Wednesday, 17 June 2020

How to know your mind ?

#अंतर्यात्रा: #माइंड_को_जानें :

बहुत से लोग माइंड को समझने के इच्छुक प्रतीत होते हैं।
किसी भी चीज को जानने के दो तरीके हैं।
आधुनिक बायोलॉजिकल साइंस का तरीका:
न जाने हमसे कितने केचुओं और मेंढकों की हत्या करवायी गयी इनको जानने समझने के लिए, लेकिन आज लगता है कि व्यर्थ की हिंसा और हत्या मात्र थी वह सब। 

काट पीट कर किसी को मुर्दा बनाया जा सकता है, उसके मुर्दा अंग का अध्ययन किया जा सकता है। लेकिन क्या मुर्दे को पढ़कर जीवित को जाना जा सकता है? हाँ यदि उसका कोई बाजारू पक्ष्य है तो उसके अनुरूप उसका उपयोग किया जा सकता है। इसके अनेक दृष्टिकोण हो सकते हैं - पक्ष्य और विपक्ष दोनों तरफ। 

दूसरा तरीका है: प्राचीनतम वैदिक साइंस का तरीका। यहां बता देना उचित होगा कि आधुनिक मेडिकल साइंस आज तक माइंड के बारे में कयास मात्र लगा रहा है। किसी निश्चित निष्कर्ष पर आज तक नहीं पहुँच सका है।
 मैं मेडिकल स्टुडेंट हूँ। मेरी लिस्ट में अनेक डॉक्टर हैं, वे सहमत और असहमत दोनों हो सकते हैं। वे अपना पक्ष्य रख सकते हैं। मेडिकल साइंस में कम से कम पांच या छः शाखाएं हैं जो अपने अपने तरीके से माइंड का अध्ययन कर रहे हैं - न्यूरोलॉजी, न्यूरोसाइंस, न्यूरोसर्जरी, साइकाइट्री, साइकोलॉजी, न्यूरो immunology। लेकिन उनकी स्थित उन पांच अंधों जैसी हैं जो हांथी को टटोलकर हांथी का व्याख्यान करते है अपनी अपनी समझ के अनुसार। मजे की बात यह है कि ये आपस मे बैठकर एक दूसरे से बात भी नहीं करते, माइंड को संपूर्णता से समझने के लिए। लेकिन सबके अपने अलग अलग नेशनल और इंटरनेशनल फोरम हैं।

वैदिक साइंस का तरीका है - क्लोज ऑब्जरवेशन का। मुझे आपके बारे में जानना हो तो आपका पोस्टमार्टम करूं या आपके कृत्यों का अध्धयन करूं बारीकी से?

तो यही बात माइंड के बारे में भी लागू होती है। माइंड को जानना अर्थात अंतर्यात्रा। अंतर्यात्रा एक विधि है माइंड को जानने का। तो माइंड को जानना है तो अपने माइंड का अध्ययन कीजिये। 

फिर समस्या आ गयी कि माइंड का अध्ययन कैसे करें?

 आंख कान नाक मुंह स्पर्श सबके सब तो बाहर की सूचनाएं दर्ज करती हैं - जिसको माइंड रिकॉर्ड करता है। यह ऐसी ही बनी हुई हैं। बाहर की ओर बनी हैं इसलिए बाहर की तरफ जाना ही इनका धर्म है। बाहर अर्थात संसार की तरफ। लेकिन यह सब सूचनाएं एकत्रित होती हैं अंदर - माइंड में। 

तो फिर क्या किया जाय?  
भगवत गीता में इसका एक तरीका भगवान कृष्ण ने बताया है :
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणं आस्थित: योगधरणाम।।

सभी द्वार अर्थात - नाक कान आंख मुंह आदि को बन्द करके मन को हृदय में और प्राणवायु को सिर पर केंद्रित करके अपने को योग में स्थापित करना ही योग की स्थिति है। बुद्द्धि के स्तर इसे समझना है तो सरल बात, परंतु कठिन प्रतीत होती है। 

कठोपनिषद में इसका सरल उपाय बताया गया है - आवृत्तचक्षु:। 

आंख को बन्द करो। आंख को बन्द करते ही हम सीधे माइंड के संपर्क में आ जाते हैं। माइंड से संपर्क स्थापित हो जाय तो उस पर निगाह रखो। देखो कि क्या चल रहा है तुम्हारे मस्तिष्क में। उसमे देवता निवास कर रहा है या शैतान? जो स्वरूप तुम्हारा बाहर प्रदर्शित होता है, या जो मास्क लगाकर हम घूम रहे हैं वह अनावृत्त हो जाएगा। 

मेडिकल साइंस आज माइंड की तरंगों को बाहर से नाप सकता है जिनको वह ब्रेन वेव्स कहता है - अल्फा बीटा डेल्टा गामा थीटा। पांच तरह की वेव्स। 
वैदिक साइंस इसको कहता है चित्त की वृत्तियों की तरंग -  मूढ़, क्षिप्त, विक्षिप्त, एकाग्र निरुद्ध। दोनों के निष्कर्ष एक दूसरे से प्रायः मिलते हैं। 

लेकिन यह तरंगे मात्र उनकी फ्रीक्वेंसी बताती हैं अर्थात मस्तिष्क कितना भिन्ना रहा है यही बताती हैं - किसके बारे में लेकर भिन्ना रहा है यह मेडिकल साइंस अभी तक नहीं जान सका है। 

यदि साइंस हमारे दिमाग की खिड़की खोलकर यह जान सके कि हमारे माइंड में क्या क्या चल रहा है, और उस जानकारी को पब्लिक किया जा सके तो संत और शैतान का भेद खुल जायेगा। न जाने कितने संत शैतान निकलेंगे, और न जाने कितने शैतान संत। 

कठोपनिषद का वह क्रांतिकारी मंत्र - आवृत्तचक्षु:, वाला यहाँ नीचे स्नैपशॉट में है। और अंतर्यात्रा का चार्ट भी। 

©त्रिभुवन सिंह 
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Fusion Science of Human Existence

#फ्यूज़न_साइंस_ऑफ_ह्यूमन_बीइंग :

प्रत्येक मनुष्य दो कोशिकाओं से निर्मित है -एक शुक्राणु और एक अंडाणु। यह हर बच्चा जानता है। 
Zygot बनता है इनसे। फिर मात्र तीन माह में ये लगभग 200 ट्रिलियन कोशिकाओं के समूह में बंट जाती है। सभी विशेषज्ञ कोशिकाएँ। कोई भी कोशिका सामान्य नहीं। हर कोशिका विशेषज्ञ। हर कोशिका लगभग अपने आप मे सम्पूर्ण। जो एक मनुष्य के शरीर मे घटता है वह सभी कोशिकाओं के अंदर घटता है - खाना पखाना, सांस लेना, मेटाबोलिज्म या उपापचय। 

जीव वैज्ञानिक इनका डेटा एकत्रित कर सकता है, कर लेता है - क्रोमोजोम से लेकर जीन तक - शूक्ष्म अध्ययन के द्वारा। और स्थूल अध्ययन के द्वारा मेडिकल साइंस जिसको हम लोग पढते हैं।

मेडिकल साइंस जेनेटिक साइंस आदि समझते हैं कि इतना ही जीव सम्पूर्ण होता है। मेडिकल या जेनेटिक साइंस प्रकृति या लौकिक संसार तक ही जा सकता है। फिजिकल अस्तित्व के ऊपर वह जा नहीं सकता। उसकी एक सीमा है। लेकिन वह समझता है कि यही अंतिम सीमा है।

लेकिन यदि सामान्य बुद्द्धि और जिज्ञासा हो तो इस मिथ को भंग किया जा सकता है। हम एक कोशिका अपने पिता से उधार लेते हैं और एक अपनी माता से । या दूसरी भाषा में कहें कि आनुवंशिकी विज्ञान (जेनेटिक साइंस) के अनुसार एक-एक कोशिका हमे अपने माता पिता से उपहार में मिली हैं। जिसने हम निर्मित होते हैं। लेकिन हमको जो भी चीज उपहार या उधार में मिलती है वह हमारी संपत्ति हो सकती हैं, हम नहीं हो सकते वह। लेकिन हमारा विबेक कहता है कि उसी में हम भी रहते हैं। 

ईशोपनिषद कहता है:
पूर्णमदम् पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णात पूर्णम् उदच्यते। 
पूर्ण वह भी है पूर्ण यह भी है। पूर्ण से पूर्ण निकलता है। 

तो यह पहली कैसे सुलझे कि उधार या उपहार में प्राप्त दो कोशिकाओं से बने इस स्थूल शरीर मे मैं कहाँ और कैसे रह रहा हूँ? 
सत्वं रजः तम इति गुणा: प्रकृति संभवा।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययं ।। 
- भगवतगीता
प्रकृति से उत्पन्न तीन गुण, सत रज तम मिलकर इस शरीर मे अविनाशी जीव को बांधते हैं। 

यह असेम्बली तैयार होती है - मां के गर्भ में। असेम्बली शब्द का प्रयोग इसलिए कर रहा हूँ कि इस शब्द से आप परिचित हैं। हर वस्तु आज असेंबल होती है। मनुष्य जैविक कंप्यूटर है। कृत्रिम कंप्यूटर (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) असेम्बल होता है, यह आप जानते हैं। 

तो जैविक कंप्यूटर की असेम्बली है मां का गर्भ। 
पिता और माता से मिला प्रकृति के तीन गुण - सत रज तम। जिसको जेनेटिक साइंस और मेडिकल साइंस समझ सकते हैं। अब इसमें असेंबली होनी होती है जीव की, जो आत्मा है और परमात्मा का अंश है। स्थूल प्रकृति और आत्मा के बीच का बन्धन बनाता है मन ( माइंड ) तथा पांच ज्ञानेन्द्रिया। ज्ञानेंद्रियों को भी विज्ञान ने समझ लिया है, लेकिन माइंड को अभी समझ नहीं सके हैं - माइंड एक तरह का सूक्ष्म भौतिक और अभौतिक के बीच के तरह का तत्व है। 

ममैवांशो जीवलोके जीवभूत सनातनः।
मनः षस्टाणि इन्द्रियाणि प्रकृति स्थाने कर्षति।।
- भगवतगीता

माता पिता से प्राप्त कोशिकाओं में हम प्रविष्ट होते हैं मन और पांच इंद्रियों के साथ। मन प्रकृति का हिस्सा है - आत्मा अलौकिक है, सनातन है, जबसे सृष्टि निर्मित हुयी है, तब से अस्तित्व में है - जो समस्त ऊर्जा का स्रोत है, लेकिन वह अकर्ता है। कुछ करता नहीं है। लेकिन सब कुछ उसी की उपस्थिति में घटती है। इसको वैज्ञानिक भाषा वालो को ऐसा समझाया जा सकता है। हमने एक तत्व सुना है - catalyst (उत्प्रेरक)। अनेकों जैविक और रसायनिक क्रियाएं तभी घटती हैं जब कैटेलिस्ट उपस्थित हो। वस्तुतः कैटेलिस्ट उसमें कुछ योगदान नहीं देता है - अकर्ता है। ठीक आत्मा को ऐसा ही समझा जा सकता है मोटा मोटा। 

यह असेम्बली निर्मित होने के बाद दो कोशिकाओं का विभाजन शुरू होता है - और तीन माह में दो सौ ट्रिलियन कोशिकाओं मे विभाजित हो जाती हैं। इतने कम समय मे इतनी कोशिकाओं को निर्मित करने में कितनी बड़ी फैक्ट्री की आवश्यकता होगी, इसकी मात्र कल्पना की जा सकती है।
प्रकृति को स्त्री सूचक संज्ञा से संबोधित करते हैं हम। माया दुर्गा सीता काली आदि उन्हीं शक्तियों का नाम है जिससे यह जग निर्मित हुवा है। 

आदिशक्ति जेहिं जग उपजाया।
सो अवतरेहु मोर यह माया।।
- रामचरितमानस 

यह एक नया तरीका है अस्तित्व को समझने का।
आपको शायद पसंद आये। 

#Note: I hope few medical scientists and genetists will come to counter or hail this article. This is how we can establish value of our heritage in modern world, which is blind enough to accept anything in the name of science - Even Aryan Invasion hoax too, in the name of fake Science Indology.

©Singh Tri Bhuwan

Saturday, 13 June 2020

छुआछूत संक्रामक बीमारियों और भूंखमरी की उपज : ब्रिटिश दस्युओं का उपहार

#कोरोना_वायरस_से_भयभीत मूषक की तरह विश्व ने,  इसके प्रसार और इससे बचने हेतु,  #छुआछूत फैलाने और अपनाने को एक मात्र रास्ता बताया है।

मैंने प्रमाणों के साथ इस अफवाह का खंडन किया है कि छुआछूत का हिन्दू धर्म से कोई सम्बन्ध है। 

हिन्दू धर्म के दस अंग हैं जिन्हें धारण करना ही हिंदुत्व है:
धृति क्षमा दमो अस्तेयं शौच इन्द्रिय निग्रह।
धी विद्या सत्यं अक्रोधो दशकम् धर्म लक्षणम्।
- मनुस्मृति 6.91 

याज्ञवल्क्य ने भी धर्म की यही परिभाषा दिया है।

#शौच अर्थात सैनिटेशन और हाइजीन धर्म का लक्षण है। 

इसी की बात WHO भी कर रहा है। 
भारतीय सरकार भी यही काम करने की राष्ट्रीय योजना बना रही है। 

भारत को लूटने वाले दस्यु ईसाई उस समय भारत के शासक भी थे, जब करोड़ो भारतीय, उनके निरंतर 200 वर्षो के लूट के कारण,  1850 के बाद ऐसी स्थिति में आ गए कि उनको दो जून की रोटी भी मिलना मुश्किल हो गया। भारत को सभ्य बनाने आने का दावा करने वाले दस्युवों ने नमक तक पर इतना टैक्स लगा रखा था कि आम आदमी के लिए नून रोटी मिलना मुश्किल था। गांधी को राष्ट्रीय आंदोलन करना पड़ा। 

ऐसी परिस्थितियों में संक्रामक रोगों के कारण 1850 से 1900 के बीच 3 से 4 करोड़ भारतीयों की भुखमरी और संक्रामक रोगों से मृत्यु हुयी।
 
अकेले 1918 में इन्फ़्लुएन्ज़ा से 12.5 करोड़ लोग प्रभावित हुए, जिनमे से 1.25 करोड़ लोगों की मौत हो गयी। - विल दुरान्त The Case For India. 

इन संक्रामक रोगों से निबटने की किसकी जिम्मेदारी थी? सरकार की या समाज की? 
सरकार तो हिंदुओं को मारने में लगी थी - बीमारी से गोला बम बारूद से। 

"जलियांवाला बाग में दस हजार निहत्थे हिन्दुओ पर गोलीबारी बारे करके 3,600 लोगो को घायल करने और 1200 लोगों की हत्या करने वाले जेनरल डायर को हाउस लॉर्ड्स ने दोषी पाया, और हाउस ऑफ कॉमन्स ने दोषमुक्त पाया और उसको पेंशन देकर कार्यमुक्त किया। इस पुरस्कार को अपर्याप्त मानते हुए फ़ौजिवादियो ने चंदा एकत्रित करके उसे 150,000 ( डेढ़ लाख) डॉलर के साथ एक रत्नजड़ित तलवार भेंट किया"।
- विल दुरान्त The Case For India. P. 135-136

ये था चरित्र उन लोगों का जिनके ऊपर अपनी जनता को संक्रामक रोगों और भुखमरी से बाहर निकालने का उत्तरदायित्व था। 

समाज ने इन संकामक रोगों से लड़ने हेतु शुचिता ( शौच) की प्रथा अपनाया, जिसे #Untochability का नाम देकर हिन्दू धर्म के अंधविश्वास से जोड़ा गया। 

उनकी सहायता किया श्री भीम राव अम्बेडकर जी ने #लोथियन_समिति में अपनी रिपोर्ट देकर, जो सर्वदा असत्य और अफवाह पर आधारित थी। मैं चुनौती देता हूँ, समस्त वामियों और दलित चिंतको को इस रिपोर्ट के संदर्भ में शास्त्रार्थ करने हेतु।

आज इतिहास ने भारत ही नही, विश्व को उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है, जब वह अंतराष्ट्रीय स्तर पर छुआछूत की नीति को एक राष्टीय और अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की तरह अपनाने को बाध्य है। 

WHO ने इस कार्य के  लिए विभिन्न देशों को 19 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की है। 

बहुत से शब्द नग्रेजी में लिखे गए है इस प्लान में -
Quarantine
Containment.
Social distancing - key intervention.
Cluster containment.
Buffer zone - 5 किलोमीटर से लेकर जिले के चारो ओर अन्य जिलों तक। 

इन सबका हिंदी और अंग्रेजी में अर्थ निकालिए तो आपको यह रहस्य एकदम दर्पण की तरह स्पष्ट हो जाएगा।

©त्रिभुवन सिंह