#भड़ास एक शब्द है।
उसका क्या अर्थ होता है, यह आप जानते हैं। इसे निकालना ही पड़ता है। वरना यह टॉक्सिक हो जाता है।
भड़ास निकालना - अर्थात जो विष या कुंठा अंदर निर्मित हो रही है, उसे निकालना।
रेचन कहते हैं इसे संस्कृत में।
यथा ऑक्सीजन हम अंदर लेते हैँ - वह बदल जाता है कार्बन डाई ऑक्साइड में। विष में। उसे निकालना रेचन कहलाता है। न निकाल पाएं तो क्या होगा?
मेटाबोलिक आंधी निर्मित होती है - प्राण घातक हो सकती है यह।
इसी को नग्रेजी में कैथार्सिस कहते हैं।
इसी तरह जितने विचार या सूचनाएं हम अपने मष्तिष्क में प्राप्त करते हैं, एकत्रित करते हैं। वे सब हमारे मन में उपस्थित राग द्वेष से मिलकर एक केमिकल टोक्सिन निर्मित करती हैं। यह केमिकल टोक्सिन हमारे अंदर हिंसा या क्रोध निर्मित करती है। वह हमारे शरीर में बारूद की भांति संचित होता रहता है। इसे एक चिंगारी की आवश्यकता होती है - भड़ास के रूप निकलती है या क्रोध का बम धमाका फूटता है।
कुछ लोग कंजूस होते हैं। प्रवृत्ति ही उनकी कंजूसी की होती है। वे देने में विश्वास नहीं करते। वे सिर्फ लेने में विस्वास रखते हैं। वे सब कुछ संचित करते रहते हैं - क्रोध, हिंसा, मल सब कुछ। वे कब्जियत का जीवन जीते हैं। चेहरे पर एक मुस्कान ओढ़कर सब कुछ छुपाये रहते हैं। विष अंदर अंदर ही घूमता रहता है। उन्हें आजकल डिप्लोमेटिक या प्रैक्टिकल लोग कहते हैं। निरन्तर अभ्यास करते रहते हैं वे इसका। लेकिन वह विष प्रकट होता है घातक षडयंत्रो के रूप में। यह सर्व समाज को भस्म कर सकता है। उनको तो करेगा ही।
इससे लाइफ स्टाइल डिजीज निर्मित होती है। डायबिटीज ब्लड प्रेशर आदि के रूप में। आजकल कितनी कम उम्र में यह बीमारियां प्रकट हो रही हैं। चिकित्सक, जो इन बीमारियों का इलाज करते हैं, वे स्वयं भी इसके शिकार हैं। लेकिन चिकित्सक इसको खान पान और कसरत के अभाव को इसके लिए उत्तरदायी ठहरा देते हैं।
वे भूल जाते हैं कि इमोशन के कारण सिस्टम में विष निर्मित होता है। मेडिकल साइंस की एक नई शाखा न्यूरो immunology इस दिशा में कार्य कर रही है।
इसलिए आवश्यक है कि विचार और भावों से निर्मित इन केमिकल टॉक्सिन्स को बाहर निकाला जाए। इनका रेचन करना अति आवशयक है - कैथार्सिस।
बाहर निकालने के माध्यम हैँ हमारे पास - शरीर और वाणी।
शरीर से कसरत करने में इनका रेचन होता है। जो लोग निरंतर कुल्हाड़ी और फावड़ा जैसे यंत्रो का उपयोग करता है, उसका क्रोध विलीन हो जाता है। लेकिन आधुनिक लोगों के लिए यह सम्भव नहीं है। वे लोग कसरत या खेल खेलना पसंद करते हैं। मेडिकल साइंस कहता है कि इससे ब्रेन में एंडोर्फिन ( मॉर्फिन की तरह का एक केमिकल) निकलता है जो #फील_गुड करवाता है।
दूसरा माध्यम है वाणी।
वाणी द्वारा रेचन - क्रोध कुंठा हिंसा को बाहर निकालना। कुछ लोग क्रोध को व्यक्त कर देते हैं तुरंत। लेकिन कंजूस लोग इसको निकालने में भी झिझकते हैं। ये डिप्लोमेटिक लोग इसके लिये मंच तलाशते हैँ।
क्योंकि आफिस या घर में यह रेचन सम्भव नहीं है आजकल। न बॉस पर निकाल सकते हैं न एम्प्लोयी पर। न बीबी पर निकाल सकते हैं। न बच्चों पर। भारी और उल्टा पड़ जायेगा।
इसलिए इसका सर्वाधिक सुरक्षित और उचित प्लेटफॉर्म है किसी मंच या संस्था का व्हाट्स एप्प ग्रुप या फेसबुक है।
जमकर कैथार्सिस कीजिये।
जम कर रेचन कीजिये।
उसे आम भाषा में किचाहिन करना कहते हैं।
दोनों पक्ष कर सकते हैं।
संस्था के भलाई के नाम पर।
सदस्यों के हितों की रक्षा करने के नाम पर।
ॐ शांति।
©त्रिभुवन सिंह