जीवन का नियम है - जो हो जाय वही जरूरी था। जो न हो पाए वह गैर जरूरी था।
लेकिन मनुष्य के मन का नियम यह है कि जो हो गया, वह गैर जरूरी था। जो न हो पाया वही जरूरी था।
जो प्राप्त हो गया उसका मूल्य नहीं रहता जीवन में।
जो न मिल पाया वही कचोटता रहता है।
जो प्राप्त है वह अपर्याप्त है।
जो अप्राप्त है मन उसी के पीछे भटकता रहता है।
इसी को #मृग_मरीचिका कहते हैं।
#मृगतृष्णा
Mirage
ऐसी प्यास जो कभी बुझती नहीं।
मनुष्य जब पशु के आयाम में जीवन बिताता है - भूख भय मैथुन निद्रा। यह मनुष्य और पशुओ में सामान्य है। आवश्यकता है जीवन की।
पशु से मनुष्य को अलग करती हैं उसकी महत्वाकांक्षा। उसके सपने। वह सपने जो वह दिन रात देखता रहता है।
मनुष्य की अनंत इच्छाएं, वासनाएं, कामनाएं उसको जीवन भर अप्राप्त के पीछे दौड़ाती रहती हैं। फिर एक दिन जीवन की शाम आ जाती है।
©त्रिभुवन सिंह
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