं। You know what's going in your mind. वितर्क का अर्थ है कि You are not aware of your mind, but its full of bullshit thoughts which are tremendously bothering you. 

मन में चलता ही रहता है कुछ न कुछ ऐसा। मन में गीत फूट रहा है, संगीत फूट रहा है, नृत्य फुट रहा है, तो वह सुखद होता है। मन में क्रोध पनप रहा है,  हिंसा, घृणा, ईर्ष्या द्वेष अवसाद पनप रहा है, तो वह दुखद होता है। 

लेकिन सुख के क्षण सीमित होते हैं। दुख के क्षण असीमित। दुख के क्षण नहीं होते - घण्टे महीने और साल होते हैं। अधिकतर दुख भूतकाल की पीड़ाओं से या भविष्य के भय से उपजते हैं। दोनों का अस्तित्व नहीं है लेकिन मन में यही सब कुछ गड्डमड्ड चलता रहता है। जो व्यथित करता है, चिंतित करता है, उदास करता है, भयभीत करता है। 

आजकल कुछ नहीं तो कोरोना ने सबको भयभीत कर रखा है। भय मनुष्य के मन का स्वाभाविक अंग है। वृहदारण्यक उपनिषद के अनुसार मन के दस प्रकोष्ठ हैं: काम (कामना वासना चाहत डिजायर) संकल्प, विचिकित्सा ( संशय) धैर्य, अधैर्य, श्रद्धा, अश्रद्धा, हिं ( लज्जा) भीं ( भय ) धी ( बुद्द्धि विवेक)। 
यह मन या माइंड के अंग हैं। यह सभी मनुष्यों के अंदर होता है। भय बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है मानव मन का। निर्भयता ट्रैनिंग से आती है मन के। 

एक मित्र भयभीत है कोरोना से। यह बात Niraj Agrawal ने मुझे बताया। उसने बताया कि उस मित्र को भय के कारण नींद ही नहीं आ रही है। ऐसे बहुत से लोग होंगे जो भयभीत होंगे। भयभीत तो सभी हैं, परंतु कौन कितना है यह बताना संभव नहीं है। यह तो वह व्यक्ति स्वयं  जानता है। लेकिन मनुष्य का अहंकारी इतना प्रबल होता है कि उसके लिए यह स्वीकार करना कठिन होता है कि वह भयभीत है।

 मेडिकल साइंस इमोशन्स को कोई महत्व नहीं देता। क्योंकि इमोशन्स को शरीर में खोजा नहीं जा सकता। मेडिकल साइंस आजकल एविडेंस बेस्ड मेडिसिन की बात करता है। तो शरीर में इमोशन्स कहाँ खोंजे वह? लेकिन इससे सहमत होता है कि भय से शरीर का एक तंत्र सक्रिय होता है, जिससे निकले केमिकल शरीर की इम्युनिटी कम करते हैं। ( पढिये #फ्लाइट_ओर_फाइट : #HPA_Axis)। 

मन को इन व्यथाओं से मुक्त कराने की विधियों का ही योग विज्ञान में वर्णन है। हर मनुष्य के मन की व्यथा अलग अलग होती है। क्योंकि हर मनुष्य अलग है अनोखा है। लेकिन सबके माइंड का फॉरमेट एक जैसा ही होता है। 

महर्षि पतंजलि ने मन को व्यथा से मुक्त करने की अनेकों विधियों का वर्णन किया है योगसूत्र में। उनमे से एक विधि है - वितर्क बाधने प्रतिपक्ष भावनं। जब मन विचारों के जंजाल में उलझ जाए और ऊल जलूल विचार मन को व्यथित करने लगें, आतंकित करने लगें, तो प्रतिपक्ष की भावना मन में लाना चाहिए। जिसको आजकल कहा जाता है - Be Positive. Don't think Negative, Be positive.

 महर्षि कह रहे हैं कि ऐसी स्थिति में उल्टी भावना अपने मन के अंदर ले आनी चाहिए। अर्थात यदि मन में हिंसा और क्रोध उतपन्न हो, भय का संचार हो, व्यथा उत्पन्न हो तो करुणा और प्रेम, निर्भयता, हर्ष का भाव मन में लाना चाहिए। 

लेकिन क्या यह इतना आसान है?
नहीं आसान नहीं है। आसान होता तो महर्षि इसे सूत्र बद्व न करते। महर्षि पतंजलि वैज्ञानिक हैं और शब्दों में कंजूस। पूरे योग को तीन शब्दों में व्याख्यायित करने वाले : योगः चित्तवृत्ति निरोध:।

 चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है। चित्त अर्थात मन या माइंड। उसकी वृत्ति क्या है? चंचल होना। बार बार वहीं घूमफिर कर आ जाना जो बात मन मे अंटक गयी है, जिस बात पर मन विदक गया है, जो बात मन में चुभ गयी है, जो मन में खटक रही है। यह तो मन का सहज स्वभाव है।
तो फिर ? कैसे होगा वितर्क बाधने प्रतिपक्ष भावनं?

तो पहली बात तो यह है कि हमें यह समझना होगा कि जिस तरह हम जीवन जीते हैं, उसमें हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे मन में चल क्या रहा है? हम अपने मन के प्रति बेहोश रहते हैं। हम घर से निकले आफिस के लिए। और आधे घण्टे में आफिस पहुँचे। उन आधे घण्टे में हमारे मन में क्या क्या चला, क्या क्या योजनाएं बनी, कौन कौन सी व्यथाएँ उत्पन्न हुयी, इस सबका हमें कोई ख्याल ही नहीं रहता। सब कुछ यंत्रवत हो रहा है। हम एक यंत्र की भांति जीवन गुजार रहे हैं। सर्वप्रथम इस बात को स्वीकार किया जाय कि हम यंत्रवत जीवन जी रहे हैं, बेहोशी में जी रहे हैं। स्वीकार करते ही आधा काम खत्म हो जाता है। लेकिन स्वीकार गहन होना चाहिए।निरंतर होना चाहिए। 

दूसरी बात यह है कि हमें होश में, बोध में जीने की कला सीखनी होगी। हमें अपने मन का चुपके से पीछा करना होगा। हमारे मन में क्या चल रहा है चुपचाप उस पर दृष्टि रखनी होगी। तभी यह समझ मे आएगा कि हमारे मन में क्या चल रहा है।

 इसी को महर्षि पतंजलि स्वाध्यायः कहते हैं। अपना अध्ययन। अपने मन मे जो भाव या विचार आ रहे हैं उनका अध्ययन। तभी यह संभव होगा कि मन में जो विचार उत्पन्न हो रहे हैं, व्यथित कर रहे हैं, उनसे अपने चित्त को सकारात्मक विचारों और भावों की तरफ मोड़ा जा सकेगा। 

©त्रिभुवन सिंह

Wednesday, 11 November 2020

Root Cause of Depression and Frustration

Why people are so much tense and terse, depressed and irritated, angry and violent?

Because we have been designed in such manner that whatever we ingest in our body, important elements are taken by our body and waste material is excreted out in form of मल मूत्र and स्वेद। 
If this doesn't happen?
You are in severe danger. 
Your life is at risk. 

But when it comes about ingesting thoughts ideas and ideologies they make a permanent place our mind. Several thoughts are toxic. But we don't know what they are, and how to throw them out.
So we are bound to become toxic.
Toxicity becomes part of our existence. 
Toxicity means poison. 
This is solely responsible for tension, terseness, frustration anger and violence within us. We are bound to leave a constipated and sick life. 

What is the way out.
We need to do catharsis of out mind. Cleansing of mind is only way out. 

Catharsis of mind is most important.

But it's not an easy procedure.
Neither it's impossible task. 

But most important thing is that does one relly feels to cleanse his/her mind. 

© Tribhuwan Singh 

❤️🙏🏽