Tuesday, 16 June 2015

डॉ अंबेडकर की थेसिस -"शूद्र कौन थे ";को कौटिल्य अर्थशास्त्रम झूठा प्रमाणित कर रहा है / क्या उनके अनुयाइयों को चुनौती स्वीकार है

"ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य शुद्रसैन्यानां तेजः प्राधान्यतपूर्वम पूर्वं श्रेयः सन्नाहयितुमित्याचार्याह ।"

अनुवादप्राचीन आचार्यों का मत है कि तेज की अतिशयता होने के कारण ब्राहण, क्षत्रिय वैश्य और शुद्र , इन चारो वर्णों की सेनाओ में उत्तर ( वैश्य और शुद्र) की अपेक्षा पूर्व ( ब्राम्हण और क्षत्रिय ) की सेना अधिक श्रेष्ठ है ।

" नेति कौटिलयः। प्रनिपातेन ब्रम्हणम्बलम परोअभि हारयेत । प्रहरणविद्याविनीतम् तू क्षत्रियबलं श्रेयः, बहुलसारं वा वैश्यशुद्रबलम् इति।"

अनुवाद: इसके विपरीत आचार्य कौटिल्य का मत है कि ' शत्रुपक्ष ब्राम्हण सेना के समक्ष नमस्कार कर या सर झुकाकर अपने वश में कर लेता है। इसलिए युद्धविद्या में क्षत्रिय सेना को ही सर्वाधिक श्रेष्ठ समझना चाहिए ', अथवा वैश्य तथा शुद्र सेना को भी श्रेष्ठ समझना चाहिए , यदि उनमे वीर पुरुषो की अधिकता हो ।
फ्रॉम : कौटिल्य अर्थशास्त्रं नौवां प्राधिकरण प्र - 137 -139 : अ -2 पेज 600।
नोट - यही बात तेवेर्निएर भी कह रहा है कि शुद्र पदाति सैनिक थे ।लेकिन डॉ आंबेडकर वेद के पीछे घूमते रहे । मनुस्मृति जलाते रहे। अर्थशास्त्री होते हुए भी विश्व प्रसिद्द अर्थ शास्त्री कौटिल्य को न पढ़ा। और निष्कर्ष निकाल लाये कि Shudras were alotted menial job वेदकाल से ।
कितनी तड़प रही होगी आत्मा आज डॉ आंबेडकर की अपनी इस ऐतिहासक भूल पर ?

 डॉ अंबेडकर ने अपनी थेसिस "शूद्र कौन थे " मे इस थेसिस को अंतिम सत्य नहीं माना था / वो इस बात के लिए तैयार थे कि कोई अगर उनके थेसिस को चलेंज करेगा तो वे उस चुनौती को सहृदय के साथ स्वीकार करेंगे / लेकिन भारत के बुद्धिजीवियों ने उसको अंतिम सत्य मान लिया , और उसके आधार पर लाखों पेज का फूहड़ दलित  साहित्य रच डाला जो गाली गलौज का एक फूटपथिया भंडार भर है /

डॉ अंबेडकर ने वेद के पुरुष सूक्त को क्षेपक घोषित किया था / वेद तो प्रागैतिहासिक है जिसको ईसाई संस्कृतज्ञों ने मिथक घोसित  किया था / पुरुष सूक्त परम ब्रम्ह के और  ्universe की उत्पत्ति की परिकल्पना मात्र है और वो भी आध्यात्मिक / वहाँ से उन्होने किस तरह ये निसकर्ष निकाला कि शुदों को घृनित काम साँपा गया , ये तो वामपंथी और दलित मित्र ही बता पाएंगे / लेकिन कौटिल्य तो ऐतिहासिक पुरुष हैं जिंनका  अर्थशास्त्र दुनिया की  अमूल्य निधि है / कौटिल्य के अर्थशास्त्र के  मात्र दो श्लोक ही डॉ अंबेडकर कि थेसिस को झूँटा प्रमाणित करते है / 


क्या डॉ अंबेडकर के अनुयाई उनके संपनों को सत्य प्रमाणित करने के लिए इस चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हैं कि डॉ अंबेडकर की थेसिस पूरी तरह झूँठ है ?

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