Tuesday 19 May 2015

भारत के ऐतिहासिक सम्पन्नता का वर्णन : इन वस्तुओं का निर्माता कौन था ??

भारत के ऐतिहासिक सम्पन्नता का वर्णन : इन वस्तुओं का निर्माता कौन था ??
- जब ब्राम्हण मात्र पूजा पाठ और शिक्षक था।
- क्षत्रिय योद्धा था ; राजसत्ता का मालिक
- वैश्य व्यापार करता था
और
- शुद्र डॉ आंबेडकर के अनुसार menial job / घृणित काम करने को बाध्य था।
India in the fifteenth century .
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being a collection of
"Narratives of Voyages of India"
By
R. H. Major Esq., F.S.A.
से उद्धृत

"Introduction page v
50 AD में egypt रोमन साम्राज्य का हिस्सा हो चूका था , जोकि रोम के लिए भौगोलिक और व्यावसायिक दृस्टि से बहुत महत्व्पूर्ण था ।यह रास्ता भारतीय समुद्र से जोड़ने का रास्ता / highway था , जोकि पश्चिम के विलासी और महंगी बस्तुये जिनको सुदूर पूर्व से प्राप्त करना संभव था ; जो इनके विजय के कारन (egypt पर विजय) पैदा हुई ख़ुशी और गौरव (grandeur) की भूंख को शांति करने के लिए आवश्यक था।
Erythrean sea के Periplus ( जो समभवतः Arrian था जिनके हम दक्कन के खूबसूरत और सटीक वर्णन के आभारी हैं ) , का लेखक बताता है किHippalus,जो कि भारतीयों से व्यापर करने वाली नावों का कमांडर था; किस तरह अरब की खाड़ी में फंस जाता है ; जो अपने पूर्व में अनुभव के आधार पर कुछ प्रयोगों को आजमाता है और उन्ही प्रयासों से दक्षिण पश्चिमी मानसून के कारण मारी- सस पहुँच जाता है ।
Pliny ने भी इसका विवरण दिया है । वह कहता है ---- इस बात को नोटिस में लिया जाना चाहिए कि चूँकि भारत हर वर्ष हमारे ' 550 मिलियन Sesterces (रोमन सिक्के हमारे यहाँ से ले लेता है और उसके बदले वो जो वस्तुएं (Wares) हमको देता है , वो उनकी प्राइम मूल्य की 100 गुना दाम पर बेंची जाती हैं ' ।जिस धनराशि का वर्णन किया गया है उसकी गणना हमारे धन का 1,400,000 (14 लाख ) डॉलर है।
पेज - v और vi
उस समय जो सामान (भारत से) आयात होता था उसमे महन्गे स्टोन्स और Pearls , मसाले और सिल्क थे । इतिहास हमे बताता है कि जिन pearls और diamonds की रोमन में बहुतायत से मांग थी ,उनकी सप्लाई मुख्यतः भारत से होती थी ।
Frankincense ,Cassia ,Cinnamon जैसे मुख्य मसाले पूजा के लिए नहीं बल्कि मुर्दों को जलाने में किया जाता था ; और सिल्क जिसका एक मात्र निर्यातक भारत हुवा करता था , रोम की धनी महिलाओं की पहली पसंद थी ; और तीसरी शताब्दी के उत्तरार्ध में Aurelian के समय में (सिल्क ) इसका मूल्य सोने में आँका जाता था (was valued at its weight in gold ) ।
नॉट - अब मैं महान फलित चिंतको से पूंछना चाहता हु कि भारत के चार ऊपर वर्णित वर्णों में से कौन वर्ण इसका मैन्युफैक्चरिंग करता था ?
और अगर मैन्युफैक्चरर है तो वो दरिद्र तो नहीं रहा होगा ?
और निर्माण से निर्यात तक के में किस वर्ण के लोग शामिल थे।
क्योंकि 3000 साल तक की बात दलितों के दलितापे की बात करते हैं ; तो क्या ये दलित चिंतकों के पास मेरे प्रश्न का उत्तर है ??
पेज - viii

Benjamin Tudela नाम का स्पेनिश यहूदी जिसने अपनी यात्रा 1159 या 1160 में विश्व के बहुतायत जगहों पाए 13 -14 साल की यात्रा पर निकलता है ।उसके पेशे के बारे में तो नहीं पता और न ये पता है कि वो धन कमाने निकला था कि वैज्ञानिक तथ्यों की खोज करने निकला था हाँ उसकी यात्रा वृत्तांत से इतना निष्कर्ष अवस्य निकलता है कि वो विश्व भर में फैले यहूदियों के नैतिक और धार्मिक स्थिति को जानना चाहता था।यद्यपि उसका भारत भ्रमण तुलनात्मक रूप से बहुत कम था उसके बर्लिन के Mr Asher द्वारा किये गए बेहतरीन अनुवादों से निकाले गए कुछ तथ्य यहाँ प्रस्तुत हैं । उसके 136 -143 पेजों से उद्धृत जानकारी नीचे उद्धृत हैं :----
ये (Tigris) नदी नीचे जाकर इंडियन ओसियन में गिरती है (Persian gulf) जिसके बगल में एक Island (टापू) है जिसका नाम किश (Kish) है । इसका फैलाव 6 किलोमीटर है ।यहाँ के निवासी खेतीबाड़ी नहीं करते क्योंकि यहाँ कोई नदी नहीं है मात्र एक झरने को छोड़कर ; ; अतः पीने के लिए बरसाती पानी पर निर्भर हैं ।इसके बावजूद यहाँ बहुत बड़ा बाजार है जहाँ भारत के व्यापारी और इस टापू के निवासी अपना माल लेकर आते है ; और मेसोपोटामिया यमन और पर्शिया के लोग यहाँ से सिल्क छींट के कपडे flax, कॉटन पटुआ , mash (एक तरह की दाल) गेहूं जौ मिलेट राइ और अन्य तरह की वस्तुए यहाँ से आयातित करते हैं, साथ में वे ढेर सारे मसाले भी इम्पोर्ट करते हैं ।और इस टापू के निवासी दोनों तरफ से मिलने वाली brockrage से अपना गुजारा करते हैं ।इस टापू पर 500 यहूदी हैं।
यहाँ से 10 दिन की समुद्री यात्रा के बाद El-Cathif नामक शहर है जहाँ पांच हजार इस्रायली बसते हैं ।इसके आस पास pearls पाये जाते हैं: Nisan के महीने के 24वें दिन (अप्रैल) में बरसात की बड़ी बड़ी बूंदे पानी की सतह पर गिरती हैं जिसको पीकर Reptils अपना मुहं बंद करके पानी की तलहटी में चली जाती हैं : और Thisri (अक्टूबर) के मध्य में कुछ लोग रस्सी की मदद से समुद्र में गोता लगाकर इन Reptiles (सीपी) को इकठ्ठा करते हैं और ऊपर लाकर इनको खोलते हैं और उसमे से Pearls / मोती बाहर निकाल लेते हैं ।
यहाँ से 7 दिन की दुरी पर chulam नामक जगह है जो सूर्य की पूजा करने वालों के अधिकार में है । ये लोग कुश के वंशज हैं , ये एस्ट्रोलॉजी के बहुत शौक़ीन हैं और सबके सब काले हैं ।
ये देश व्यापार के मामले में अत्यंत विश्वस नीय है , और जब भी इनके यहाँ कोई भी विदेशी व्यापारी इनके बंदरगाह में दाखिल होता है ,तो राजा के तीन सचिव तुरंत इनकी जहाज की देखभाल और रिपेयरिंग में लग जाते हैं , तथा उनका नाम लिखकर तुरंत राजा को सूचित करते हैं। राजा इनके सामान की सुरक्षा का दायित्व लेता है ,जिसको वो खुले मैदान में बिना किसी रखवाली के छोड़ सकते हैं ।
राजा का एक अफसर बाजार में बैठता है जो इधर उधर गिरी पड़ी लावारिश वस्तुओं को लाकर इकठ्ठा करता है और कोई व्यक्ति जो उन वस्तुओं की minute डिटेल्स बताकर उनको वापस प्राप्त कर सकता है।ये संस्कृति राजा के पूरे साम्राज्य में प्रचलित है।

इसी पुस्तक के पेज 59 - 60 से।
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नोट - इसके विपरीत रोमन साम्राज्य की मुख्य संस्कृति लूटमार (Plunder) गुलामी (Slavery) और सैन्य शक्ति पर आधारित थी ।
और इंग्लैंड का तो जन्म भी नहीं हुवा था , जिसकाल ये वृत्तांत है।

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