Saturday, 21 May 2016

बच्चों को स्कूलो में धार्मिक शिक्षा क्यों नही दी जा सकती है ?

यद्यपि यूरोप मे सेकुलरिस्म का आविसकार मजबूरी मे हुआ था क्योंकि यूरोप मे रोमन साम्राज्य और संस्कृति के इसाइयत द्वारा विनाश किए जाने के बाद शासन के अधिकार की खींचतान चर्च और राजा के बीच लंबे समय तक चलता रहा / उसका उदाहरण है 1600 मे चर्च द्वारा ब्रुनो नामक वैज्ञानिक की आग मे डालकर हत्या करने का जघन्य दुष्कर्म का करना / क्योंकि उसने heliocentric Theory का प्रतिपादन किया था जिसके अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है , जोकि होली बाइबल की अवधारणा के विपरीत है / कालांतर मे गैलीलियो को भी इसी थियरी को आगे बढ़ाने के कारण उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई /
इसलिए लोकतान्त्रिक परंपरों की शुरुवात होने पर यूरोप मे चर्च को राज काज मे दखल देने से रोकने का जो नया सिस्टम गठित किया गया उसे सेकुलरिस्म का नाम दिया गया,  जिसकी उत्पत्ति भी ग्रीक शब्द से है /

भारत मे भी सेकुलरिस्म है , इस बात से सहमत होना पड़ेगा क्योंकि संविधान मे लिख दिया गया है / यूरोप और अम्रीका का सेकुलरिस्म भारत से किस तरह भिन्न है उस पर चर्चा नहीं करूंगा /

चर्चा जिज्ञासा और सुझाव का एक अलग मुद्दा है आज /

अम्रीका और यूरोप मे सेकुलरिस्म है लेकिन वहाँ भी विभिन्न धर्मों को स्कूल और विश्वविद्यालय मे पढ़ाये जाने का प्रावधान है /Inter Religious Institutes हैं // और अगर उनके देशों मे ये हो रहा है तो उसको अपने देश मे क्यों न लागू किया जाय ? आखिर आज हम उनही को तो अपना आदर्श मानते है / और नहीं भी मानते तो सेकुलर राज मे भी अपने धर्म मजहब और रेलीजन का ज्ञान तो होना ही चाहिये , क्योंकि वही तो मूलाधार है चरित्र का /

इस्लाम और ईसाई मत के मानने वाले भी इस बात से सहमत होंगे कि धर्म रेलीजन या मजहब का उद्देश्य मनुष्यों मे अच्छे चरित्र का निर्माण , उनके चरित्र मे मानव मात्र के लिए दया भाव , और विश्व कल्याण की भावना को प्रवाहित  करना है /
तो क्यों न एक काम किया जाय कि सभी धर्म मजहब और रेलीजन के धर्माचार्यों के मत अनुसार बाइबल कुरान और हिन्दू धर्म शास्त्रों  के नीति वाक्य बच्चों के प्रथम कक्षा से ही उनके पाठ्य क्रम का हिस्सा बनाया जाय ? कक्षा 1 से 5 तक हर धर्म के 10 - 10 नीति वाक्य , 6 से 10 तक 20 नीति वाक्य , और 11 से ग्रेजुएशन तक  30 - 30 नीति वाक्य पढ़ाएँ जाय /

जिस चीज का विरोध होने की समभावना  है , उसका समाधान भी दे रहा हू / ये तर्क किया जा सकता है कि मुस्लिम बच्चे हिन्दू शास्त्र क्यूँ पढे और क्यों उसका इम्तहान दे , या फिर बाकियों के भी इसी तरह की  आपत्तियाँ हो सकती हैं / तो उसके लिए ये सुझाव है कि किसी भी धर्म मजहब और रेलीजन के छात्र के लिए दूसरे धर्मों के नीति वाक्य न ही पढ़ने की बाध्यता हो और न ही उसमे इम्तिहान देकर पास होने की / सिर्फ अपने धर्म के नीतिवाक्य पढे और उसी का इम्तिहान दें /

अब एक समस्या आएगी वामपंथियों की जो नास्तिक हैं / यद्यपि उनकी संख्या बहुत कम है फिर भी उनको नीति वाक्य पढ़ने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि चरित्र उनके लिए प्रायः गौड़ है / तो उनको चारवाक दर्शन या कताई बुनाई जैसे विकल्प दिये जा सकते हैं /

PMO India Rajnath Singh Smriti Zubin Irani

Sunday, 15 May 2016

भारत आज भी गुलाम: पोप की सत्ता कायम है

ये तो सब जानते हैं कि किसी देश की जीडीपी का क्या महत्व है / इस देश के निर्माण मे अगर सम्मान होना चाहिए तो या तो उसका हो जो निस्वार्थ सेवा कर रहा है , या निस्वार्थ ज्ञान प्राप्त कर उसको समाज को निस्वार्थ वितरित कर रहा है - जिसको हम कभी ब्रामहन के नाम से जानते थे /
या तो उसका सम्मान होना चाहिए जो देश और समाज के लिए अपने प्राण प्रस्तुत करने के लिए उद्धत रहता है - जिसे हम कभी क्षत्रिय कहते थे /
फिर उनका सम्मान होना चाहिए जो सममानपूर्वक बिना चोरी चमारी किए देश के कृषि , उत्पादन , और जीडीपी के प्रॉडक्शन मे अपना श्रम देते हैं जिसमे टेच्नोक्रटेस कृषक व्यापारी और सर्विस क्लास आदि आते हैं जिनको वैश्य या शूद्र कहते थे /
एक नजर भारत के जीडीपी पर :
स्वरोजगार - 50 %
कृषि - 18 %
कॉर्पोरेट - 14 %
सरकार - 18 %
( प्रोफ आर वैद्यनाथन )

लेकिन आज सम्मान की जहां तक बात होती है तो शायद वो समाज मे किसी के किए हुये प्रतिदान के inversely Proportionate है /
भारत के प्रति जिसका जितना कम योगदान - उसका उतना ही बड़ा सम्मान /

देश के लिए सुरक्षा उपकरण तैयार करने वाले इंजीनियर या जीवन की रक्षा करने वाले डॉ के सेलेकशन पर , या देश को स्वरोजगार देकर भारत की जीडीपी मे 50 % योगदान देने वाले लोगों के प्रति, जिनमे से प्रायः क्लास 10 से ऊपर पढे नहीं है , या फिर देश को अपने खून पसीने से उपजाए हुये अन्न से लोगों के पेट पालने वाले किसानों के प्रति क्या हमारा सम्मान का रवैया है ?

नहीं है /

वरना देश मे उनका भी उतना ही सम्मान किया जाता जितना एक unskilled व्यक्ति के एक परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले IAS मे पास होने पर किया जाता है /

क्योंकि हम अभी भी मानसिक गुलामी से बाहर नहीं आ पाये ?
या
पोप की सत्ता कायम है , जिसमे सरकार के दिये गए वेतन के अलावा प्राइवेट business ( फमझ रहे हैं न ) द्वारा वेतन के कई गुना धन कमाने की प्रक्रिया का हम आज भी आदर और सम्मान करते हैं ?

Saturday, 14 May 2016

फेसबुक में सक्रिय SC और ओबीसी और तथाकथित बौद्ध आखिर ब्राम्हणों के इतने विरोधी क्यों है ?

फेसबुक में सक्रिय SC और ओबीसी और तथाकथित बौद्ध आखिर ब्राम्हणों के इतने विरोधी क्यों है ?
किस ग्रन्थ में ( आंबेडकर साहित्य को छोड़कर ) ब्राम्हणो ने इन पर अत्याचार की बात लिखी है ?

लिखी भी हो तो किया कब ?

कोई डोक्युमेंट्री प्रमाण हैं क्या ?
पिछले 1000 साल से भारत अत्याचारी और बर्बर इस्लामियों और इअस्सियों का शासन रहा है ।

तो तथाकथित मनुस्मृति , जिसको इन्होंने पढ़ा भी नही होगा कभी , कब इस देश के राजाओ का संविधान रहा है ?

अगर डॉ बेडकर पुरुषोक्त को क्षेपक घोसित कर सकते हैं तो क्या मनुस्मृति से उद्धृत किये जाने वाले 2- 4 श्लोक क्यों क्षेपक नही हो सकते ?
क्योंकि आज तक किसी शूद्र के कान में पिघला शीशा डालने का कोई प्रमाण, साहित्य में भी नहीं मिला पिछले 5000 साल में ।

दूसरी बात क्या इनके पूर्वज नपुंसक थे , जिन्होंने उस अत्याचार का विरोध नहीं किया कभी ?
जबकि इस देश में अनैतिक और अत्याचारी राजा को पदच्युत करने के लिए ब्राम्हणों ने संघर्ष किया है ।

नन्द राज्य को ख़त्म कर, एक अनजाने कुल के बच्चे को राजा बनाया कौटिल्य ने ।
चन्द्रगुप्त को राजा बनाया ।
और खुद दरिद्र ब्रम्हाण की तरह एक शिक्षक का जीवन बिताया ।

Vedic traditions have continuing till date in India more or less, whether we are aware of it or not .

Vedic traditions have continuing till date in India more or less, whether we are aware of it or not .

Why and How ?
India followed Primogeniture nature in Ruling system since very early . The best example is Ramchandra ji . Primogeniture means - The right of succession belonging to first born child .
That's why we see none or so less blood shed when next generation took over ruling power in history of Hindu India .
It was brocken by barbarian Moghals and turk Invaders , when Successors had siblings . Best visible in Aurangjeb taking over throne by imprisoning his Father and killing brutally coverdly and conspirately his Elder brother Dara Shikoh, and other two brothers .
But Indian muslims whether in Pakistan or in India follow that Primogeniture culture at social cultural and family level .
Because most of them are converted Muslims, so they might be persuing other activities as per Islamic laws but they couldn't abondon this culture .
From which source this culture comes from ?
It comes from vedic tradition and Itihas books like Mahabharat and Ramayan .
I will like to give only few examples.

पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता ही परम तपः ।
पितरि प्रीतिमापन्ने सर्वाः प्रीणन्ति देवताः ।।
स्कन्द पुराण माहेश्वर - कुमारिकाखंड 4.89-90
Father is heaven , father is Dharma and father is greatest Tapa . If father becomes happy , all Dieties become happy .

माता गरीयसी यच्च तेनैताम् मन्यते जनः।
ज्येष्ठो भ्राता पितृसमो मृते पितरि भारत ।।
महाभारत - अनुशासन पर्व 105.16
Bharatnandan ( son of bharat )! The pride of mother is greatest , so people respect her especially. But after death of father, elder brother should be considered as father .

These books were taught in India's gurukuls till 1830 , before Maukaley's education was laid down on Indians .

So oral tradition have been able to carry forward it for 200 years .

But I don't know how long it will continue in the era of blinded persuation of West .

Riddle of modern Caste system :भारतीय ‪#‎संविधान‬ मे फर्जी Aryan Invasion Theory को कैसे घुसेड़ा गया ?

Riddle of modern Caste system :भारतीय ‪#‎संविधान‬ मे फर्जी Aryan Invasion Theory को कैसे घुसेड़ा गया ?
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भारत में ब्रिटिश राज में जनगणना 1872 से शुरू हुई ।1872 और 1881 मे जनगणना वर्ण और धर्म के आधार पर हुई । 1885 का Gazetteer of India भी हिन्दू समाज को वर्ण के आधार पर ही classify करता है ।
1891 में एबबस्तों भारत की जनगणना पेशे को मुख्य आधार बनाकर करता है ।

लेकिन 1901 में लार्ड रिसले कास्ट ( Caste एक लैटिन शब्द Castas से लिया गया है ) के आधार पर जनगणना करवाता है जिसमे 1738 कास्ट और 42 नश्ल को आधारहीन तरीके से anthropology को आधार बनाकर करता है । 19वीं शताब्दी मे यूरोप के ईसाई लगभग पूरी दुनिया पर कब्जा कर चुके थे और और स्वाभाविक तौर पर उनके मन मे श्रेष्ठता का भाव जाग्रत हो गया था / यहीं से एक नए विज्ञान का जन्म होता है जिसका नाम था Race Science , जिसमे चमड़ी के रंग और शरीर की संरचना के आधार पर दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों को विभिन्न नशलों मे बांटने का काम किया /

अब ये तरीका क्या था ? उसको सुनिए और समझिये जरा ।
" रिसले नामक इस racist व्यक्ति ने बंगाल मे 6000 लोगों पर प्रयोग करके एक लॉ (नियम ) बनाया , कि जिसकी नाक चौड़ी है उसकी सामाजिक हैसियत कम है नीची है और जिसकी नाक पतली या सुतवां है उसकी सामजिक हैसियत ऊँची है ।यही लार्ड Risley का unfailing law of caste है।इसी को आधार बना कर उसने 1901 की जनगणना की जो लिस्ट बनाई वो अल्फाबेटिकल न बनाकर ; नाक की चौड़ाई के आधार पर वर्गों की सामाजिक हैसियत तय की हुई social Hiearchy के आधार पर बनाई / यही लिस्ट आज भारत के संविधान की थाती है /

इसी unfailing law के अनुसार चौड़ी नाक वाले लोग लिस्ट में नीचे हैं ।ये नीची जाति के लोग माने जाते हैं ।
और पतली नाक वाले लोग लिस्ट में ऊपर हैं वो ऊँची जाति वाले लोग माने जाते हैं।

इस न fail होने वाली कनून के निर्माता लार्ड रिसले ने 1901 में जो जनगणना की लिस्ट सोशल higharchy के आधार पर तैयार की वही आज के मॉडर्न भारत के समाज के Caste System को एक्सप्लेन करता है ।
1921 की जनगणना में depreesed class (यानि दलित समाज ) जैसे शब्दों को इस census में जगह मिली ।लेकिन depressed class को परिभाषित नहीं किया गया / 1935 मे इसी लिस्ट की सबसे निचले पायदान पर टंकित जातियों को एक अलग वर्ग मे डाला गाय जिसको शेडुले कहते है / उसी से बना शेडुल कास्ट /

अब इन दलित चिंतकों से आग्रह है कि इस रिसले स्मृति को व्याख्यसयित करने का कष्ट करें ।
1885 के गौज़्ज़ेटेयर ऑफ इंडिया मे वर्णित है - भारत मे ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य और aborigines तथा मुसलमान रहते है / अब आज की तारीख मे ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य ‪#‎वर्ण‬ के नाम से न जाने जाकर जाति के नाम से जाने जाते हैं / और अंग्रेजों की कल्पना मे बसने वाले aborigines , और भारत के ग्रन्थों के हिसाब से - शुश्रूषा वार्ता कारकुशीलव वाला भारत का उत्पादक वर्ग को हजारों जतियों मे चिन्हित किया गया /
इसके पीछे कारण क्या थे ?
अंग्रेज़ शासक और धर्म परिवर्तन करने वाली ईसाई मिशनरियों के बीच एक गुप्त सम्झौता था कि यदि धर्मपरिवर्तन मे प्रशासनिक हस्तक्षेप किया गया तो भीषण संघर्ष होगा , जिसका उदाहरण गोवा मे और 1857 मे देखा और समझा जा चुका था / इसलिए प्रशासन कूट रूप से मिशनरियों के लिए आधार प्रदान करेगा / दूसरी बात अंग्रेजों के खिलाफ 1857 मे मुसलमान लड़ा तो था परंतु स्वतन्त्रता के नाम पर नहीं - दीन के नाम पर / वरना उस समय भी और आज भी मुसलमान मातृभूमि हेतु लड़ नहीं सकता कुछ अपवादों को छोडकर / 1919 मे भी गांधी के साथ जब वो अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर उतरा था तो खलीफा का साथ देने के लिए न कि मातृभूमि की रक्षा के लिए /
अंग्रेजों का विरोध विशुद्ध रूप से हिंदुओं ने ही किया अधिकतर / अतः अंग्रेज़ प्रशासन के मुख्य विरोधी हिन्दू ही थे / इसलिए उनको बांटना उनके प्रशानिक और धरंपरिवर्तन दोनों ही दृष्टिकोण से लाभपरक था /
अगर हिन्दू मात्र चार वर्णों / वर्गों मे बंटा होता तो ये उनके लिए सहज नहीं था / इस लिए उन्होने हजारो छोटे छोटे टार्गेट ग्रुप बनाए / अब देखिये भारतीय बनवासी हिंदुओं को उन्होने पहले अनिमिस्ट के टाइटल से जनगणना मे शामिल किया , फिर उनको शैड्यूल tribe के नाम से चिन्हित किया / लेकिन आज उन्हे पुनः ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य या आदिवासी के नाम से पुकारा जा रहा है / क्यों किस तरह वे हिन्दू रीतिरिवाजों से अलग थे ? वे भी प्रकृतिपूजक ही तो थे जोकि हिंदुओं की मूल पहचान है / लेकिन उसका परिणाम देखें - आज ज़्यादातर बनवासी ईसाई मे धर्म परिवर्तित किया जा चुका है /
कोई ये प्रश्न उठा सकता है कि क्या भारत मे जातिया नहीं थी / थी जी / लेकिन जाति / Caste नहीं , जात थी / और उस जात की परिभाषा से आज जाति के नाम से जानी जाने वाली ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य जातियों के अंदर ही सैकड़ो जातिया पायी जाती हैं /
एक और बात मक्ष्मुल्लर द्वारा मचाए गए हल्ला - Aryan Invasion theory को अगर ध्यान से विचार करिएगा तो आप पाएंगे कि अंग्रेज़ हमारे संविधान मे वे इस फर्जी थियरी को , जिसको स्वयं अंबदेकर भी खारिज कर चुके थे , भारत के संविधान मे पैवस्त करणे मे सफल रहे , जिसको काले अंग्रेज़ समझ भी न सके /
कैसे ?
उन्होने बताया कि आर्य यानि ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य, बाहर से आए - ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य ने aborigines / शूद्र / द्रविड़ आदि को धकिया कर दक्षिण मे भेजा / शब्दों को अपने हिसाब से जहां जैसा फिट होता था , उसका वैसे प्रयोग किया /
तो आने वाले - ब्रामहन क्षत्रिय वैश्य - अर्थात ‪#‎सवर्ण‬
और धकियाए हुये aborigines / शूद्र / द्रविड़ - ‪#‎असवर्ण‬
संविधान मे दोनों को अलग चिन्हित किया गया है न बाबा के संविधान मे/

शिक्षा भिक्षा भीख का आरक्षण और धर्मपरिवर्तन का खेल

इस देश में भिक्षा की पुराणी प्रथा है ।
लेकिन उसके अधिकारी सिर्फ ब्रम्हाण और ब्रम्हचारी हुवा करते थे ।
और जब ब्रम्हचारी की बात करें तो गुरुकुल में एक आमजन के बच्चे और राजपरिवार के बच्चे के कर्त्तव्य और अधिकार में भारतीय गुरुकुल और समाज में भेद नहीं था ।
लेकिन ब्रम्हाण इस लिए भिक्षा का अधिकारी था क्योंकि वो सिर्फ ज्ञान का धनी होता था , जिसको वह अपने शिष्यों को बिना वेतन या तनख्वाह या सैलरी लिए समाज को देता था ।

क्योंकि सैलरी तनख्वाह वेतन भारतीय शब्द नही हैं , जो आधुनिक भारत में शिक्षक ग्रहण कर रहे हैं ।

तो ये शिक्षक तो हैं परंतु ब्रम्हत्व से दूर । क्योंकि ब्रम्हाण अपना ज्ञान बिना किसी लाभ की आकांशा के देता था । और खुद का जीवन दान में दिए गए अग्रहार से चलाता था ।

लेकिन पदाक्रांत भारत में जब मानसिक गुलाम पैदा हुए तो उन्होंने तथ्यों की जांच किये बिना, कि भारत के एक बहुत बडे वर्ग को , जो ‪#‎सोने_के_भारत‬ में उपलब्ध विश्व के लिए आवश्यक समस्त वस्तुओं का मन्युफॅक्चरर् था, और जिसकी हालात मात्र पिछले 200 वर्षों में ईसाईयों ने खस्ता करके उनको बेघर बेरोजगार किया । उन्ही ईसाइयों ने उनको एकलव्य और संबुक और मनुस्मृति के झुनझुने से एक्सप्लेन किया कि वे इस पुस्तक और उदाहरणों के कारण हजारों साल से पीड़ित और प्रताणित है ।

और उन्ही उद्योग कर्मियो के वंशजों को पिछले 68 साल में उन्ही इसाइयो द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने वाले संविधान निर्माताओं ने, उन्ही शम्बूक एकलव्य की कहानी से वशीभूत होकर, संविधान में उन्हें भिक्षा का अधिकारी बना दिया है ।

और इस भीख को वोट की राजनीति ने त्रस्तरीय बना दिया था , शिक्षा और नौकरी और नौकरी में प्रमोशन के स्तर पर , तो उसको हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया ।
तो आज ये भिखारी अगर धर्म परिवर्तन की धमकी दे रहे है कि इनके त्रिस्तरीय भीख को न्यायलय भारत के बाबा द्वारा बनाये संविधान के अनुसार मात्र द्वि स्तरीय बनाना चाहता है , तो ये भिखारी , जो देश से सैलरी के साथ यादव सिंह की तरह भारत को लूट भी रहे हैं , तो बेहतर हैं कि वे धर्म बदल कर सुन्नत करवा ले या बपतिष्मा ।

क्योंकि ये भिक्षुक नही भिखारी हैं , जिनको मिलने वाली भीख और त्रिषणा की कोई सीमा नहीं है ।

हिंदुओं को वर्ण से बदलकर जातियों मे बांटना : एक ईसाई अङ्ग्रेज़ी राजनैतिक और धर्म परिवर्तन की शाजिश

इसाई मिशनरियों और शासन में ऊपरी तरह से तारतम्य नही था , लेकिन आतंरिक रूप से उनका उद्देश्य एक ही था - हिन्दुओ का धर्म परिवर्तन , भारत को लूटना , उसके घर घर पसरे गृह उद्योगों को नष्ट कर भारतीय समृद्धि को नष्ट कर इसे मेनचेस्टर से बने कपड़ो का एक बाजार बनाना , तथा हिन्दू समाज को छोटे छोटे टुकड़ों में बांटना।
यदि इतिहास को ठीक से देखें तो ब्रिटिश शासन ने 1872 में जब जनगणना की तो बनवासी भारतीयों को एनिमिस्ट यानि प्रकृति पूजक या जीव जंतुओं का पूजक के रूप में अलग कर उनको भविष्य में ईसाइयत के लिए टारगेट किया जा सके । और वही हुवा भी । स्वतंत्र भारत में उनको ST के नाम से चिन्हित कर मूल हिन्दू समाज से अलग पहचान दी गयी । क्या पूरा हिन्दू समाज प्रकृति पूजक या जीव जंतु पूजक नही है ?
1991 तक भारत में हिन्दुओ की जनगणना 4 वर्ण के रूप में होती रही ।
लेकिन यदि हिन्दू समाज मात्र 4 वर्णों या वर्गों में रहता तो इसको विभाजित कर इसायत की ऒर लक्षित करना आसान होता ?
शायद नहीं ।
इसीलिये 1901 में 3 वर्ण ब्रम्हाण क्षत्रिय वैश्य 3 वर्णों को 3 जातियों के रूप में चिन्हित किया गया और भारत के 2000 वर्षो से अर्थजगत के निर्माण करता रहे शूद्र कर्मी कुल परिवारों को हजारों जातियों में चिन्हित कर के भारत की आधुनिक जाति व्यवस्था का निर्माण होता है । इस तरह 4 वर्णों को हजारों अलग अलग जाति समूहों में चिन्हित करने में सफल रहे।
दूसरी तरफ इन बेरोजगोर लोगों का एक विशाल जान समूह 19 शताब्दी के उत्तरार्ध और 20वीं शताब्दी के शरुवात में 22 करोड़ जनसँख्या में से 2.5 से 3 करोड़ लोग भूंख से मर जाते हैं । और बाकी बचे लोग दयनीय स्थिति में जीने को बाध्य होते हैं। वरना कोरी और कोली जो सम्मानित वैश राजपूत की वंशज थे , जो बुनकरी का पेशा करते थे , उनको आज SC में किस तरह शामिल किया गया ?
या मुसहर जो नमक का उत्पादकर्ता था उसकी आज समाज में सबसे ज्यादा जर्जर स्थिति कैसे होती ?
खैर 1921 की जनसंख्या के समय एक नए शब्द को बिना परिभाषित किये जनगणना में स्थान दिया जाता है ?
1928 में साइमन कमीशन ने डॉ आंबेडकर को इन्ही डिप्रेस्ड क्लास को परिभाषित करने का काम दिया गया ।
1932 में डॉ आंबेडकर ने लोथिअन कमिटी की रिपोर्ट सौंपते हैं जिनमे वे डिप्रेस्ड क्लास को अछूत घोसित करते हैं , और छूने योग्य व्यक्ति को भी अछूत घोसित करते हैं - Notional Untouchable ।
फिर 1936 में ऑप्रेससेड क्लास एक्ट आता है और इनकी सचेदुलिंग होती है यानि SC का जन्म ।
हमारे संविधान निर्माताओं को ये इसाई शाजिश समझ नही आई ।
परंतु परिणाम आपके सामने है ।
सारे ST को अलग चिन्हित कर उनको इसाई बना चुके है ।
SC इनके दूसरे टारगेट हैं और वहां पर भी वो सफल होते आये हैं। ढेर सारे तथाकथित दलित चिंतक इनके गूढ़ पुरुष यानि जासूस हैं ।
अगला टारगेट उनके OBC हैं जिसको BP मंडल ने मात्र 5 महीने के कठोर मेहनत से पूरे भारत का सर्वेक्षण करके तैयार किया था जिसमे कई राजघराने भी आज OBC में शामिल हैं ।

भारतीय संविधान हिन्दू बहुसंख्यक को दोयम दर्जे का नागरिक मानता है

भारत के संविधान की आर्टिकल 25 से 30 तक देश के माइनॉरिटी को स्पेशल स्टेटस देता है ।
यानि उनको दो तरह के अधिकार प्राप्त हैं ।
एक सामान्य नागरिक की तरह और एक माइनॉरिटी की तरह ।

जबकि मेजोरिटी को कहने को तो ,एक सामान्य नागरिक के अधिकार प्राप्त है , लेकिन जब तुलनात्मक रूप से देखा जाय तो मेजोरिटी को नागरिक के लिहाज से दोयम दर्जे की नागरिकता प्राप्त है ।

दूसरी बात जिस शब्द का संविधान में जिक्र ही न हो तो उसको कहाँ से सामान्य नागरिकता के अधिकार प्राप्त हो सकते हैं ?

क्योंकि मानने से नही होता , हम लिखित संविधान से शासित होते हैं । और उस लिखित संविधान में मेजोरिटी का जिक्र ही नही है तो उसको कहाँ से उसे बराबर का दर्जा मिला ?
कारण क्या है ?
दो कारण हैं ।
1- हमारे अंग्रेजी दीक्षित संविधान निर्माताओं को धर्म रिलिजन और मजहब का फर्क ही नही मालूम था।
2- सेकुलरिज्म को संविधान में घुसेड़ना ।

सेकुलरिज्म जैसे कांसेप्ट को अपनाना वैसा ही है कि हम किसी दूसरे theology इतिहास भूगोल को अपने ऊपर लादना ।
सेकुलरिज्म का जन्म होता है यूरोप से । क्योंकि वहां किसी समयकाल में चर्च सत्ता का केंद्र था जिसकी खुद की सेना थी और संपत्ति थी , जो टैक्स वसूल सकता था , जो ईसाइयत को न मानने वाले का जीवनलीला समाप्त कर सकता था । बाद में राजतन्त्र और लोकतंत्र को स्थापित करने के पूर्व वहां चर्च के शासकीय सत्ता को खत्म किया गया ।और इसको सेकुलरिज्म के नाम से संबोधित किया ।
दूसरी तरफ मजहब का नजारा तो आप कश्मीर , बांग्लादेश पाकिस्तान , इराक में ISIS तक देखिये - उनको सेकुलरिज्म कोई पढ़ा सकता है ?
जबकि रिलिजन और मजहब के लोग अपने धर्मग्रंथो के आदेशानुसार , जोकि कोई आध्यातमिक पुस्तक न होकर एक पोलिटिकल पार्टीज का uneditable पोलिटिकल मैनिफेस्टो मात्र है , क्या उसकी तुलना किसी धर्म पुस्तक से हो सकती है , जो राजसत्ता स्थापित न करने की बात कर मात्र जीवन के नैतिक आदर्शो की बात करता है ।

तो ये संविधान भारत के बहुसंख्यकों का अपराधी है , इसमें संसोधन क्यों नही होना चाहिए ?

सनातनी इकनोमिक मॉडल :PMO India के नाम एक खत :

सनातनी इकनोमिक मॉडल
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PMO India के नाम एक खत :
मोदी जी आपको पता है कि चाहे कैपिटलिज़्म हो या फिर सोसियलिस्म - दोनों का मूलमंत्र एक ही है - मास प्रॉडक्शन, और हमको यही एक मात्र मोडेल समझ मे भी आता है / आपके एक कार्यकर्ता ‪#‎Sanjay_pasawan‬ जी ने सनातन मोडेल ऑफ इकॉनमी के बारे मे रुचि प्रकट की थी /
वही आप अपने देश के आर्थिक इतिहास उठाकर देखिये , सनातन मोडेल ऑफ इकॉनमी का अर्थ है - Production By Masses / और यही भारत के गरीबी और बेरोजगारी उन्मूलन का एकमात्र विकल्प भी है / नीचे 1901 मे छपी पुस्तक इकनॉमिक हिस्टोरी ऑफ इंडिया - रोमेश दुत्त कि पुस्तक से कुछ स्नाप शॉट लिए हैं , जिनमे आपको एक मोटे तौर पर उस इकॉनमी का वर्णन है / क्या हम ये व्रत नहीं ले सकते कि हम विश्व को पुनः हस्त निर्मित वस्त्रों से ढँक देंगे ?

1807 का यह डाटा बताता है कि 1807 तक सूट कातने का काम हर घर की हर कास्ट की , स्त्री करती थी / और कब ? दोपहर बाद आराम के छड़ों मे / और उससे प्रति स्त्री को सालाना 3 -7 रुपये की कमाई उस समय होती थी , जो उसके पारिवारिक आय के श्रोत को बढाती थी , और साथ मे उसको घर और समाज मे सम्मान भी दिलवाती थी / प्रत्येक जिले मे उसके क्षेत्रफल के अनुसार 4500 - 6000 तक छोटे छोटे लूम होते थे , जिनको मात्र एक स्त्री और एक पुरुष मिलकर चलाते थे और 30- 60 रुपये प्रतिवर्ष की कमाई करते थे /
जहां तक मुझे पता है आज एक जिले मे इतने ही ग्राम समाज है ,जितने लूमों कि संख्या मैंने लिखा है /

क्या यह असंभव कार्य है कि सनातन के इस मोडेल को पुनर्जीवित किया जा सके / मेरा मानना है कि इस मोडेल का आधुनिकीकरण कर हर घर मे पुनः स्पिननिंग शुरू किया जा सकता है / थोड़ा कष्टसाध्य और मुश्किल अवश्य लगता है , परंतु संभव है /
क्या ‪#‎मनरेगा‬ , जिसके तहत कच्चा काम किया जा रहा है , और जिसमे आज भयानक लूट मची है , ऐसा बहुतों का मानना है , से इस योजना को जोड़कर घर घर गाव गाव स्पिननिंग नहीं शुरू किया जा सकता ?
शायद कपास की कमी की बात आए , तो हमे भूलना नहीं चाहिए कि अगर अंग्रेज़ इस देश से कच्चा कॉटन और सिल्क इम्पोर्ट कर , मैंचेस्टर से फ़ैक्टरी निर्मित कपड़ो से भारत को भर सकता था , तो हम भी ये काम कर सकते है /
क्या हर गाव समाज मे एक ‪#‎सोलर_लूम‬ से इन सूतो को वस्त्र निर्माण मे नहीं लगाया जा सकता / MNREGA का शायद इससे अच्छा इश्तेमाल नहीं हो सकता /

एक बात और - आप जानते हैं कि भारत की कुल जीडीपी का 18% कृषि से , 18% सरकार से , मात्र 14% कॉर्पोरेट से आता है , बाकी 50% अभी भी स्वरोजगार से आता है / तो इस स्वरोजगार मे बृद्धि कीजिये / निर्माण भी होगा , रोजगार भी बढ़ेगा , नारी का शशक्तीकर्ण भी होगा , और गाव से पलायन भी बंद होगा / गाव के लोग भी शहरों की मलिन बस्तियों मे रहना बंद कर वापस गाव कि ओर लौटेंगे /
बंदे मातरम /
Tribhuwan Singh's photo.
 Tribhuwan Singh's photo.
 
 
  
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दो केस स्टडी : ओबीसी रियसतदारों के बारे मे

दो केस स्टडी :
1 - एक हैं पडरौना की रियासत , जिस राजपरिवार के पूर्वज कन्नौज के राजा जयचंद हुआ करते थे / उनके वर्तमान वंशज मॉल साइथवार नाम के टाइटल से जाने जाते हैं / वर्तमान मे RPN Singh साहब पिछली काँग्रेस के सरकार मे मंत्री भी थे / उनके पिता भी मंत्री रह चुके हैं / बहुत ही सम्मानित परिवार है /
लेकिन आज वो OBC मे गिने जाते हैं /
http://rajputms.in/rajputms/H_02.asp
2- दूसरे हैं गावलियर का सिंधिया परिवार / जिनकी गूगल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2000 साल से विभिन्न राजघरानों से होते हुये आज भी राजनीति मे सक्रिय है / ये भी भारत के सबसे एक धनी राज परिवारों मे से हैं / वरली सी फेस पर अरबो की संपत्ति है पुश्तैनी /
ये भी OBC हैं /
http://rajputms.in/rajputms/H_02.asp

आखिर इस रहस्य को कैसे सुलझाया जा सकता है ?
सिवा रिसले के ‪#‎UnfailingLaw_Of_Caste‬ के , इस गुलथी को सुलझा सके तो सुल्झाकर दिखाये /

Sunday, 8 May 2016

अलसी का महत्व

भारत के भोज्य पदार्थों पर अब नए रिसर्च बोल रहे हैं कि अलसी मे ओमेगा 3 fatty Acid होता है / जो हार्ट के लिए और अन्य बीमाँरियों के लिए बहुत लाभ प्रद है / इसमे antioxidant होता है / इसी तरह नई खोज बताती हैं ये स्वस्थ के लिए बहुत लाभकारी है / लहसुन और हल्दी मे super ANTIOXIDANTS पाये जाते हैं, जो Alzheimer जैसे बीमारियों को रोकते हैं / गुड और खांड बहुत ओरगनिक हैं , आज खांड  की चीनी को पाँच और सात सितारा होटलों मे ब्राउन शुगर के नाम से मार्केट किया जा रहा है - गुड फॉर हैल्थ बोलकर /
लेकिन ये चूंकि भारत के हर घर मे बनते थे / बच्चे के जन्म पर #सोठौरा बनता तो माँ के लिए बंता था , लेकिन खाते पूरे घर परिवार गाव और रिश्तेदार खाते थे, जिसमे हलदी सोंठ अलसी सब मिले होते थे /
लेकिन चूंकि ये गाव के गवार बनाते थे , इसलिए आधुनिक और माइकाले दीक्षित लोगों के लिए ये ओर्थोडॉक्स गवारपन था / इसलिए गाव के गवारों ने इंका उत्पादन और बनाना बंद कर दिया /
कल Vinit Mehrotra की माँ यानि  मेरे अमेरिकन मित्र की माँ और मेरी आंटी ने बताया कि #america मे लोग अलसी अवश्य खाते हैं , चाहे सलाद मे ही /

लेकिन हम तो किसी भी भारतीय विद्या प्रथा और परंपरा को तभी अपनाएँगे जब Blond Blue Eyed white  Christians अप्रूव न कर दें /
हम हैं न #मॉडर्न ?

एक विडियो देखें :
Health benefits of Flax Seeds(Hindi), Alsi के फ़ायदे, Flax seeds for weight loss & Healthy Heart -
https://www.youtube.com/watch?v=soEz3QNv96A