इस देश में भिक्षा की पुराणी प्रथा है ।
लेकिन उसके अधिकारी सिर्फ ब्रम्हाण और ब्रम्हचारी हुवा करते थे ।
और जब ब्रम्हचारी की बात करें तो गुरुकुल में एक आमजन के बच्चे और राजपरिवार के बच्चे के कर्त्तव्य और अधिकार में भारतीय गुरुकुल और समाज में भेद नहीं था ।
लेकिन ब्रम्हाण इस लिए भिक्षा का अधिकारी था क्योंकि वो सिर्फ ज्ञान का धनी होता था , जिसको वह अपने शिष्यों को बिना वेतन या तनख्वाह या सैलरी लिए समाज को देता था ।
क्योंकि सैलरी तनख्वाह वेतन भारतीय शब्द नही हैं , जो आधुनिक भारत में शिक्षक ग्रहण कर रहे हैं ।
तो ये शिक्षक तो हैं परंतु ब्रम्हत्व से दूर । क्योंकि ब्रम्हाण अपना ज्ञान बिना किसी लाभ की आकांशा के देता था । और खुद का जीवन दान में दिए गए अग्रहार से चलाता था ।
लेकिन पदाक्रांत भारत में जब मानसिक गुलाम पैदा हुए तो उन्होंने तथ्यों की जांच किये बिना, कि भारत के एक बहुत बडे वर्ग को , जो #सोने_के_भारत में उपलब्ध विश्व के लिए आवश्यक समस्त वस्तुओं का मन्युफॅक्चरर् था, और जिसकी हालात मात्र पिछले 200 वर्षों में ईसाईयों ने खस्ता करके उनको बेघर बेरोजगार किया । उन्ही ईसाइयों ने उनको एकलव्य और संबुक और मनुस्मृति के झुनझुने से एक्सप्लेन किया कि वे इस पुस्तक और उदाहरणों के कारण हजारों साल से पीड़ित और प्रताणित है ।
और उन्ही उद्योग कर्मियो के वंशजों को पिछले 68 साल में उन्ही इसाइयो द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने वाले संविधान निर्माताओं ने, उन्ही शम्बूक एकलव्य की कहानी से वशीभूत होकर, संविधान में उन्हें भिक्षा का अधिकारी बना दिया है ।
और इस भीख को वोट की राजनीति ने त्रस्तरीय बना दिया था , शिक्षा और नौकरी और नौकरी में प्रमोशन के स्तर पर , तो उसको हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया ।
तो आज ये भिखारी अगर धर्म परिवर्तन की धमकी दे रहे है कि इनके त्रिस्तरीय भीख को न्यायलय भारत के बाबा द्वारा बनाये संविधान के अनुसार मात्र द्वि स्तरीय बनाना चाहता है , तो ये भिखारी , जो देश से सैलरी के साथ यादव सिंह की तरह भारत को लूट भी रहे हैं , तो बेहतर हैं कि वे धर्म बदल कर सुन्नत करवा ले या बपतिष्मा ।
क्योंकि ये भिक्षुक नही भिखारी हैं , जिनको मिलने वाली भीख और त्रिषणा की कोई सीमा नहीं है ।
लेकिन उसके अधिकारी सिर्फ ब्रम्हाण और ब्रम्हचारी हुवा करते थे ।
और जब ब्रम्हचारी की बात करें तो गुरुकुल में एक आमजन के बच्चे और राजपरिवार के बच्चे के कर्त्तव्य और अधिकार में भारतीय गुरुकुल और समाज में भेद नहीं था ।
लेकिन ब्रम्हाण इस लिए भिक्षा का अधिकारी था क्योंकि वो सिर्फ ज्ञान का धनी होता था , जिसको वह अपने शिष्यों को बिना वेतन या तनख्वाह या सैलरी लिए समाज को देता था ।
क्योंकि सैलरी तनख्वाह वेतन भारतीय शब्द नही हैं , जो आधुनिक भारत में शिक्षक ग्रहण कर रहे हैं ।
तो ये शिक्षक तो हैं परंतु ब्रम्हत्व से दूर । क्योंकि ब्रम्हाण अपना ज्ञान बिना किसी लाभ की आकांशा के देता था । और खुद का जीवन दान में दिए गए अग्रहार से चलाता था ।
लेकिन पदाक्रांत भारत में जब मानसिक गुलाम पैदा हुए तो उन्होंने तथ्यों की जांच किये बिना, कि भारत के एक बहुत बडे वर्ग को , जो #सोने_के_भारत में उपलब्ध विश्व के लिए आवश्यक समस्त वस्तुओं का मन्युफॅक्चरर् था, और जिसकी हालात मात्र पिछले 200 वर्षों में ईसाईयों ने खस्ता करके उनको बेघर बेरोजगार किया । उन्ही ईसाइयों ने उनको एकलव्य और संबुक और मनुस्मृति के झुनझुने से एक्सप्लेन किया कि वे इस पुस्तक और उदाहरणों के कारण हजारों साल से पीड़ित और प्रताणित है ।
और उन्ही उद्योग कर्मियो के वंशजों को पिछले 68 साल में उन्ही इसाइयो द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने वाले संविधान निर्माताओं ने, उन्ही शम्बूक एकलव्य की कहानी से वशीभूत होकर, संविधान में उन्हें भिक्षा का अधिकारी बना दिया है ।
और इस भीख को वोट की राजनीति ने त्रस्तरीय बना दिया था , शिक्षा और नौकरी और नौकरी में प्रमोशन के स्तर पर , तो उसको हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया ।
तो आज ये भिखारी अगर धर्म परिवर्तन की धमकी दे रहे है कि इनके त्रिस्तरीय भीख को न्यायलय भारत के बाबा द्वारा बनाये संविधान के अनुसार मात्र द्वि स्तरीय बनाना चाहता है , तो ये भिखारी , जो देश से सैलरी के साथ यादव सिंह की तरह भारत को लूट भी रहे हैं , तो बेहतर हैं कि वे धर्म बदल कर सुन्नत करवा ले या बपतिष्मा ।
क्योंकि ये भिक्षुक नही भिखारी हैं , जिनको मिलने वाली भीख और त्रिषणा की कोई सीमा नहीं है ।
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