#अंतर्यात्रा: #माइंड_को_जानें :
बहुत से लोग माइंड को समझने के इच्छुक प्रतीत होते हैं।
किसी भी चीज को जानने के दो तरीके हैं।
आधुनिक बायोलॉजिकल साइंस का तरीका:
न जाने हमसे कितने केचुओं और मेंढकों की हत्या करवायी गयी इनको जानने समझने के लिए, लेकिन आज लगता है कि व्यर्थ की हिंसा और हत्या मात्र थी वह सब।
काट पीट कर किसी को मुर्दा बनाया जा सकता है, उसके मुर्दा अंग का अध्ययन किया जा सकता है। लेकिन क्या मुर्दे को पढ़कर जीवित को जाना जा सकता है? हाँ यदि उसका कोई बाजारू पक्ष्य है तो उसके अनुरूप उसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं - पक्ष्य और विपक्ष दोनों तरफ।
दूसरा तरीका है: प्राचीनतम वैदिक साइंस का तरीका। यहां बता देना उचित होगा कि आधुनिक मेडिकल साइंस आज तक माइंड के बारे में कयास मात्र लगा रहा है। किसी निश्चित निष्कर्ष पर आज तक नहीं पहुँच सका है।
मैं मेडिकल स्टुडेंट हूँ। मेरी लिस्ट में अनेक डॉक्टर हैं, वे सहमत और असहमत दोनों हो सकते हैं। वे अपना पक्ष्य रख सकते हैं। मेडिकल साइंस में कम से कम पांच या छः शाखाएं हैं जो अपने अपने तरीके से माइंड का अध्ययन कर रहे हैं - न्यूरोलॉजी, न्यूरोसाइंस, न्यूरोसर्जरी, साइकाइट्री, साइकोलॉजी, न्यूरो immunology। लेकिन उनकी स्थित उन पांच अंधों जैसी हैं जो हांथी को टटोलकर हांथी का व्याख्यान करते है अपनी अपनी समझ के अनुसार। मजे की बात यह है कि ये आपस मे बैठकर एक दूसरे से बात भी नहीं करते, माइंड को संपूर्णता से समझने के लिए। लेकिन सबके अपने अलग अलग नेशनल और इंटरनेशनल फोरम हैं।
वैदिक साइंस का तरीका है - क्लोज ऑब्जरवेशन का। मुझे आपके बारे में जानना हो तो आपका पोस्टमार्टम करूं या आपके कृत्यों का अध्धयन करूं बारीकी से?
तो यही बात माइंड के बारे में भी लागू होती है। माइंड को जानना अर्थात अंतर्यात्रा। अंतर्यात्रा एक विधि है माइंड को जानने का। तो माइंड को जानना है तो अपने माइंड का अध्ययन कीजिये।
फिर समस्या आ गयी कि माइंड का अध्ययन कैसे करें?
आंख कान नाक मुंह स्पर्श सबके सब तो बाहर की सूचनाएं दर्ज करती हैं - जिसको माइंड रिकॉर्ड करता है। यह ऐसी ही बनी हुई हैं। बाहर की ओर बनी हैं इसलिए बाहर की तरफ जाना ही इनका धर्म है। बाहर अर्थात संसार की तरफ। लेकिन यह सब सूचनाएं एकत्रित होती हैं अंदर - माइंड में।
तो फिर क्या किया जाय?
भगवत गीता में इसका एक तरीका भगवान कृष्ण ने बताया है :
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणं आस्थित: योगधरणाम।।
सभी द्वार अर्थात - नाक कान आंख मुंह आदि को बन्द करके मन को हृदय में और प्राणवायु को सिर पर केंद्रित करके अपने को योग में स्थापित करना ही योग की स्थिति है। बुद्द्धि के स्तर इसे समझना है तो सरल बात, परंतु कठिन प्रतीत होती है।
कठोपनिषद में इसका सरल उपाय बताया गया है - आवृत्तचक्षु:।
आंख को बन्द करो। आंख को बन्द करते ही हम सीधे माइंड के संपर्क में आ जाते हैं। माइंड से संपर्क स्थापित हो जाय तो उस पर निगाह रखो। देखो कि क्या चल रहा है तुम्हारे मस्तिष्क में। उसमे देवता निवास कर रहा है या शैतान? जो स्वरूप तुम्हारा बाहर प्रदर्शित होता है, या जो मास्क लगाकर हम घूम रहे हैं वह अनावृत्त हो जाएगा।
मेडिकल साइंस आज माइंड की तरंगों को बाहर से नाप सकता है जिनको वह ब्रेन वेव्स कहता है - अल्फा बीटा डेल्टा गामा थीटा। पांच तरह की वेव्स।
वैदिक साइंस इसको कहता है चित्त की वृत्तियों की तरंग - मूढ़, क्षिप्त, विक्षिप्त, एकाग्र निरुद्ध। दोनों के निष्कर्ष एक दूसरे से प्रायः मिलते हैं।
लेकिन यह तरंगे मात्र उनकी फ्रीक्वेंसी बताती हैं अर्थात मस्तिष्क कितना भिन्ना रहा है यही बताती हैं - किसके बारे में लेकर भिन्ना रहा है यह मेडिकल साइंस अभी तक नहीं जान सका है।
यदि साइंस हमारे दिमाग की खिड़की खोलकर यह जान सके कि हमारे माइंड में क्या क्या चल रहा है, और उस जानकारी को पब्लिक किया जा सके तो संत और शैतान का भेद खुल जायेगा। न जाने कितने संत शैतान निकलेंगे, और न जाने कितने शैतान संत।
कठोपनिषद का वह क्रांतिकारी मंत्र - आवृत्तचक्षु:, वाला यहाँ नीचे स्नैपशॉट में है। और अंतर्यात्रा का चार्ट भी।
©त्रिभुवन सिंह
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