आज कोरी या कोली भारत के एस सी हैं , 1872 मे M A Sherring के अनुसार - " कोली बैस राजपूतों के सम्मानित वंशज हैं " , जो बुनकर हुआ करते थे /
मुसहर आज सबसे गरीब कुनबा है भारतीय समाज का , जो अंग्रेजों के नमक कारोबार पर मोनोपोली कायम करने के पूर्व नमक का निर्माता हुआ करता था / वो भी आज S C है / यानि depressed class = अछूत /
क्या है रहस्य इन सच्चाईयों का , जो इतिहास के पन्नो मे दफन है /
नुनिया या लुनिया (लोनिया)
×××××××××××××××××××
अंग्रेजों के लूट का व्योरा देते हुये आर्थिक इतिहासकर अमिय बघची लिखते है - "बिहार और बंगाल की GDP से 1793 से 1807 तक का एवरेज सालाना लगभग ४७४,२५०,००० (47 करोड़ 42 लाख 50 हजार प्रति वर्ष ) रुपया भारत से ब्रिटेन जाता था / इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही रेवेनुए से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा कि बिहार और बंगाल की 7.07 प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था /
हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में औद्योगीकरण में होने वाला इन्वेस्टमेंट 7 प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में 15 से 20 प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /
लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ( मैनुफेक्चुरिंग के क्षेत्र मे ) ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx"
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
अब एक क्षेत्र था नमक के निर्माण का जिसको ईसाई अंग्रेजों ने नूनिया या लोनिया कास्ट से वर्णित किया है / नमक का व्यवसाय वो पहला व्यवसाय है जिस पर अंग्रेजों ने सबसे पहले एकाधिकार जमाया / 1780 मे नमक पर टैक्स मात्र 3 पैसे प्रति मन / मोन्द ( 40 सेर = 1 मन ) था जिसको बढ़ाकर ईस्ट इंडिया के वाइस रॉय ने 3 रुपये 25 पैसे प्रति मन कर दिया / 6 व्यक्तियों के परिवार के लिए प्रतिवर्ष नमक का खर्च 2 रुपये आता था , और एक मजदूर की उस जमाने मे 2 रुपये कमाने के लिए 2 माह मेहनत करना पड़ता था / जिन लोगों को इस बात पर आपत्ति हो कि मॉडर्न हिएयरची आधारित कास्ट सिस्टम अंग्रेजों ने नहीं बनाई , भारत मे पहले से थी , तो उनको बता दूँ कि -- जात का अर्थ भारत मे मैनुफेक्चुरिंग इकाई हुआ करती थी जिसमे समाज का कोई भी वर्ण शामिल हो सकता था , आपस मे ही शादी व्याह करते थे , जिसमे कोई ऊंच नीच नहीं थी / नीचे उद्धृत लेख से ये बात स्पस्ट हो जाएगी / बाकी नमक के इतिहास को प्रेमचंद के "नमक का दारोगा " गांधी के दांडी मार्च और नमक आंदोलन से समझा जा सकता है /
M A Shering की पुस्तक से उद्धृत (1872)
"नुनिया शब्द नून या लोन (नमक) से उद्धृत है इसलिए नुनिया शब्द से ही इनके व्ययसाय का पता चल जाता है के ये नमक के उत्पादक यानि मैन्युफैक्चरर है।लेकिन अब यह व्यवसाय दूसरे लोगों के हांथों में चला गया है।
इस cast के लोग इस व्यवसाय को पूरी तरह से त्यागने को बाध्य है अन्यथा वो भूख से मर गए होते ।भारत सरकार ने इस पर मोनोपोली कर के कब्जा कर लिया है । और अब वह कुछ जिलों को छोड़कर , किसी को भी इसके निर्माण की अनुमति नहीं देती यद्यपि यह जमीन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।उदाहरण के लिए बनारस प्रान्त के विभिन्न भागों की जमीन saltpetre से भरी पड़ी है ।इसलिए इन जिलों में नमक की मैन्युफैक्चरिंग आसान बात है परंतु नमक के व्यवसाय का कोई स्कोप न होने के कारण इन लोगों ने बुद्धिमानी का परिचय दिया और दूसरे क्षेत्रों में लेबर का काम करने लगे है । वो अब कुवां पोखर और तालाब खोदने लगे हैं ।ईंट और टाइल बनाने का भी वो काम करने लगे हैं ।
इस क्षत्र के नुनिया लोग सम्भल से आये हैं । इनके ट्राइब के 7 सब devision हैं जो एक दूसरे से अलग हैं ।मेरे पास दो सुंचिया हैं , एक बनारस से और एक मिर्जापुर से , जिनमे काफी भिन्नता है।
बनारस के नुनिया लोगों का सब devision
1.चौहान
2.औधिया (अवध के निवासी )
3.मुसहर
4. बिंद
5.भुइँहार
6. लोढ़ा
मिर्जापुर के नुनिया ट्राइब का सब devision
1.बक्ष गोत्र चौहान (जनेऊ धारी )
2.बक्ष गोत्र चौहान ( बिना जनेऊ वाले )
3.भुइँहार
4. पंचकौता
5.लोध
6. मुसहर "
सोर्स : Caste and tribes of India ; M A Sherring
Note: अब ये देखें कि आधुनिक भारत में एक ही व्यव्साय से जुड़े कुल और वंशज आज किस कास्ट में विभाजित हैं ? उनकी आर्थिक और सामजिक स्थिति क्या है ?? और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
मनुस्मृति ??
नोट : अब इस पोस्ट के आर्थिक पहलु को देखें और समझें।नमक व्यवस्साय और उसकी मैन्युफैक्चरिंग एक स्वतंत्र व्यापार था ।जिसमे समाज के कई वर्ग भाग लेते थे जिनका ऊपर वर्णन है। इन वर्गों को अंग्रेज और यूरोपीय ईसाई कभी caste कभी ट्राइब या कभी clan यानि कुल परिवार के नाम से पुकारते थे।
ये लोग नमक मैन्युफैक्चरिंग का काम कितने वर्षों से करते थे इसकी जानकारी नहीं है ।लेकिन जब अंग्रेजों ने नमक व्यवसाय पे कब्जा किया तो ये सब बेरोजगार और बेघर होकर कुछ अन्य कार्य करने लगे जैसे मजदूरी ।ऊपर उसी का जिक्र है ।
अब भारत का आर्थिक इतिहास देखें अंगुस Madison के अनुसार भारत 0 AD से 1750 तक विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ।वही 1750 तक ब्रिटेन और अमेरिका का शेयर मात्र 2 प्रतिशत था ।
1900 आते आते भारत से मनी ड्रेन और आर्थिक ढांचे को नष्ट किये जाने के कारण upside डाउन हो गया।
भारत मात्र 2 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा और ब्रिटेन तथा अमेरिका 42 प्रतिशत के हिस्सेदार हो गए।
पॉल कानडी की बुक में पॉल बरोच के अनुसार भारत में 700 प्रतिशत per capita deindustialisation हुवा।
मात्र नमक व्यवसाय का उदाहरण आपके सामने है । गांधी ने 1935 में इसी नमक की मोनोपोली को खत्म करने के लिए नमक कानून तोडा और जेल गए।
आज मुसहर समाज के सबसे गरीब तबके में से एक है। और अनुसूचित जाति में लिस्टेड है ।
बिंद भी बहुत पिछड़ा वर्ग है समाज में और OBC में लिस्टेड है ।
ये 1000 साल का नहीं मात्र 200 साल का गुलामी का इतिहास है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
किस मनुशास्त्र से और वेद से इस ऐतिहासिक तथ्य को एक्सप्लेन करेंगे ????
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
मेरी अभी तक ये समझ थी कि caste /जाति एक अभारतीय और यूरोपीय परंपरा थी जिसे औपनिवेशिक सत्ता ने भारत को गिफ्ट किया ।
जात का तातपर्य फ्रांसिस बुचनन के भारतीय समाज के Trade /caste में वर्गीकरण के लिहाज से इसका अर्थ परंपरागत व्यवसाय समझता था।
लेकिन नीचे लिखे लेख जो कि M A Sherring की "Caste and Tribes of India " से उदधृत है। इसको ध्यान से पढ़ें तो आपको समझ में आएगा कि जात मात्र एक कुल परिवार और वंश का द्योतक है । साथ ही साथ क्षेत्रीय affiliation और कुछ अन्य चीजों से सम्बद्ध है।
कुलदेवता शब्द को परिखिये।।
जाति और जातिगत राजनीत भारत की एक सामाजिक कोढ़ है जो समाज की आत्मा को छीजती जा रही है।caste को codifiy 1901 की जनगणना में रिसले ने "Nasal बेस इंडेक्स" को सामाजिक हैसियत से जोड़कर " Unfailing Law of Caste" बनाकर उसकी उसी हैसियत के आधार पर क्रमवार लिस्टिंग की । यही लिस्ट मॉडर्न भारत के संविधान में अंकित एक कटु मॉडर्न सच्चाई है ।यही लिस्टेड codified caste संविधान का एक अंग है। डॉ अमबेडकर जैसे लोकनायक भी इस खड्यंत्र को न भाँप पाये जब उनकी "जाति उच्छेद " के मिशन के बाद भी उसी लिस्टेड और codified caste को जब संविधान का एक हिस्सा बनाया।
इतिहास के पन्नों से इस लैटिन मूल के Castas से उतपन्न Caste शब्द को किन अर्थों में प्रयोग किया यूरोपीय इसाइयों ने , आइये समझने की कोशिश करते हैं ।
_____________________________________________--_
मुसहर आज सबसे गरीब कुनबा है भारतीय समाज का , जो अंग्रेजों के नमक कारोबार पर मोनोपोली कायम करने के पूर्व नमक का निर्माता हुआ करता था / वो भी आज S C है / यानि depressed class = अछूत /
क्या है रहस्य इन सच्चाईयों का , जो इतिहास के पन्नो मे दफन है /
नुनिया या लुनिया (लोनिया)
×××××××××××××××××××
अंग्रेजों के लूट का व्योरा देते हुये आर्थिक इतिहासकर अमिय बघची लिखते है - "बिहार और बंगाल की GDP से 1793 से 1807 तक का एवरेज सालाना लगभग ४७४,२५०,००० (47 करोड़ 42 लाख 50 हजार प्रति वर्ष ) रुपया भारत से ब्रिटेन जाता था / इसमें भारत के अंदर बाकी हिस्सों पर कब्ज़ा करने में लगने वाला खर्च शामिल नहीं है लेकिन वो भी विहार और बंगाल के ही रेवेनुए से आता था जो लगभग एक मिलियन पौड सालाना था / इसका अर्थ हुवा कि बिहार और बंगाल की 7.07 प्रतिशत जीडीपी को देश के बाहर भेज दिया जाता था जो लौट के नहीं आता था /
हमको ये भी याद रखना चाहिए कि इंग्लैंड में औद्योगीकरण में होने वाला इन्वेस्टमेंट 7 प्रतिशत जीडीपी से ज्यादा नहीं था खास तौर पे शुरुवाती दशकों में जब भारत मैन्युफैक्चरिंग के दिशा में 15 से 20 प्रतिशत का हिस्सेदारी से नीचे जा रहा था और उन्नीसवीं शताब्दी में यह इकॉनमी घटकर १० प्रतिशत के नीचे आ गयी थी /
लगातार होने वाले disinvestment या ड्रेन के कारन , जिस पर ब्रिटिश ओब्ज़र्बेर और भारत के राष्ट्रवादी दोनों एक मत थे , प्रोडक्शन घटता जा रहा था ,इसलिए जो लोग जिन्दा बचे इस क्षेत्र में ( मैनुफेक्चुरिंग के क्षेत्र मे ) ,उन्होंने उसी तरह काम करना शुरू किया जैसे बिना उर्वरक मिलाये खेती , जिसके कारण उनको घटिया स्तर के उत्पाद बनाने को मजबूर होना पड़ा, जिसकी घरेलू खपत तो थी लेकिन अंतराष्ट्रीय बाजार में कोई पूंछ नहीं थी, खास तौर पर तब जब यूरोपियन इस क्षेत्र में आगे जा चुके थे /"
अमिय कुमार बागची ;कोलोनिअलिस्म एंड इंडियन इकॉनमी : प्रस्तावना पेज xxix -xxx"
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
अब एक क्षेत्र था नमक के निर्माण का जिसको ईसाई अंग्रेजों ने नूनिया या लोनिया कास्ट से वर्णित किया है / नमक का व्यवसाय वो पहला व्यवसाय है जिस पर अंग्रेजों ने सबसे पहले एकाधिकार जमाया / 1780 मे नमक पर टैक्स मात्र 3 पैसे प्रति मन / मोन्द ( 40 सेर = 1 मन ) था जिसको बढ़ाकर ईस्ट इंडिया के वाइस रॉय ने 3 रुपये 25 पैसे प्रति मन कर दिया / 6 व्यक्तियों के परिवार के लिए प्रतिवर्ष नमक का खर्च 2 रुपये आता था , और एक मजदूर की उस जमाने मे 2 रुपये कमाने के लिए 2 माह मेहनत करना पड़ता था / जिन लोगों को इस बात पर आपत्ति हो कि मॉडर्न हिएयरची आधारित कास्ट सिस्टम अंग्रेजों ने नहीं बनाई , भारत मे पहले से थी , तो उनको बता दूँ कि -- जात का अर्थ भारत मे मैनुफेक्चुरिंग इकाई हुआ करती थी जिसमे समाज का कोई भी वर्ण शामिल हो सकता था , आपस मे ही शादी व्याह करते थे , जिसमे कोई ऊंच नीच नहीं थी / नीचे उद्धृत लेख से ये बात स्पस्ट हो जाएगी / बाकी नमक के इतिहास को प्रेमचंद के "नमक का दारोगा " गांधी के दांडी मार्च और नमक आंदोलन से समझा जा सकता है /
M A Shering की पुस्तक से उद्धृत (1872)
"नुनिया शब्द नून या लोन (नमक) से उद्धृत है इसलिए नुनिया शब्द से ही इनके व्ययसाय का पता चल जाता है के ये नमक के उत्पादक यानि मैन्युफैक्चरर है।लेकिन अब यह व्यवसाय दूसरे लोगों के हांथों में चला गया है।
इस cast के लोग इस व्यवसाय को पूरी तरह से त्यागने को बाध्य है अन्यथा वो भूख से मर गए होते ।भारत सरकार ने इस पर मोनोपोली कर के कब्जा कर लिया है । और अब वह कुछ जिलों को छोड़कर , किसी को भी इसके निर्माण की अनुमति नहीं देती यद्यपि यह जमीन में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।उदाहरण के लिए बनारस प्रान्त के विभिन्न भागों की जमीन saltpetre से भरी पड़ी है ।इसलिए इन जिलों में नमक की मैन्युफैक्चरिंग आसान बात है परंतु नमक के व्यवसाय का कोई स्कोप न होने के कारण इन लोगों ने बुद्धिमानी का परिचय दिया और दूसरे क्षेत्रों में लेबर का काम करने लगे है । वो अब कुवां पोखर और तालाब खोदने लगे हैं ।ईंट और टाइल बनाने का भी वो काम करने लगे हैं ।
इस क्षत्र के नुनिया लोग सम्भल से आये हैं । इनके ट्राइब के 7 सब devision हैं जो एक दूसरे से अलग हैं ।मेरे पास दो सुंचिया हैं , एक बनारस से और एक मिर्जापुर से , जिनमे काफी भिन्नता है।
बनारस के नुनिया लोगों का सब devision
1.चौहान
2.औधिया (अवध के निवासी )
3.मुसहर
4. बिंद
5.भुइँहार
6. लोढ़ा
मिर्जापुर के नुनिया ट्राइब का सब devision
1.बक्ष गोत्र चौहान (जनेऊ धारी )
2.बक्ष गोत्र चौहान ( बिना जनेऊ वाले )
3.भुइँहार
4. पंचकौता
5.लोध
6. मुसहर "
सोर्स : Caste and tribes of India ; M A Sherring
Note: अब ये देखें कि आधुनिक भारत में एक ही व्यव्साय से जुड़े कुल और वंशज आज किस कास्ट में विभाजित हैं ? उनकी आर्थिक और सामजिक स्थिति क्या है ?? और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?
मनुस्मृति ??
नोट : अब इस पोस्ट के आर्थिक पहलु को देखें और समझें।नमक व्यवस्साय और उसकी मैन्युफैक्चरिंग एक स्वतंत्र व्यापार था ।जिसमे समाज के कई वर्ग भाग लेते थे जिनका ऊपर वर्णन है। इन वर्गों को अंग्रेज और यूरोपीय ईसाई कभी caste कभी ट्राइब या कभी clan यानि कुल परिवार के नाम से पुकारते थे।
ये लोग नमक मैन्युफैक्चरिंग का काम कितने वर्षों से करते थे इसकी जानकारी नहीं है ।लेकिन जब अंग्रेजों ने नमक व्यवसाय पे कब्जा किया तो ये सब बेरोजगार और बेघर होकर कुछ अन्य कार्य करने लगे जैसे मजदूरी ।ऊपर उसी का जिक्र है ।
अब भारत का आर्थिक इतिहास देखें अंगुस Madison के अनुसार भारत 0 AD से 1750 तक विश्व के सकल घरेलु उत्पाद का 25 प्रतिशत का हिस्सेदार था ।वही 1750 तक ब्रिटेन और अमेरिका का शेयर मात्र 2 प्रतिशत था ।
1900 आते आते भारत से मनी ड्रेन और आर्थिक ढांचे को नष्ट किये जाने के कारण upside डाउन हो गया।
भारत मात्र 2 प्रतिशत का हिस्सेदार बचा और ब्रिटेन तथा अमेरिका 42 प्रतिशत के हिस्सेदार हो गए।
पॉल कानडी की बुक में पॉल बरोच के अनुसार भारत में 700 प्रतिशत per capita deindustialisation हुवा।
मात्र नमक व्यवसाय का उदाहरण आपके सामने है । गांधी ने 1935 में इसी नमक की मोनोपोली को खत्म करने के लिए नमक कानून तोडा और जेल गए।
आज मुसहर समाज के सबसे गरीब तबके में से एक है। और अनुसूचित जाति में लिस्टेड है ।
बिंद भी बहुत पिछड़ा वर्ग है समाज में और OBC में लिस्टेड है ।
ये 1000 साल का नहीं मात्र 200 साल का गुलामी का इतिहास है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
किस मनुशास्त्र से और वेद से इस ऐतिहासिक तथ्य को एक्सप्लेन करेंगे ????
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
मेरी अभी तक ये समझ थी कि caste /जाति एक अभारतीय और यूरोपीय परंपरा थी जिसे औपनिवेशिक सत्ता ने भारत को गिफ्ट किया ।
जात का तातपर्य फ्रांसिस बुचनन के भारतीय समाज के Trade /caste में वर्गीकरण के लिहाज से इसका अर्थ परंपरागत व्यवसाय समझता था।
लेकिन नीचे लिखे लेख जो कि M A Sherring की "Caste and Tribes of India " से उदधृत है। इसको ध्यान से पढ़ें तो आपको समझ में आएगा कि जात मात्र एक कुल परिवार और वंश का द्योतक है । साथ ही साथ क्षेत्रीय affiliation और कुछ अन्य चीजों से सम्बद्ध है।
कुलदेवता शब्द को परिखिये।।
जाति और जातिगत राजनीत भारत की एक सामाजिक कोढ़ है जो समाज की आत्मा को छीजती जा रही है।caste को codifiy 1901 की जनगणना में रिसले ने "Nasal बेस इंडेक्स" को सामाजिक हैसियत से जोड़कर " Unfailing Law of Caste" बनाकर उसकी उसी हैसियत के आधार पर क्रमवार लिस्टिंग की । यही लिस्ट मॉडर्न भारत के संविधान में अंकित एक कटु मॉडर्न सच्चाई है ।यही लिस्टेड codified caste संविधान का एक अंग है। डॉ अमबेडकर जैसे लोकनायक भी इस खड्यंत्र को न भाँप पाये जब उनकी "जाति उच्छेद " के मिशन के बाद भी उसी लिस्टेड और codified caste को जब संविधान का एक हिस्सा बनाया।
इतिहास के पन्नों से इस लैटिन मूल के Castas से उतपन्न Caste शब्द को किन अर्थों में प्रयोग किया यूरोपीय इसाइयों ने , आइये समझने की कोशिश करते हैं ।
_____________________________________________--_
फ्रांसिस हैमिलटन बुचनन 1807 में अपनी पुस्तक में दक्षिण भारत के भारतीय
समाज के विभिन्न उपसमूहों का वर्णन करते हुए 122 caste / trade यानि
व्यवसाय के अनुरूप वर्गीकृत करता है।
इसी तरह M A Sherring अपनी 1872 की पुस्तक " Hindu Tribes and Castes " में भी भिन्न भिन्न वर्गों को caste ट्राइब या clan के रूप से सबोधित करता है ।
" जात और जाति " का फर्क समझने की कोशिश करें।
नीचे M A Sherring के ही लिखे पुस्तकांश को पढ़कर।
------ " Chapter xiii Caste of Weavers thread spinners Dyers Boatmen Nuniya Lunia Beldar " के वॉल्यूम 1 पेज 345 से उद्धृत -
"कोली या कोरी |
ये बुनकरों (Weavers) की caste है । इनकी पत्नियां भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं ।ये एक छोटा समुदाय है और आगरा तथा प्रान्त के पश्चिमी जिलों में पाये जाता है।
कोली बैस राजपूतों के सम्मानित वंशज हैं "।
समस्त राजपूतों के बौद्धिक चिंतन को चुनौती /
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
" जात का तातपर्य एक clan एक वंश और वंश वृक्षवाली तक ही था साथ में इसका एक क्षेत्रीय सम्बद्ध था जैसे कन्नौज से निकले लोग जहाँ भी गए कन्नौजिया टाइटल साथ साथ गया । इसके अलावा indogamy यानि एक विशिस्ट कुल और गोत्र में ही शादी होती थी जो परंपरा अभी भी जीवित है और बहुतायत से प्रैक्टिस होती है। इसके अलावा एक व्यवसाय भी जुड़ा हुवा था। तो व्यवसाय तो बदल सकता था लेकिन वंश वृच्छावली नहीं बदलती यानि जात/ उत्पत्ति वही रहती।
लेकिन जब 1901 की जनगणना में हर्बर्ट रिसले नामक racist / नश्ल्वादी व्यक्ति ने Race साइन्स और एंथ्रोपोलोजी के आधार पर nasal base index को मूलाधार मानकर खुद से गढ़े " रूल ऑफ़ caste" के तहत भारत की हिन्दू समाज को 2000 से ज्यादा caste और 42 races हिन्दू समाज मे में वर्गीकृत किया और संतमूलक समाज मे हिएयरची पैदा की /यही नश्ल्वादी कास्ट सिस्टम आज भी भारत के संविधान का हिस्सा है तो आप व्यवसाय चाहे जो करें लेकिन caste आपका पीछा नहीं छोड़ेगा।" UNO ने Race साइन्स को बहुत वर्ष पहले अवैज्ञानिक और अवैध करार कर दिया / भारत कब खारिज करेगा इसको संविधान से ?
इस rule of caste के तहत गांधी जैसा नायक ऋषि होते हुए भी तेली बना रहता है। आंबेडकर जैसा चिंतक constitution की ड्राफ्टिंग committee का हेड होते हुए भी महार ही रहता है और UP का CM अखिलेश यादव CM होते हुए भी अहीर का अहीर ही रहता है।
इसी तरह M A Sherring अपनी 1872 की पुस्तक " Hindu Tribes and Castes " में भी भिन्न भिन्न वर्गों को caste ट्राइब या clan के रूप से सबोधित करता है ।
" जात और जाति " का फर्क समझने की कोशिश करें।
नीचे M A Sherring के ही लिखे पुस्तकांश को पढ़कर।
------ " Chapter xiii Caste of Weavers thread spinners Dyers Boatmen Nuniya Lunia Beldar " के वॉल्यूम 1 पेज 345 से उद्धृत -
"कोली या कोरी |
ये बुनकरों (Weavers) की caste है । इनकी पत्नियां भी इनके साथ साथ काम करती हैं और इनकी मदद करती हैं ।ये एक छोटा समुदाय है और आगरा तथा प्रान्त के पश्चिमी जिलों में पाये जाता है।
कोली बैस राजपूतों के सम्मानित वंशज हैं "।
समस्त राजपूतों के बौद्धिक चिंतन को चुनौती /
xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
" जात का तातपर्य एक clan एक वंश और वंश वृक्षवाली तक ही था साथ में इसका एक क्षेत्रीय सम्बद्ध था जैसे कन्नौज से निकले लोग जहाँ भी गए कन्नौजिया टाइटल साथ साथ गया । इसके अलावा indogamy यानि एक विशिस्ट कुल और गोत्र में ही शादी होती थी जो परंपरा अभी भी जीवित है और बहुतायत से प्रैक्टिस होती है। इसके अलावा एक व्यवसाय भी जुड़ा हुवा था। तो व्यवसाय तो बदल सकता था लेकिन वंश वृच्छावली नहीं बदलती यानि जात/ उत्पत्ति वही रहती।
लेकिन जब 1901 की जनगणना में हर्बर्ट रिसले नामक racist / नश्ल्वादी व्यक्ति ने Race साइन्स और एंथ्रोपोलोजी के आधार पर nasal base index को मूलाधार मानकर खुद से गढ़े " रूल ऑफ़ caste" के तहत भारत की हिन्दू समाज को 2000 से ज्यादा caste और 42 races हिन्दू समाज मे में वर्गीकृत किया और संतमूलक समाज मे हिएयरची पैदा की /यही नश्ल्वादी कास्ट सिस्टम आज भी भारत के संविधान का हिस्सा है तो आप व्यवसाय चाहे जो करें लेकिन caste आपका पीछा नहीं छोड़ेगा।" UNO ने Race साइन्स को बहुत वर्ष पहले अवैज्ञानिक और अवैध करार कर दिया / भारत कब खारिज करेगा इसको संविधान से ?
इस rule of caste के तहत गांधी जैसा नायक ऋषि होते हुए भी तेली बना रहता है। आंबेडकर जैसा चिंतक constitution की ड्राफ्टिंग committee का हेड होते हुए भी महार ही रहता है और UP का CM अखिलेश यादव CM होते हुए भी अहीर का अहीर ही रहता है।