Friday 28 April 2017

लहर गिनने वालों को कोई नही रोक सकता।

मोदी जी/ योगी जी सिर्फ कठोर कानून और नियम से देश नही सुधरेगा:
एक कहानी सुनाता हूँ -
एक बार एक राजा विरोधी शत्रुओं से लड़ते लड़ते इतना कंगाल हो गया कि उसके खजाने में  अपने सैनिकों के वेतन देने भर का भी धन न बचा।
मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई गई कि क्या किया जाय।
बहुत सोच विचार के बाद ये निर्णय हुआ कि यदि प्रजा मे कोई दानी निकल आये जो राजा को दान दे दे तो फिर इस आपात काल के संकट से छुटकारा मिल सकता है।
तो ये बात आई कि भाई कौन वो भामाशाह है जो राज्य के इस संकट में दान दे सकता है।
सोचने विचारने के बाद एक वणिक का नाम सुझाया गया।
राजा उस वणिक के पास याचक बनकर पहुंचा। वणिक को अपनी समस्या सुनाई और उससे राजकाज हेतु दान करने का आग्रह किया।
वणिक ने हंसकर कहा कि - राजा साहब ले जाइए दो सहस्र स्वर्ण मुद्राएं और राजकाज कीजिये।
राजा ने उससे धन तो स्वीकार कर लिया परंतु ये बात उनको अखर गयी कि राजा निर्धन और एक वणिक महा धनी। उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि उस वणिक की संपत्ति जब्त करके इसको पशु शाला में पशुओं के गोबर का हिसाब रखने का काम सौंप दिया जाय।
वणिक खुसी खुसी काम मे लग गया।
तीन चार साल बाद राजा को फिंर धन का संकट हुआ तो
फिंर उनके मंत्रियों ने राजा को उसी वणिक का आश्रय लेने की बाद बोली।
राजा साहब पुणः याचक की मुद्रा में वणिक के पास पहुंचे। वणिक ने फिंर हंसकर उनको दो सहस्र मुद्राएं दान दिया।
राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि कहां से उसने फिंर से धन जुटा लिया। राजा ने उससे पूंछा कि तुमने कैसे धन जुटाया।
वणिक ने कहा - अन्नदाता आपने पशुधन के गोबर का हिसाब देखने की बात की थी । तो मैंने यहां देखा कि घोड़े कम गोबर कर रहे थे। मैने घोड़े के चारे का इंतजाम करने वाले से बोला कि तुम चना कम खिला रहे हो घोड़े को इसीलिए गोबर कम हो रहा है , में राजा को लिखकर शिकायत करूंगा। उसने मेरे हांथ पैर जोड़े, लेकिन मैंने उससे कहा कि प्रतिघोडा एक सेर चने का पैसा सुबह दोपहर शाम मुझे चाहिए। इसके अलावा हांथी गाय आदि में भी यही सिस्टेम लगाया। तभी तो आज आपकी मदद कर रहा हूँ।

राजा को बहुत क्रोध आया उसने आदेश दिया कि इसकी सब संपत्ति राजकोष मे जमा करवाकर इसको समुंदर किनारे ड्यूटी लगा दो जहां कोई मानृस जाति आती जाती नही।
मंत्रियों ने पूंछा कि - हुजूर ये वहां करेगा क्या ?
राजा ने कहा - समुद्र की लहरें गिनेगा।

खैर वणिक पहुंच गया समुद्र किनारे । गहरी सोच में डूबा था कि इस वीराने के करूं क्या ? तब तक उसने देखा कि एक मालवाहक जहाज समुद्र से धरती की ओर चलता चला आ रहा है। वणिक की बुद्धि तुरंत हरकत में आ गयी।
उसने तुरंत समुद्र के चालक को वार्निंग दी - खबरदार तुम  राजाज्ञा का उल्लंघन कर रहे हो। तुम्हारी जहाज घाट पर अपना माल नही उतारः सकती, क्योंकि इससे लहर डिस्टर्ब हो रही है। देखो मेरे पास राजाज्ञा है कि लहर गिनकर रोज के रोज डेटा राजा के पास भेजना होता है।
जहाज का मालिक बहुत गिड़गिड़ाया कि हुजूर मेरा करोङो का नुकसान हो जाएगा, जहाज में कच्चा माल है, यदि समय से इसे बाजार में नही पहुंचाया तो सब माल सड़ जाएगा।
वणिक ने बोला कि राजाज्ञा का उल्लंघन संभव नही है।
तब जहाज वाले ने पूंछा कि राजाज्ञा की बात छोड़ो , संभव कैसे होगा ये बताओ।
वणिक ने कहा कि अंटी ढीली करो कुंछ माल मेरे एकाउंट मे ट्रांसफर करो, हो जाएगा।

खैर चलता रहा।

कुछ सालों बाद राजा को पुनह् आर्थिक संकट आया तो फिर उसके सलाहकारों ने उनको उसी वणिक के पास भेजा। वणिक ने फिंर अपने खजाने से राजा को दो सहस्र मुद्राएं दान दी।
इस बार राजा गुस्सा नही हुआ।
उसने पूंछा कि प्रभु इस निर्जन समुद्र तट पर कैसे धन कमाया।
वणिक ने बताया।
राजा ने इस बार उसको सजा नही दी, उसे अपने मंत्रिमंडल का मुख्य सलाहकार बनाया।

ये है तो लोककथा लेकिन समसामयिक है।

ये किसी वर्ग को लेकर लिखी गयी पोस्ट नही है ।
मन बुद्धि चित्त अहंकार नामक चार चीजे मानव स्वभाव का अंग हैं उसी पर कहानी का फोकस है।

दृश्टान्त ये है कि - लहर गिनने वालों का क्या कीजिये

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